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चिकित्सकों पर हमले की घटनाएं देश में अक्सर होती रहती है। ऐसी घटनाओं के लिए अक्सर मरीजों के रिश्तेदारों को जिम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन कई चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि चिकित्सकों को चिकित्सा पाठ्यक्रमों के तहत न केवल विभिन्न बीमारियों के इलाज के बारे में बल्कि मरीजों, उनके तिमारदारों और मीडिया से समुचित तरीके से पेश आने के बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
देश भर में चिकित्सकों पर होने वाले हमलों के मद्देनजर कुछ प्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञों ने डाक्टरों पर हमलों को रोकने के लिए कठोर केन्द्रीय कानून बनाए जाने की मांग करने के अलावा चिकित्सकों को मरीजों एवं उनके परिवारवालों के साथ संवाद कायम करने के कौशल के बारे में भी प्रशिक्षण दिए जाने का सुझाव दिया है और इस तरह का प्रशिक्षण चिकित्सा की पढ़ाई के दौरान भी दिया जाए।
नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा. राजू वैश्य ने कहा कि चिकित्सकों को मरीजों एवं उनके रिश्तेदारों से समुचित संवाद एवं संबंध कायम करने के प्रशिक्षण को मेडिकल पाठ्यक्रम के तहत शामिल किया जाए। इससे मरीजों तथा चिकित्सकों के बीच के संबंधों में सुधार आएगा तथा चिकित्सकों के प्रति मरीजों की आक्रमकता घटेगी।
डा. राजू वैश्य का कहना है कि चिकित्सा के पूरे पाठ्यक्रम के दौरान मेडिकल के छात्रों को मरीजों, उनके तिमारदारों और मीडिया कर्मियों के साथ किस तरह से पेश आना चाहिए इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है जबकि आज के समय में यह जरूरी हो गया है कि डाक्टर सीखें कि कैसे मरीजों और उनके रिश्तेदारों के साथ बेहतर संवाद कायम किया जाता है और उनके साथ बेहतर संबंध बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि चीन में डाक्टरों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि डाक्टरों की हीन भावना के लिए उनके खिलाफ बढ़ती हिंसा एक प्रमुख कारण है।
डा. राजू वैश्य ने कहा कि हालांकि सर्जन मरीजों के साथ बातचीत करने तथा उन्हें सर्जरी के बारे में समझाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन कई बार मरीज और उनके रिश्तेदार किसी सर्जरी के खतरों को नहीं समझ पाते और जब सर्जरी के नतीजे उनकी उम्मीदों के अनुकूल नहीं आते तो वे सर्जन के साथ मारपीट के लिए उतारू हो जाते हैं। ऐसे में चिकित्सकों के लिए मरीजों एवं उनके रिश्तेदारों के साथ सही तरीके से संवाद करना आवश्यक है।
डा. राजू वैश्य ने यह भी कहा कि ड्यूटी कर रहे चिकित्सकों के खिलाफ हिंसा को कानूनी तौर पर गंभीर अपराध माना जाना चिहए और इसके लिए कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिए। इसके अलावा मीडिया को भी ऐसे मामलों में निष्पक्षता के साथ रिपोर्टिंग करनी चाहिए। इसके अलावा लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए कि अस्पताल मरीजों की देखभाल के केन्द्र हैं और किसी भी स्वास्थ्यकर्मी के साथ हिंसा से मरीजों की चिकित्सा एवं सेवा बाधित होगी।
कार्डियोलॉजिस्ट डा. आर. एन. कालरा ने कहा कि चिकित्सकों ने कहा कि हमारे देश में चिकित्सकों की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि अभी हाल तक ज्यादातर राज्यों में ऐसा कोई कानून नहीं था ताकि ड्यूटी कर रहे चिकित्सकों को मरीजों एवं उनके रिश्तेदारों के हमलों से बचाया जा सके दूसरी तरफ ड्यूटी करने वाले अन्य सरकारी कर्मचारियों पर हमले को गैर जमानती अपराध माना जाता रहा है। ऐसे में आम लोग ड्यूटी करने वाले चिकित्सकों के साथ मार-पीट करने से नहीं हिचकिचाते हैं। यही नहीं जो लोग चिकित्सकों के साथ मारपीट करते हैं उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है और ऐसी घटनाओं से अन्य लोग प्रोत्साहित होते हैं।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डा. अभिषेक वैश ने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि चिकित्सा के पेशे को बचाने के लिए कड़े केन्द्रीय कानून बनाया जाए ताकि स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा हो सके और इस कानून को अस्पतालों में प्रमुखता के साथ प्रदर्शित किया जाना चाहिए। इसके अलावा हर अस्पताल में पर्याप्त संख्या में पुलिस अधिकारी एवं सुरक्षा कर्मी होने चाहिए।
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