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जनता क्या करे ?

Khula Khel Farrukkhabadi
Khula Khel Farrukkhabadi
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चुनाव का समय आ गया है ।इसके पहले देश में लोकपाल, भ्रष्टाचार, टू-जी,कामनवेल्थ-गेम्स इत्यादि विषयों को लेकर चर्चा होती रही है ।जनता अजीब सी मनःस्थिति में है क्योंकि जब वह किसी मुद्दे पर,अपनी राय व्यक्त करती है,तोउससे कहा जाता है कि वह स्वयं पाक- साफ़ नहीं है या फिर वह स्वयं चुनाव लड़ कर अपने को बेहतर साबित करे और बेहतर व्यवस्था प्रदानकरे,अन्यथा केवल बातें न करे ।
यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या जो व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता या फिर चुनाव लड़ना ही नहीं चाहता,वह क्या बुराई का विरोध भी नहीं कर सकता ?साथ ही साथ प्रश्न यह भी उठता है कि क्या राजनीति करने वालों के लिए बुराई से बच पाना संभव ही नही है ?शायद एेसा संभव होता तो कमोवेश सभी राजनीतिक पार्टियां ग़लत कार्य न करती और ग़लत कार्य करने के बाद एक समान तर्क न देती ।देखा यह जा रहाहै कि लगभग सभी पार्टियां समान रूप से ग़लत कार्य करती है ।कोई हिन्दुओं को,तो कोई मुस्लिम भाईयों को बेवकूफ बना रहा हैं ।जो एेसा नहीं कर रही है,वह जातीय आधार पर समाज को बाँट रही है ।आश्चर्य की बात तो यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां भी इन सब बुराईयों की बात स्वीकार करती है,फिर भी पता नही किस कारण से अपनी अपनी बुराइयों में पुनः लग जाती है ।
थोड़ी समाज और जनता की भी बात कर ली जाय । हम सभी राजनेताओं और राजनीति की बुराई करने में बड़े ही तेज है,लेकिन ज़रा अपनी तरफ़ झाँक कर देखें कि क्या हम सभी अपने अपने दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी से कर रहें हैै, शायद नहीं ।क्यों ? कोई जबाब नही है ।क्या अच्छाई दूसरे और सामने वाले में ही होनी चाहिए ।इस दोहरे मापदंड से नहीं चलेगा । कदाचित हम सभी न तो ईमानदार है, न ईमानदारी से सोचते है और न ही ईमानदारी चाहते है,अन्यथा समस्या का समाधान निकलने में इतनी समस्या न होती ।अभी कुछदिन पूर्व ही,मैं अपने गाँव गया था ।गाँव के काफ़ी लोगों से बातें हुई।किसी ने भी एक ईमानदार उम्मीदवार कोचुनने की बात नहीं की ।अधिकांश लोग उस व्यक्ति को चुनने को कह रहे थे जो उनके लिए सदैव उपलब्धऔरउपयोगी हो ।यह कैसे संभव हो सकता है ? एक व्यक्ति सभी लोगों के लिए कैसे उपलब्ध और उपयोगी हो सकता है ?शायद कभी नहीं ।हम सभी लोग क्यों किसी का सहारा चाहते है ?शायद कुछ अनड्यू पाने के लिए ।विद्यार्थी पढ़ाई नहीं कर रहे है,सरकारी कर्मचारी सरकारी दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे है, तो हम सबकैसे उम्मीद कर सकते है कि एक राजनेता ही साधू- संयासी बन कर सभी कामचोरो और बेईमानों की सेवा के लिए क़ानून बनाएं और लागू करवाएं ।देखा तो यहाँ तक जाता है कि एक मज़दूर जब प्रतिदिन के आधार पर कार्य करता है तोे कम मेहनत से कार्य करता हैं और वही जब ठेके पर कार्य करता है तो तेज़ी से कार्य करता है ,ऐसा क्यों है? क्या यह भी हमारे राजनेताओं ने उन्हे सिखाया है ? इन ब

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