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एक बड़ी सुनामी की तैयारी, युवा तैयार?

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यह एक सच है कि भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण की सुनामी ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया (समाचारपत्र, इन्टरनेट, ब्लॉग, टेलीविज़न और रेडियो) को सबसे अधिक प्रभावित किया है। यह बहुत साफ़ नज़र आता है। मीडिया के बड़े बड़े स्तम्भ गिर चुके हैं। आज यह “बिका हुआ मीडिया” कहलाता है। मीडिया ने भारत के लोगों की आशाओं और अपेक्षाओं को बहुत क्षति पहुंचाई है। हमारे भ्रष्ट तन्त्र से दूरी बनाए रखने के बजाय, आज यह भी इस तन्त्र का एक हिस्सा बन कर रह गया है। जरा सोचिये कि “So sorry” cartoon की आढ़ में आजतक चेनेल ने किसका सबसे सर्वाधिक मुफ़्त प्रचार किया। कितनी अन्य पार्टियों से सम्बंधित महत्वपूर्ण घटनाओं की उपेक्षा कर केवल एक विशेष राजनीतिक दल का प्रचार कर रहे हैं ये लोग। इससे पहले इन्डिया टी0वी0 चेनेल ने “fixed” (पूर्व निर्धारित और पूर्व नियोजित) प्रश्नोतरी के आधार पर नरेन्द्र मोदी जी का पहली बार “आपकी अदालत” में कार्यक्रम पेश किया। जज साहब कमर वहीद नक़वी, इन्डिया टी0वी0 के सम्पादकीय बोर्ड के निदेशक का फ़ैसला भी पूर्व निर्धारित था। तुरन्त ही आत्मा की आवाज़ सुन नक़वी साहब ने यह बात स्वीकार करते हुए अपना त्यागपत्र दे दिया। इसी प्रकार का पक्षपातपूर्ण व्यवहार कमोवेश बहुत सी मशहूर अंग्रेज़ी न्यूज़ चेनेल पर भी हो रहा है। ऐसी घटनाएं अब आम हो गई हैं। दिल्ली चुनाव में पत्रकारो की सहायता से नकली सीडी बनवाना, उसे खासतौर से Times Now के Prime Time और India News में बार-बार महत्व देकर प्रसारित करना, चुनाव आयोग के सकारात्मक अनुमोदन कि सी0डी आपत्तिजनक नहीं है और यह खुलासा होने पर कि यह doctored है, के बाद भी उसका खन्डन न दिखलाना, अपने कार्यक्रम में एक महिला प्रत्याशी की बात न सुन कर उस पर अपना एक तरफ़ा निर्णय थोपना, क्या दर्शाता है? इस तरह के चेनेल कमाई ज्यादा और पत्रकारिता न के बराबर करते हैं।

लेकिन शेष तीन लोकतंत्र के स्तम्भों, कार्यपालिका (सरकार), विधायिका (संसद, विधान सभाएं) और न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अन्य न्यायायिक सस्थानों) का क्या? क्या यह भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण की सुनामी और लोकतत्र के क्रमबद्ध विनाश से बच पाए हैं? इस सुनामी ने देश के पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण को तबाह कर रखा है। कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं बचा।

हमारी सवैधानिक सस्थाएं इस भ्रष्ट राजनीतिक तत्र के आधीन कर दी गई हैं जहां 40 प्रतिशत अपराधी विधायिका में अपना कब्ज़ा जमा कर अपनी आवाज़ बुलन्द किये हुए हैं। ऐसी विधायिका के आदेश पर हमारी सवैधानिक सस्थाएं समय समय पर “क्लीन चिट मेला-प्रदर्शनी” का आयोजन करती हैं जहां खुले आम इन अपराधियों के पाप धोकर कानून की पकड़ से मुक्ति दिलाई जाती है। यह अपराधी जिनमें बलात्कारी, हत्यारे और अपहरणकर्ता शामिल हैं, हमारी महिलाओं के सशक्तिकरण और बलात्कार रोकने के कानून बनाते हैं। राजनीतिक अपराधीकरण को जारी रखने और उसे प्रोत्साहित करने के लिये अपने विरुद्ध न्यायालय द्वारा दिये फ़ैसलों को निरस्त करने के लिये ससद और विधान सभाओं में एक जुट होकर अध्यादेश लाते हैं। जनता से अपनी काले धन की कमाई छिपाने के लिये सारे भ्रष्टाचारी सगठित होकर RTI के आधीन होने का विरोध करते हैं, अध्यादेश लाते हैं। अपने सयुक्त अजेन्डा के अन्तर्गत भ्रष्टाचार और अपराधीकरण बेरोक-टोक चलाने पर आपस में एक अनौखी एकता दिखाते हैं। आपको याद है न कि किस तरह जन लोकपाल को ध्वस्त करने के लिये इन भ्रष्टाचारियों ने संसद और बाहर एड़ी चोटी का जोर लगा दिया ताकि कि इनकी भ्रष्टाचार की दुकाने चलती रहें। यह लोग इतने गिर गए और इन्हें सफ़लता भी मिली देश व्यापी भ्रष्टाचार उन्मूलन आंदोलन को समूल नष्ट करने में। इनके चार प्यादे जिन्होने इस आन्दोलन में सेंध लगाई आज इनाम पा रहे हैं। इनकी बेशर्मी देखिये कि आंदोलन को समूल नष्ट करने के बाद भी यही लोग देश से भ्रष्टाचार मिटाने का चुनावी वायदा करते हैं।

