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कैसा आश्चर्य? यह तो होना ही था!!!

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पिछले 5 दशकों से अधिक प्रबन्ध के क्षेत्र में परामर्शदाता, प्रशिक्षक व अन्वेषक का अनुभव व दक्षता-प्राप्त विष्णु श्रीवास्तव आज एक स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं। वह एक ग़ैर-सरकारी एवं अलाभकारी संगठन “मैनेजमैन्ट मन्त्र ट्रेनिंग एण्ड कन्सल्टेन्सी” के माध्यम से अपने व्यवसाय में सेवारत हैं। इस संगठन को श्री श्री रविशंकर का आशीर्वाद प्राप्त है। विष्णु श्रीवास्तव ने “आर्ट ऑफ़ लिविंग” संस्थान से सुदर्शन क्रिया व अग्रवर्ती योग प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें अंग्रेज़ी साहित्य व ‘बिज़नेस मैनेजमैन्ट’ मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं। वह “वरिष्ठ नागरिकों की आवाज़” नामक ग़ैर-गैरकारी संगठन में सक्रिय रूप से जुड़े हैं। इनके कई व्यावसायिक लेख “प्रॉड्क्टीविटी” और “इकोनोमिक टाइम्स” मे प्रकाशित हो चुके हैं।

क्या भारतीय जनता पार्टी की कर्नाटक में हार अप्रत्याशित है? हरगिज़ नहीं। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिये ही करता है।

क्या काँग्रेस को वांछित बहुमत मिलना अपेक्षित था? जी हां। क्या कर्नाटक की जनता के पास और कोई विकल्प था? नहीं। क्या जनता एक बार फ़िर भ्रष्ट यदुरप्पा और उनकी कर्नाटक जनता पार्टी को चुनती? हर्गिज़ नहीं? क्या सत्ता लोलुप कुमारस्वामी और उनके जनता दल (ऐस) को एक बार फ़िर गलती से चुनती जिन्होनें किसी भी तरह से सत्ता हतियाने के हथकन्डे प्रयोग कर पिछ्ली बार राज्य मे अस्थिरता लाई? हर्गिज़ नहीं।

तो फ़िर और क्या विकल्प था कर्नाटक की जनता के पास? जन प्रतिनिधि कानून में अभी तक इन स्वार्थियों ने सुझाए गये सशोधन नहीं किये। जनता क्या करती एक दूसरी भ्रष्ट पार्टी कांग्रेस को चुनने के अलावा यह सोच कर कि वह कम से कम विकास के नाम पर कुछ काम तो करेगी, केवल भ्रष्टाचार नहीं। तो चुन ली गई कांग्रेस। लगे लड्डू बटने। राहुल बाबा को 35% पास मार्क्स मिल गये तो प्रशसक उनके चमत्कार के गुण गाने लगे। चापलूसी की सारी हदें पार कर गये। मम्मी भी बेटे की पहली कामयाबी से आत्म विभोर हो गई। सोचती हैं कि अब मेरे बेटे में प्रधानमन्त्री बनने के सारे गुण और योग्यता आ गई। कर्नाटक विजय अब उनके लिये विश्व विजय बन गई। वाह कितने लोकप्रिय हैं यह नेता और उनकी पार्टी जिसे नित्य नये नये घोटाले करने और उन्हें उजागर करने में माहिरात हासिल है।

अब इस जीत के लिये राहुल बाबा को श्रेय देना या हार के लिये नरेन्द्र मोदी या यदुरप्पा को बदनाम करना कहां तक ठीक है यह हम और आप सोचें। यह राजनैतिक पार्टियां इतनी अन्तर्मुखी हैं कि अपने ही बनाए गये तर्कों से अपनी हार-जीत के कारण बताने लगती हैं और सन्तुष्ट हो जाती हैं। तनिक भी बहिर्मुखी होकर वास्तविकता को जानने का प्रयास नहीं करती। क्यों कि वास्तविकता बहुत भयावह है।

कहावत है कि “एक छलनी सूप से कहती है अपने अन्दर झांक कर देखो कितने छेद हैं”। परन्तु छलनी स्वय यह भूल जाती है कि उसके खुद के अन्दर सूप से हज़ार गुना ज्यादा छेद हैं। भ्रष्टाचार में काँग्रेस की प्रतिद्वन्द्वी भारतीय जनता पार्टी जब कर्नाटक की जनता को केन्द्र में काँग्रेस के अभूतपूर्व भ्रष्टाचार के बारे में बताने निकली तो यह भूल गई कि स्वय ने कितने यदुरप्पा और रैडी पाल रखे हैं। कितने गडकरियों को सरक्षण दे रही है। उसने समझा कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश व्यापी जन आन्दोलन को मुद्दा बना कर वह कर्नाटक की जनता का दिल जीतने मे एक बार फ़िर सफ़ल हो जाएगी। उसने सोचा कि इस प्रक्रिया में उसका खुले भ्रष्टाचार का खेल और कर्नाटक में विकास की अनदेखी को शायद वहां की जनता नज़रअंदाज़ कर देगी।

क्या यह वही भारतीय जनता पार्टी नहीं है जो कि अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी जन लोकपाल आन्दोलन का सहारा लेकर देश की सत्ता हथियाने का ख्वाब देख रही थी? समय आने पर इसने ससद में जन लोकपाल बिल की कितनी छीछालैदर की थी? क्या देश की जनता भूल जाएगी यह सब? देश समझ रहा था कि शायद इनके समर्थन से जन लोकपाल बिल पास हो जाएगा। पर सिर से पैर तक भ्रष्टाचार में लिप्त भारतीय जनता पार्टी जन लोकपाल बिल का समर्थन कर कैसे अपनी ही कब्र खोदती?

कहावत है कि हम एक बार अपनी चालाकी से किसी को मूर्ख बना सकते हैं लेकिन बार बार नहीं। एक समय था कि हम सोचते थे कि देश के समक्ष कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं है। तब अपने ताम झाम से “भय, भूख, भ्रष्टाचार” मिटाने, “राम मन्दिर” बनाने, तुष्टीकरण दूर कर सच्ची “धर्मनिरपेक्षता” स्थापित करने, “सुराज” लाने, व्यवस्था परिवर्तन करने, एक प्रगतिशील आदर्श्वादी पार्टी के रूप मे भारतीय जनता पार्टी एक विकल्प के रूप मे उभर कर आई। देश ने सर माथे पर बिठाया इसे।

लेकिन वास्तविकता यह है कि इन मुद्दों से इस पार्टी का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है। हां इन मुद्दों के सहारे सत्ता हथियाना इसकी रणनीति हमेशा रही है। देश के व्यवसायियों और पूंजीपतियों के हाथों बिकी एक पार्टी बन कर रह गई। इसका दुर्भाग्य कि यह देश मे भ्रष्ट कांग्रेस का विकल्प और एक आदर्श बनने के बजाय इस क्षेत्र में उसके प्रतिद्वंद्वी बन गई। आज यह और काँग्रेस दोनों सगे मौसेरे भाई हैं और अक्सर मिल कर बारी बारी से ससद और उसके बाहर नूरा कुश्ती लड़ते रहते हैं। अब मनाइये घर में शोक और कीजिये 2014 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री बनाने और अपनी अन्तिम यात्रा की तैयारी।

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