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पूरे देश में ई-सिगरेट पर प्रतिबंध जरूरी

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विश्व तंबाकू निषेध दिवस की पूर्व संध्या पर चिकित्सकों ने कहा कि हमारे समाज में यह गलत धारणा फैलाई गई है कि तंबाकू युक्त वाली सिगरेट की तुलना में ई सिगरेट कम नुकसानदायक होती है और यही कारण है कि बच्चों और युवाओं में ई-सिगरेट पीने की लत तेजी से बढ़ रही है जबकि तमाम अध्ययनों एवं अनुसंधानों से यह साबित हो चुका है कि ई-सिगरेट भी सामान्य सिगरेट जितनी ही नुकसानदायक होती है।
हृदय रोग विशेषज्ञ डा. आर. एन. कालरा ने कहा कि ई सिगरेट में भी निकोटिन होता है जो एक तरह का जहर ही है। ई सिगरेट और ईएनडीएस को लेकर समाज में काफी भ्रम फैलाया गया है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) ई-सिगरेट पर सख्त पाबंदी की सिफारिश कर चुका है। अनेक नवीनतम अध्ययनों से पता चला है कि ई-सिगरेट की लत के शिकार लोग तंबाकू वाली सिगरेट पीने वालों की तुलना में ज्यादा सिगरेट पीते हैं, जिससे कार्डियक सिम्पथैटिक एक्टिविटी एंडरलीन का स्तर और ऑक्सीडेंटिव तनाव बढ़ जाता है जिससे हृदय की समस्याओं का खतरा बढ़ता है।
ई सिगरेट से होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए देश में पंजाब, कर्नाटक, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, झारखंड और मिजोरम सहित देश के 12 राज्यों में ई सिगरेट, वेप और ई हुक्का के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लग चुका है। दुनिया भर में 36 देशों में भी ई सिगरेट की बिक्री प्रतिबंधित है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के डा. अभिषेक वैश्य ने कहा कि ई सिगरेट पर पूरे देश में तत्काल प्रतिबंध लगाने की जरूरत है ताकि बच्चों और युवाओं को ई सिगरेट के खतरों से बचाया जा सके। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनने वाली नई सरकार इस दिशा में तत्काल कदम उठाएगी।
फोर्टिस हास्पीटल के मनोचिकित्सक डा. मनु तिवारी ने कहा कि ई सिगरेट में इस्तेमाल होने वाला निकोटिन नशीला पदार्थ है इसलिए पीने वाले को इसकी लत लग जाती है। थोड़े दिन के ही इस्तेमाल के बाद अगर पीने वाला इसे पीना बंद कर दे, तो उसे बेचैनी और उलझन की समस्या होने लगती है। चूंकि ई-सिगरेट में सामान्य सिगरेट की तरह तंबाकू का इस्तेमाल नहीं किया जाता है इसलिए लोग इसे सुरक्षित मान लेते हैं।
नई दिल्ली के कालरा हास्पीटल एंड श्रीराम कोर्डियो-थोरेसिस एंड न्यूरोसाइंसेस सेंटर (एसआरसीएनसी) के मेडिकल डायरेक्टर डा. कालरा ने कहा कि नवीनतम अध्ययनों से पता चलता है कि ई-सिगरेट से भी फेफड़ों को नुकसान होता है। कई लोग सिगरेट की लत छुड़ाने के लिए ई सिगरेट का सहरा लेते हैं लेकिन ई सिगरेट खुद ही स्वास्थ्य के लिए कई तरह के खतरे पैदा करती हैं।
ई-सिगरेट एक तरह का इलेक्ट्रॉनिक इन्हेलर होता है, जिसमें निकोटीन और अन्य रसायनयुक्त तरल भरा जाता है। ये इन्हेलर बैट्री की ऊर्जा से इस लिक्विड को भाप में बदल देता है जिससे पीने वाले को सिगरेट पीने जैसा एहसास होता है। ईएनडीएस ऐसे उपकरणों को कहा जाता है जिनका प्रयोग किसी घोल को गर्म कर एरोसोल बनाने के लिए किया जाता है जिसमें विभिन्न स्वाद भी होते हैं। लेकिन ई-सिगरेट में जिस लिक्विड को भरा जाता है वो कई बार निकोटिन होता है और कई बार उससे भी ज्यादा खतरनाक रसायन होते हैं। इसके अलावा कुछ ब्रांड्स ई-सिगरेट में फॉर्मलडिहाइड का इस्तेमाल करते हैं, जो बेहद खतरनाक और कैंसरकारी तत्व है।
गौरतलब है कि गत वर्ष अगस्त में स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को ईएनडीएस के निर्माण, बिक्री एवं आयात को रोकने के लिए परामर्श जारी किया था। इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में ई-सिगरेट के नये उभरते खतरे से निपटने के लिए उचित उपायों के साथ सामने आने में देरी करने के लिए केंद्र से कड़ी नाराजगी जाहिर की थी। केंद्रीय मादक पदार्थ नियामक ने राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के सभी मादक पदार्थ नियंत्रकों को ई-सिगरेट एवं विभिन्न स्वादों में उपलब्ध हुक्का समेत ईएनडीएस बनाने, बिक्री, आयात एवं विज्ञापन की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया था। गत माह भी कई चिकित्सकों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर भारत में ई सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
मनोचिकित्सक डा. मनु तिवारी ने कहा कि ई सिगरेट को लेकर कायम भ्रांतियों के कारण हमारे देश में बच्चे ई सिगरेट का इस्तेमाल मस्ती के लिए करते हैं और कुछ समय बाद इसके आदि हो जाते हैं। इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में माता-पिता और शिक्षकों के बीच भी भ्रांति है।
हाल में एक स्वयंसेवी संस्था की ओर से दिल्ली में कराये गए अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि ई सिगरेट एवं निकोटीन युक्त इस तरह के अन्य उपकरण की लोकप्रियता युवाओं के बीच बढ़ रही है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि छठी और सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र भी इसे अपने स्कूल बैग में ले जाते हुए दिख जाते हैं। ई सिगरेट के अलावा बच्चों में ई सिगरेट की तरह के स्लीक वैपिंग डिवाइस भी अपनाने लगे हैं। छात्रों में वैपिंग का शौक सनक के रूप में बढ़ रहा है। छात्र अपने दोस्तों के साथ मिलकर इस तरह की डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं। छात्रों का कहना होता है कि वे स्मोकिंग की आदत से छुटकारा पाने के लिए इस डिवाइस का सहारा ले रहे हैं। इसका इस्तेमाल करने वाले छात्रों का पता लगा पाना इसकारण मुश्किल होता है, क्योंकि इसमें न तो दुर्गंध होती है और न ही इसे सुलगाने की जरूरत होती है।

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