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ऐसा देखा जा रहा है कि राजनीति करने वालोंं की एक नई जाति पैदा हो गयी है ।वही या फिर उन्हीं के परिवार और रिश्ते के लोग ही राजनीति के माध्यम से समाज की सेवा करने के लिए आतुर है,जैसे बिना उनके या बिना उनके परिवार के या फिर बिना उनके रिश्तेदारों के समाज की सेवा ही संभव नहीं है ।यह भी लगता है कि जैसे इन लोगों के बिना देश की सेवा करने के लिए कोई उपलब्ध ही नहीं होगा ।अजीब सी समस्या है कि अच्छे लोग राजनीति में,कदाचित राजनीति की गन्दगी के कारण,आना ही नहीं चाहतें ।यही कारण है कि राजनीति करने वाले लोगों को चैलेन्ज करते रहते है कि पहले चुनाव लड़िए,फिर कोई बात कहिए ।
इस समस्या का क्या समाधान हो सकता है ? कैसे अच्छे लोगों को राजनीति से जोड़ा जा सकता है ।जब तक अच्छे लोग राजनीति से जुड़ेंगे नहीं ,तब तक ए खानदानी समाजसेवी (वर्तमान राजनीतिक लोग) हम सभी का खून पीते रहेगें
एक और स्थिति देखी जा रही है,वह यह कि न केवल रोज़ नई पार्टियां बन रही है बल्कि उससे टिकट पाने वालों की लाइन लगी है और उसमें अधिकांश ऐसे लोग है,जो या तो थोड़े दिन पूर्व ही किसी पार्टी से निकाले गए है या फिर उन्हे वहाँ या कहीं से टिकट नहीं मिला ।यह भी देखा जा रहा है कि कुछ लोगों के पास इतना पैसा हो गया है कि उसका सार्थक उपयोग वे राजनीति में ही करना चाहते है ,कदाचित इसलिए कि शायद वे राजनीति के माध्यम से हीउसे पुनः प्राप्त कर सकते है और बढ़ा तथा बचा भी सकते है ।
ऐसा कब और कैसे होगा कि पैसे वाले और पैसे के लोभी राजनीति में न आएं ,यही हम सभी को सोचना है ।मेरे विचार से ऐसा तभी और केवल तभी हो सकता है जब पूरा चुनाव सरकारी खर्च पर हो और चुनाव के लिए केवल इलेक्ट्रानिक माध्यम से ही प्रचार की अनुमति हो उसी के माध्यम से सभी उम्मीदवार अपना अपना परिचय और प्लान जनता को बताएं और उसी आधार पर वोट डाले जाय ।अभी तो जिसके पास जितना अधिक पैसा है,स्वाभाविक रूप से उसके पास उतना अधिक संसाधन है और वही बिना खास गुण के भी चुनाव जीत जाता है ।
लेकिन समस्या तो यही है कि क्या हमारी सरकार ऐसा परिवर्तनऔर संशोधन करना भी चाहती है,शायद नहीं क्योंकि ऐसा करने पर इन व्यापारियों का व्यवसाय कैसे चलेगा?घूमफिरकर समस्या फिर वही पहुँच जाती है कि शुरूआत कैसे और कब हो ?संशोधन होने तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकती ।वर्तमान में जो भी परिस्थिति है,उसीमे से रास्ता निकालना पड़ेगा ।इस कारण अभी तो जो भी उपलब्ध उम्मीदवार है,उन्हींमेसे जाति पांति से उठकर बेहतर को चुनना पड़ेगा,अन्यथा देर ही नही, अन्धेर भी हो जाएगी ।हो सकता है कि जिसे मैं बेहतर समझकर वोट दे रहा हूं,वह न जीते,लेकिन वह जीत भी तो सकता है क्योंकि मेरे और हमारी तरह और लोग भी तो ऐसा सोच सकते है ।शुरूआत और प्रयास करने में बुराई क्या है ?अच्छा करने से अच्छा होता है और अच्छाई का कोई विकल्प नहीं होता,इस कारण मेरा तो निवेदन यही है कि अब शुरूआत करनी ही चाहिए,आगे तो ईश्वर इस देश में है ही,सब संभाल लेंगे । विश्लेषक ।
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