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न बेटा बिलावल, ऐसी हिमाक़त न करना!

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पिछले 5 दशकों से अधिक प्रबन्ध के क्षेत्र में परामर्शदाता, प्रशिक्षक व अन्वेषक का अनुभव व दक्षता-प्राप्त विष्णु श्रीवास्तव आज एक स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं। वह एक ग़ैर-सरकारी एवं अलाभकारी संगठन “मैनेजमैन्ट मन्त्र ट्रेनिंग एण्ड कन्सल्टेन्सी” के माध्यम से अपने व्यवसाय में सेवारत हैं। इस संगठन को श्री श्री रविशंकर का आशीर्वाद प्राप्त है। विष्णु श्रीवास्तव ने “आर्ट ऑफ़ लिविंग” संस्थान से सुदर्शन क्रिया व अग्रवर्ती योग प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें अंग्रेज़ी साहित्य व ‘बिज़नेस मैनेजमैन्ट’ मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं। वह “वरिष्ठ नागरिकों की आवाज़” नामक ग़ैर-गैरकारी संगठन में सक्रिय रूप से जुड़े हैं। इनके कई व्यावसायिक लेख “प्रॉड्क्टीविटी” और “इकोनोमिक टाइम्स” मे प्रकाशित हो चुके हैं।

बिलावल बेटे, तुम्हारे नाना ने कोशिश की तो देश के दो टुकड़े करवा दिये। बंगलादेश बन गया। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने घुटने टेक दिये। बन्दी बना लिये गये। लाहौर में भारतीय सेना प्रवेश कर गई तो अपने आकाओं से मिन्नत कर रुकवाया। दोनों कान पकड़ कर “बाप, बाप” कर गये। घुटने टेक कर सिमला समझौता किया। अगर यक़ीन न हो तो रिश्ते में अपने नाना जनरल टिक्का खान (जो कि “बगाल के कसाई” (Butcher of Bengal) के नाम से जाने जाते हैं) और जनरल न्याज़ी की मज़ार पर जाकर पूछो। और ज्यादा सही और नेक सलाह के लिये अपने ज़ुल्फ़ी नाना और मम्मी से पूछ लो। शर्म से डूबे हुए तुम्हें अपनी दास्तां सुनाएंगे। या फ़िर हिन्दुस्तान आकर हमारे वीर सेनानियों जनरल सैम मानेकशा, जगजीत सिंह अरोरा, सागत सिंह और जे0एफ़0आर0 जेकब से गुफ़्तगू कर लो। कारगिल में “बचाओ, बचाओ” कहते हुए दुम दबा कर भागे और छिप गये अपनी मां की गोद में। धमकी देते हैं कि “हम भी Nuclear देश हैं। लेकिन भूल जाते हैं कि भारत पर तुम्हारे एक ही Nuclear हमले के जवाब में तुम्हारा मुल्क तो दुनिया के नक्शे से ही मिट जाएगा। मिटाने के लिये एक ही Nuclear device काफ़ी है। हम लोग शान्त हैं केवल अपने अकुशल और अक्षम नेतृत्व के कारण। 1948 में सिर्फ़ 24 घन्टों का समय चाहिये था हमारी फ़ौजों को आपसे अपना शेष काश्मीर वापिस लेने के लिये। हमारी फ़ोज ने हमारे नेताओं से इस समस्या को हल करने के लिये सिर्फ़ 24 घन्टों का समय मांगा। लेकिन अपने अकुशल नेता की एक बहुत भारी भूल के कारण जो कि मसले को लेकर स्रयुंक्त राष्ट्र पहुंच गये, हम आज भी परिणाम भोग रहे हैं। काश कि विदेश में शिक्षा पा रहे आपको अपने देश के इतिहास और भूगोल का पूरा बोध होता। अभी तो दूध के दांत भी नहीं टूटे और न अक्कल डाढ़ निकली है और बात करते है बड़े-बड़े सूरमाओं की। बेटे तुम्हारे इस ख्वाब को खुदाबन्द ताला कभी पूरा नहीं होने देंगे।

गलती से भी गलती न करना ऐसी हिमाकत करने की, समझे!

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