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स्मृति ईरानी की शिक्षा पर इतना विवाद क्यों?

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पिछले 5 दशकों से अधिक प्रबन्ध के क्षेत्र में परामर्शदाता, प्रशिक्षक व अन्वेषक का अनुभव व दक्षता-प्राप्त विष्णु श्रीवास्तव आज एक स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं। वह एक ग़ैर-सरकारी एवं अलाभकारी संगठन “मैनेजमैन्ट मन्त्र ट्रेनिंग एण्ड कन्सल्टेन्सी” के माध्यम से अपने व्यवसाय में सेवारत हैं। इस संगठन को श्री श्री रविशंकर का आशीर्वाद प्राप्त है। विष्णु श्रीवास्तव ने “आर्ट ऑफ़ लिविंग” संस्थान से सुदर्शन क्रिया व अग्रवर्ती योग प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें अंग्रेज़ी साहित्य व ‘बिज़नेस मैनेजमैन्ट’ मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं। वह “वरिष्ठ नागरिकों की आवाज़” नामक ग़ैर-गैरकारी संगठन में सक्रिय रूप से जुड़े हैं। इनके कई व्यावसायिक लेख “प्रॉड्क्टीविटी” और “इकोनोमिक टाइम्स” मे प्रकाशित हो चुके हैं।

भारत का सविधान मन्त्री या प्रधानमन्त्री की नियुक्ति के लिये किसी शैक्षिक योग्यता का होना अनिवार्य नहीं मानता। फ़िर चाहे हमारी मानव ससाधन विकास मन्त्री स्मृति ईरानी बिल्कुल भी शिक्षित न हों तो इसमें क्या असवैधानिक या गैर कानूनी है? और फ़िर बहुत शिक्षित विद्वानों ने ही शिक्षा मन्त्री बन कर हमारी शिक्षा प्रणाली कें कौन सा चमत्कारिक परिवर्तन ला दिया? यही तर्क देते हैं हमारी मानव ससाधन विकास मन्त्री स्मृति ईरानी के समर्थक। उनका तर्क सवैधानिकरूप से सही है। और कम शिक्षित होकर भी वह शिक्षा के क्षेत्र में क्या उपलब्धि हासिल करेंगी, यह तो केवल समय ही बताएगा।

लेकिन इसका दूसरा पहलू कैसे हजम करें जहां पर एक मन्त्री स्तर की महिला अपनी शैक्षिक योग्यता के बारे में तीन शपथपत्रों मे तीन प्रकार की अलग-अलग जानकारी देती हैं? एक जगह जब वह 2004 का चुनाव दिल्ली से लड़ती है तो अपने को 1996 की BA बताती हैं, तो दूसरी जगह 2011 के राज्य सभा के चुनाव में B.Com ((Part-I) और तीसरी जगह 2014 के चुनाव में अपने को B.A. (Part-I) बताती हैं? इससे स्पष्ट है कि तीन में से दो या तीनों शपथपत्र गलत हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय पर अपने पद का दुरुपयोग कर दवाब डाल कर सहयोग मांगा गया। खबर आई कि विश्वविद्यालय के पांच कर्मचारी निलम्बित कर दिये गए। असली विवाद अब यह है कि क्या भारत के सविधान और कानून ने एक मन्त्री स्तर के व्यक्ति को तीन शपथपत्रों में गलत जानकारी देने की छूट दे रखी है? क्या ऐसा करना एक दन्डनीय अपराध नहीं है? वैसे तो हमारी ससद और मन्त्रिमन्डल में लगभग 30% गम्भीर अपराध के आरोपी सदस्य है जिनका अपराध सिद्ध होना शेष है। पर हमारी मानव ससाधन विकास मन्त्री का मामला तो जनता को बिल्कुल साफ़ नज़र आ रहा है। हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने इसी तरह के एक मामले में पाँच साल की सज़ा भी सुनाई है। खबर है कि राष्ट्रीय स्वय सेवक सघ के दवाब में मोदी जी ने इन्हें अपने मन्त्रिमन्डल में शामिल किया। क्या इसे fraud, breach of trust, cheating with mala fide intention and misuse of official authority का मामला नहीं मानना चाहिए? जैसा कि मालूम हुआ है इसी आशय से दिल्ली की एक महिला वकील और RTI activist दिल्ली के पार्लियामेन्ट स्ट्रीट थाने में इस मामले में एक FIR दर्ज कराने का भरसक प्रयास कर रही हैं और मामला न्यायालय में जाने वाला है। जिस प्रकार से अशिक्षित होते हुए भी किसी व्यक्ति को मन्त्री या प्रधानमन्त्री बनने का सवैधानिक हक़ है तो यह जानने का हम सबका भी सवैधानिक हक़ है कि वह किसी fraud, breach of trust, cheating with mala fide intention and misuse of official authority के मामले में दोषी तो नहीं है। जब हम व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं तो क्या इस प्रकार के तत्व हमारी मौजूदा व्यवस्था से समूल नष्ट नहीं होने चाहिये?

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