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अण्णा आन्दोलन को ध्वस्त करने की एक सच्चाई

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निस्संदेह अण्णा का वैचारिक, मानसिक और निजि शोषण भाजपा की ‘बी’ टीम ने किया जिसमे मुख्य भूमिका निभाई किरण बेदी, वी0के0 सिंह और रामदेव ने। इसमे कोई सदेह नही कि अण्णा बड़े आत्मबल के धनी हैं और इसी के सहारे अनेक अविस्मरणीय काम किये है जिसके कारण उन्हें देश ने पद्मभूषण से नवाज़ा। लेकिन उनकी कमज़ोरियों मे औपचारिक शिक्षा की कमी, अहम, और कच्चे कान का होना शामिल है। इन्हीं कमज़ोरियों का भरपूर फ़ायदा भाजपा की ‘बी’ टीम ने उठाया। अंग्रेज़ी का अधिक ज्ञान न होने के कारण कानूनी और पेचीदा बातें उन्हें गलत ढंग से समझाई गई। टीम से अरविन्द के अलग होने के बाद, वास्तविकता यह है कि, अण्णा और बहुत हद तक उनके द्वारा चलाये जाने वाला आन्दोलन बहुत शिथिल पड़ गया और अरविन्द अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व और क्षमता के कारण अपने लक्ष्य मे बहुत आगे निकल गये।

बहुत हद तक धीरे धीरे जनता को यह आभास होने लगा कि उनके द्वारा पार्टी बनाने का विकल्प सही है। इस नवोदय को अति महत्वाकांक्षी किरन बेदी, वी0के0 सिह और रामदेव ने अपनी निजि आकांक्षाओं के लिये एक बड़ी चुनौती समझा। किरण बेदी ने अरविन्द में एक सहयोगी की जगह अपने भविष्य के लिये एक बड़े प्रतिद्वन्द्वी की छवि देखी। उन्होनें गडकरी के घिराव का विरोध कर, अण्णा की इच्छा के विरुद्ध अकेले ही रामदेव की सभा में भाग लेकर, भाजपा में अपना स्थान बना लिया। इधर महत्वाकांक्षी जनरल ने भी अपने आगे बढ़ने का मार्ग अण्णा से होकर ही जाते देखा। मनोवैज्ञानिक रूप से एक सेनाध्यक्ष के व्यक्तित्व का साया सेना मे रहे एक ड्राइवर (अण्णा) पर हावी हो गया। यही कारण है कि भाजपा की राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े होते हुए भी अण्णा ने साहस जुटा कर कभी उन्हें अपने आन्दोलन से हटाया नहीं। बल्कि उलटे गोपालराय पर गुस्से में बरस पड़े। यह सब एक बड़े षड़यत्र के तहत ही हुआ और हो रहा है ताकि आन्दोलन समूल मिट जाए और भ्रष्टाचार की केवल 40% दुकानें ही बन्द हों। शेष 60% बदस्तूर चलती रहें।

ये तथाकथित तीन “बुद्धिजीवी” अण्णा की मुहिम को ध्वस्त करने के लिये भाजपा द्वारा ‘प्लान्ट’ किये गए थे। इनकी रणनीति देखिये। लाखों लोगों की भीड़ के सामने देश की 23 जानीमानी हस्तियों और बुद्धिजीवियों के आवाहन पर वी0के0सिंह द्वारा अरविन्द केजरीवाल का अनशन तुड़वाया गया यह कह कर कि इस सवेदनाहीन सरकार से सघर्ष करने के लिये अब राजनीतिक विकल्प अनिवार्य हो गया है। मौजूद 90% लोगों के विशाल जन समूह ने समर्थन किया। जब विकल्प खड़ा होने लगा तो अण्णा के आन्दोलन को तोड़ने के लिये यही लोग उसका विरोध करने लगे। राजनीति से दूर रहने की बात करने लगे। स्वय अण्णा भी इस साजिश के शिकार हो गये। अरविन्द और अण्णा में इस मुद्दे पर इतने मतभेद पैदा कर दिये के आन्दोलन टूटने की कगार पर खड़ा हो गया।

कुछ लोग किरण बेदी, सेवानिवृत्त सेनाध्यक्ष जनरल वी0के0 सिंह और बाबा रामदेव जैसे व्यक्तियों को “बुद्धिजीवी” कह कर देश के समस्त बुद्धिजीवियों का अपमान करते हैं। इन्हें “बुद्धिमान” कहें तो बहुत हद तक सही होगा। ये लोग शतरंज के वो खिलाड़ी हैं जो कि अपनी निजि मह्त्वाकांक्षाओं के लिये कुछ भी कर सकते हैं। बड़े से बड़े आन्दोलन को अपने आकाओं के आदेश पर तोड़ सकते हैं यदि इन्हें सता की तीन कुर्सियां मिल जाएं तो। काँग्रेस द्वारा प्रायोजित एक चौथा “बुद्धिजीवी” “कपिल मुनी” का परम मित्र “स्वामी” अग्निवेष को भी इनकी जमात में शामिल कर लें।

वास्तव में अण्णा के आन्दोलन को विफ़ल बनाने की सुनियोजित योजना भाजपा और काँग्रेस ने बनाई। ये वही लोग है, जिन्होनें अण्णा के साथ विश्वासघात किया और बदनाम करते हैं अरविन्द केजरीवाल को। अण्णा तो पुकार पुकार कर कह रहे हैं कि अरविन्द ने मेरे साथ कोई धोका नहीं किया। हमारी मज़िल एक पर रास्ते दो हैं। अपना मकसद पूरा हो जाने पर यहीं तीनों भाजपा में अपना राजनीतिक विकल्प खोजने लगे।

आज ये अण्णा आन्दोलन को श्मशान तक कन्धा देनेवाले चारों “बुद्धिजीवी” सत्ता का सुख भोग रहे हैं।

यही तो है हमारे आधुनिक लोकतंत्र का स्वरूप। लेकिन आज भी मौजूद हैं बृज बेदी जी जैसे स्पष्टवादी जो सत्य से परहेज नहीं करते।

अण्णा जागिये; विचार कीजिये कि आपके गुनहगार कौन हैं; किसने ध्वस्त किया आपका आन्दोलन; अपनी भूल स्वीकार कर अपने मुंह से देश को बताइये इन विश्वासघातियों के नाम जिन्होंने आपको धोखा दिया; खुलासा कीजिये इनके षड्यंत्र का; और फ़िर एक बार भरिये देश को जगाने और इन दुष्ट भ्रष्टाचारियों को पसीना-पसीना करनेवाली हुंकार! जितनी ज़रूरत इस नेतृत्वहीन देश को आज है आपकी, उतनी इससे पहले कभी नहीं रही।

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