इन लोगों ने हमारे युवाओं को न केवल पथ भ्रष्ट किया बल्कि सब्ज़बागी सपने दिखाकर उन्हें सम्मोहित कर दिया है। पिछले 67 सालों से इनका मुख्य पेशा रहा है सब्ज़बागी सपने बुनना, दिखाना और बेचना। हमारे भ्रमित युवा कोई तर्कसंगत बात सुनने को तैयार नहीं हैं। राजनैतिक दलों ने अपने स्वार्थ के लिये उन्हें इतना बांट दिया है कि वह कभी एक होकर इन अपराधी राजनेताओं को उखाड़ फ़ैक अपने लोकतंत्र को वापिस पटरी पर ले आएं का सकल्प नहीं कर सकते। वह हमेशा एक झूठी आशा में जीते हैं कि उनके आका लोग परिवर्तन लाएंगे। हमारे युवाओं के पास खुद का अपना सशक्त नेतृत्व नहीं है। उनका जहाज़ बिना पतवार के चल रहा है। उनके दिमाग को इस हद तक धो दिया है कि वे भी इन अपराधियों और भ्रष्टाचारियों की भाषा बोलते हैं।

जब हम कार्यपालिका की बात करते हैं तो जो बाबू और अफ़सर लाखों मे घोटाले करते हैं उन्हे उनके करोड़ों मे घोटाले करने वाले सहयोगी हीन द्रष्टि से देखते हैं। शुक्र है हमारे सर्वोच्च न्यायालय का कि उसने सर्वोच्च श्रेणी के सरकारी अफ़सरों को भी लोकपाल के दायरे में लाकर बिना सरकारी अनुमति के भ्रष्टाचार के मामले चलाने का प्रावधान कर दिया है। लेकिन डर है कि जैसे ही यह भ्रष्टाचारी सत्ता में वापिस आएंगे यथा स्थिति कायम कर देंगे क्यों कि इनकी दुकानें सर्वोच्च अधिकारियों के सहयोग के बिना नहीं चलती हैं।

अब बात करें न्यायपालिका की। उच्च न्यायपालिका से कुछ आशा नज़र आती है। लेकिन क्या एक गरीब जिसके पास लाखों-करोड़ों रुपये न हों वह अपनी दस गज़ ज़मीन बचाने के लिये इन अदालतों का दरवाजा खटखटा सकता है? आज का न्याय गरीब की पहुंच से बाहर है। बहुत महगे वकीलों के पास “विद्वता” होती है कि वह बनाए गये साक्षों और प्रमाणों के आधार पर सच को झूठ और झूठ को सच साबित कर दें यदि आपके पास 10 से 25 लाख हर पेशी उनकी फ़ीस दंने की सामर्थ है तो। अपराधियों को बचाने और उनके केस जीतने में वे गर्व महसूस करते है क्यों कि यह उनका पेशा है। यही हत्या के बड़े अपराधी ‘बाइज़्ज़त बरी’ होने के बाद मुख्यमंत्री तक बन सकते हैं। हालांकि स्वय न्यायपालिका भी अपने कुछ जजों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण अपमानित हुई है। प्रार्थना कीजिये कि भ्रष्टाचार इसमें प्रवेश न कर पाए। परन्तु आज भी निचली अदालतें पूर्णत: भ्रष्टाचार मुक्त है, यह नहीं कहा जा सकता।

अपने खुद के भविष्य के खातिर आज देश के युवाओं की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि पटरी से उतरे हुए अपने लोकतंत्र को एक बार फ़िर वापिस पटरी पर खड़ा करे। याद रखें कि हमारे पारंपरिक राजनीतिक दल इस काम को कभी नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करना उनके हित में नही है। यह सभी जनता की इच्छा के विरुद्ध एकजुट खड़े हैं।

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