Menu
blogid : 26750 postid : 88

विपक्ष को नरेन्द्र मोदी से क्या सीखना चाहिए

Delhi News
Delhi News
  • 12 Posts
  • 0 Comment

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए एक टेलीविजन इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सीखा है कि सरकार कैसे नहीं चलानी चाहिए। लोकसभा चुनाव के बाद आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा और एनडीए ने प्रचंड जीत हासिल की है वैसे में न केवल राहुल गांधी को बल्कि पूरे विपक्ष को श्री नरेन्द्र मोदी से यह जरूर सीखना चाहिए कि चुनाव कैसे लड़ा जाना चाहिए और कैसे नहीं लड़ा जाना चाहिए, कम से कम उस तरह से तो कतई नहीं लड़ा जाना चाहिए जिस तरह से विपक्षी दलों ने लड़ा।
चुनाव में हार और जीत एक अलग मुद्दा है और अपने सहयोगी दलों के साथ एकजुट होकर योजनाबद्ध तरीके से चुनाव लड़ना एक अलग मुद्दा है। जिस तरह से एक तरफ कांग्रेस नीत यूपीए और दूसरी तरफ अन्य विपक्षी दलों ने पूरे बिखराव और अलगाव के साथ बिना किसी योजना, बिना किसी एजेंडे और बिना किसी चेहरे के लोकसभा चुनाव लड़ा उसे देखकर पूरे चुनाव के दौरान यही लगता रहा कि विपक्षी दल सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरे नरेन्द्र मोदी और भाजपा के खिलाफ नहीं बल्कि वे एक दूसरे को हराने और एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।
सबसे पहले भाजपा ने एनडीए में देश के सत्रह राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से संबंध रखने वाले 38 दलों को अपने साथ जोड़ा और इसके लिए भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के लिए करीब 110 सीटें छोड़ी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था और एनडीए के साथ वह सवा तीन सौ से ज्यादा सीटें जीत कर आई थी। केन्द्र में पूरे बहुमत के साथ सत्तारूढ़ होने, अपने पास मजबूत संगठनात्मक आधार होने और देश में अपने पक्ष में चुनावी माहौल होने के बावजूद भाजपा ने विभिन्न दलों के साथ गठबंधन करने के मामले में निजी टकरावों तथा निजी हितों को पीछे रखा और जहां जरूरत पड़ी वहां वह दो कदम पीछे भी हटी। मिसाल के तौर पर पिछले साढ़े चार साल के दौरान शिवसेना ने भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को विभिन्न मुद्दों पर खूब खरी खोटी सुनाई। शिवसेना और भाजपा के नेताओं के बयानों को देखकर ऐसा लगता था कि इन दोनों के बीच किसी तरह के तालमेल की संभावना बची नहीं है लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने लचीलापन दिखाते हुए शिवसेना के साथ गठबंधन कायम किया। इसी तरह भाजपा ने अन्य दलों की शिकायतों एवं नाराजगी को दूर करते हुए और उन्हें तुलनात्मक रूप से ज्यादा सीटों देते हुए गठबंधन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस, सपा, बसपा, आप, वामपंथी पार्टियों, तेदपा और तृणमूल कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों ने  आपस में गठबंधन या तालमेल करने के मामले में अपने निजी हितों और अपने क्षेत्रीय स्वार्थ को सर्वोपरि रखा। कई विपक्षी दलों के बीच केवल इस कारण से गठबंधन नहीं हो पाया क्योंकि कि ये दल एक-एक सीट के लिए अड़े रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि विपक्ष का राष्ट्रीय या क्षेत्रीय आधार पर कोई एक गठबंधन बना नहीं और पूरे चुनाव के दौरान विपक्ष पूरी तरह से बिखरा रहा जिसका फायदा सत्तारूढ़ भाजपा नीत गठबंधन को मिला।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अगुआई में भाजपा जिस तेजी के साथ उभर रही थी उसे देखते हुए विपक्षी दलों के समक्ष अपना अपना वजूद बनाए रखने के लिए भाजपा को हराने के बहुत बड़ी चुनौती थी। इन दलों के सामने एक तरह से ‘‘अभी नहीं तो कभी नहीं’’ वाली स्थिति थी, लेकिन इसके बावजूद वे एकजूट नहीं हो पाए। अपने निजी हितों को आगे रखने के कारण कांग्रेस केवल 16 दलों को साथ लेकर यूपीए गठबंधन बना पाई और बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस जैसी महत्वपूर्ण पार्टियां यूपीए गठबंधन से अलग रही। हालांकि इन सभी विपक्षी दलों के नेता विभिन्न रैलियों और शपथ ग्रहण समारोहों में एक दूसरे के साथ मंच साझा करते रहे, गले मिलते रहे, एक—दूसरे का हाथ पकड़ कर फोटो खिंचवाते रहे और एकजुट होकर चुनाव लड़ने की बातें करते रहे लेकिन जब आम चुनाव में एकजुट होने का मौका आया तो एक दूसरे पर कीचड़ उछालने लगे और आपस में ही आरोप—प्रत्यारोप करने लगे।
