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गुब्बारा!-Velintine contest

दोस्ती(Dosti)
दोस्ती(Dosti)
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balloon-ride-jenna-fournierमित्रों!

कविता-साहित्य की वह विधा हॆ-जिसमें थोडें से शब्दों में ही बहुत कुछ कह दिया जाता हॆ.कभी कभी कविता से ऎसे ऎसे अर्थ भी निकल आते हॆं कि उस कविता के रचियता ने भी उस अर्थ की कल्पना नहीं की होती.दर-असल किसी भी शब्द का अर्थ-हमेशा एक जॆसा नहीं होता.वह समय-सापेक्ष होता हॆ.व्यक्ति विशेष पर भी निर्भर करता हॆ कि उससे वह कॊन-सा अर्थ लेता हॆ.कविता एक-लेकिन उसके भावार्थ अनेक.आज से लगभग 28 वर्ष पहले लिखी गयी यह कविता,अपने कालेज के दिनों में एक प्रतियोगिता में पढी थी-जिसे उस समय ’द्वितीय पुरस्कार’ मिला था.अब कविता पढकर-आप भी अपना अर्थ लगाइये-हो सके तो-अपनी प्रतिक्रिया द्वारा मुझे भी बताईये.

गुब्बारा

क्या-मॆं
तुम्हारे लिए
सिर्फ एक गुब्बारा हूँ
जिसमें जब जी चाहे
हवा भरो
कुछ देर खेलॊ
ऒर फिर फोड दो।
काश !
तुम भी गुब्बारा होते
कोई हवा भरता
कुछ देर खेलता
ऒर फिर-फोड देता
तब तुम
समझ पाते
एक गुब्बारे के फूटने का दर्द
क्या होता हॆ?
किसी बडे या बच्चे के द्वारा
गुब्बारा फोडे जाने में
बडा भारी अन्तर होता हॆ।
बच्चा-
स्वयं गुब्बारा नहीं फोडता
बल्कि गुब्बारा उससे फूट जाता हॆ।
वह गुब्बारा फूटने पर
तुम्हारी तरह कहकहे नहीं लगाता
ब्लकि-
रोता,गिडगिडाता या फिर
आँसू बहाता हॆ।
ऒर फिर-
तुमनें तो

मुझमें-

हवा नहीं-

गॆस भरी थी
बाँध लिया था

एक घागे से
ताकि तुम्हारी मर्जी से उड सकूँ।
तुम कभी धागे को
ढीला छोड देते थे
तो कभी-अपनी ऒर खींच लेते थे।
आह!
कितना खुश हुआ था-मॆं
जब तुमने-
धागे को स्वयं से जुदा करते हुए
कहा था-
कि-अब तुम आज़ाद हॊ।
लेकिन-
हाय री विडम्बना !
ये कॆसी आज़ादी ?
कुछ देर बाद ही
तुमनें जेब़ से पिस्तॊल निकाली
ऒर लगा दिया निशाना
मेरा अस्तित्व !
खण्ड-खण्ड हो
असीम आकाश से
कठोर धरातल पर आ पडा।
काश!
मॆं गुब्बारा न होता
ऒर अगर होता
तो मुझमें
गॆस नहीं-
हवा भरी होती-हवा
वही हवा
जो नहीं उडने देती
गुब्बारे को
खुले आकाश में।
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