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अरविन्द में देश सेवा का बीज

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जिस व्यक्ति को देवी मां मदर टैरेसा का आशीर्वाद मिला हो, जिसे उस देवी के साथ विश्व के सर्वोच्च सेवा आश्रम में लाचारों और असहायों की सेवा करने का अवसर मिला हो, उन लाखों लाचारों और असहायों की दुवाएं मिली हों, जिसकी प्रेरणा श्रोत स्वय मां टैरेसा हो, जिस व्यक्ति में दीवानगी इतनी कूट-कूट कर भरी हुई हो कि एक नम्बर की घूस की इन्कम टैक्स ज्वाइंन्ट कमिशनर के पद को छोड़ कर, अपने परिवार में पैसों का अम्बार और अपनी स्वय की रियासत और जागीर खड़ी न कर, देश सेवा में कूद पड़े, क्यों न विश्वास करें उसका? जी हां मैं बात कर रहा हूं अरविन्द की। आज अधिकतर ‘सिविल सर्वेन्ट’ इतना कमाते हैं कि अपनी माया नगरी बना लेते हैं। क्या कमी थी एक सभ्रान्त और सम्पन्न परिवार में जन्मे इस बेटे को? क्या जरूरत थी सारे ऐशो आराम छोड़ कर देश के कोने कोने मे जाकर धूल-मिट्टी और ‘डायबिटीज़’ की दवा फ़ांक कर देश सेवा करने की? यदि दोनों भ्रष्ट राजनैतिक दलों से सांठ-गांठ कर लेता तो क्या किसी की सरकार मे ‘कैबिनेट मत्री’ बनना बहुत कठिन था इसके लिये? क्यों कहते हैं हम ऐसे व्यक्ति को राजनैतिक महत्वाकांक्षी? ऐसे आदमी को हम अपनी भाषा मे सनकी और सिर फ़िरा कहते हैं। आज देश मे बुद्धिजीवियों के अलावा ऐसे सनकियों और सिर फ़िरों की जरूरत अधिक है। ऐसे व्यक्ति से जुड़े हुए उसके समर्थक भी सनकी और सिर फ़िरे कहलाते हैं। कोई बात नहीं। उन पर विश्वास करना आवश्यक है। उनका रास्ता आसान नहीं है। देश सेवा की चरम सीमा की महत्वाकांक्षा रखने वाले इस तरह के व्यक्ति को यदि उसके कुछ विरोधी “महत्वाकांक्षी” कहते हैं तो उनका स्वागत है। इस शब्द से प्रेरणा मिलती है। याद रखिये कि इस व्यक्ति में सेवा का जन्मजात बीज है, चाहे वह देश सेवा हो या दरिद्र नारायण सेवा। यही बीज आज अंकुरित होने का प्रयास कर रहा है। देश की आने वाली और मौजूदा पीढ़ियां कम से कम भ्रष्टाचारी, दुराचारी, चोर, डकैत, बलात्कारी, दुष्ट, देश बेचने वाले देश द्रोही आदि सम्मानों से तो उसे और उसके समर्थकों को उन्हें नहीं नवाजेंगी।

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