दूसरी तरफ भाजपा ने पूरे देश में राष्ट्रीय आधार पर और अलग—अलग राज्यों में क्षेत्रीय आधार पर गठबंधन बनाए और बिल्कुल एकजुट होकर चुनाव लड़े। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के साथ भाजपा को तीन प्रमुख क्षेत्रीय दलों का समर्थन प्राप्त था। केरल में आठ स्थानीय दल उसके साथ खड़े थे और वे सब मिलकर कांग्रेस व माकपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को कड़ी चुनौती दे रहे थे। इसके अलावा उसके पास बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में मजबूत सहयोगी थे। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, गोवा और झारंखड जैसे राज्यों में कई छोटे दल भाजपा के साथ जुड़े थे। जहां तक विपक्ष की बात है, सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस ने अलग-अलग होकर चुनाव लड़ा जिसके कारण भाजपा विरोधी वोटों का बिखराव हुआ और इसका फायदा भाजपा को मिला। कमोबेश यहीं आलम अन्य राज्यों में भी रहा। जाहिर है विपक्ष के बिखराव का लाभ भाजपा को मिला।
विपक्ष को विभिन्न दलों के साथ गठबंधन करने के अलावा विपक्षी दलों को नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से चुनाव प्रबंधन एवं प्रचार के तौर-तरीकों के बारे में भी सीखना चाहिए। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने बूथ से लेकर चुनाव मैदान तक प्रबंधन और प्रचार की ऐसी सधी हुई बिसात बिछाई कि पूरा विपक्ष आंधी में तिनके की तरह उड़ गया। अमित शाह ने ‘पंचायत से लेकर संसद’ तक भाजपा को सत्ता में लाने के सपने को साकार करने की दिशा में प्रतिबद्ध पहल जुलाई 2014 में भाजपा अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद ही शुरू कर दी। भाजपा के विस्तार के लिए उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और पार्टी कार्यकर्ताओं को जागृत करने का अभियान चलाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 जीतने के बाद ही 2019 की तैयारी शुरू कर दी। इन्होंने दूरदर्शिता अपनाते हुए दीर्घकालीन रणनीति बनाई। देश भर में राजनीतिक स्थितियों, भाजपा के जनाधार और विपक्षी दलों की कमजोरियों को सामने रखकर भाजपा ने अपनी रणनीतिक योजनाएं बनाईं। जबकि विपक्षी दल साढ़े चार साल तक सोए रहे। केवल आखिर के दो-तीन माह के दौरान ही सक्रिय नजर आए जिसके कारण विपक्षी दलों का जमीनी आधार और संगठनात्मक ढांचा बहुत ही कमजोर रहा।
इस चुनाव में एक निर्णायक घटक यह भी रहा कि भाजपा नीत एनडीए ने केवल एक व्यक्ति – नरेंद्र मोदी के चेहरे को लेकर ही चुनाव लड़ा। केवल नरेन्द्र मोदी को ही प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया और उनकी छवि को ही मजबूत किया। पूरा एनडीए उनकी छवि के आधार पर ही चुनाव लड़ा जबकि विपक्षी दल कोई एक सर्वमान्य चेहरा नहीं पेश कर पाए। विभिन्न विपक्षी नेता अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण किसी एक नेता को स्वीकार नहीं कर पाए और कोई एक सर्वमान्य चेहरा देने में विफल रहे जिसका खामियाजा विपक्षी दलों को भुगतना पड़ा। विपक्षी दलों ने अपनी चुनावी रणनीति में मुख्य तौर पर जातीय समीकरण को बहुत अहमियत दिया जबकि भाजपा किसी जाति को आधार बनाकर चुनाव मैदान में नहीं उतरी और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे को आगे बढ़ाकर जातीय समीकरण तोड़कर अपनी राह बनाने में सफल हुई।

– विनोद कुमार
21-यूएनआई अपार्टमेंट्स, सेक्टर -11, वसुंंधरा, गाजियाबाद – 201012
मोबाइल – 9868793203

लेखक परिचय : 

विनोद कुमार (विनोद विप्लव) वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक हैं। विकिपीडिया पर प्रकाशित सम्पूर्ण परिचय का लिंक निम्नलिखित है : 

https://hi.m.wikipedia.org/wiki/विनोद_विप्लव

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh