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आध्यात्म अनुभूति से उपन्न होता है…

विशुद्ध चैतन्य
विशुद्ध चैतन्य
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mountabuआध्यात्म अनुभूति से उपन्न होता है और संसार समाज से (जीव जंतुओं का भी अपना एक समाज होता है केवल मनुष्य ही समाज नहीं बनाते) | एक भाव और अनुभूति पर आधारित है और दूसरा व्यवहारिकता और दृश्य तथ्य पर आधारित है | और मैं रामराज्य का पक्षधर नहीं हूँ जहाँ एक धर्मपरायण पतिव्रता पत्नी को एक धोबन के कहने पर त्याग दिया जाता है मानो वह मानव नहीं कोई वस्तु हो |

पंडिताई और डॉक्टरी दोनों ही समान व्यवसाय है | एक मानसिक रोगियों को स्वस्थ करता है और दूसरा शारीरिक रोगियों को | ये दोनों ही स्वस्थ व्यवसाय हैं जब तक दोनों का उद्देश्य जन कल्याण है न कि अनुचित धनलाभ | लेकिन दोनों ही व्यवसाय से ऊपर उठ जाते हैं और पूजनीय हो जाते हैं जब उनका भाव सेवा का हो जाता है | जब वे पाने की अपेक्षा से नहीं केवल सेवा के उद्देश्य से कार्य करने लगते हैं | और ऐसे कई लोगों को मैं निजी रूप मैं जानता भी हूँ जिनमें कई बुजुर्ग पण्डे और आयुर्वेदाचार्य भी हैं | हवन करने से न केवल वातावरण शुद्ध होता है वरन कई नकारात्मक उर्जा का भी नाश होता है और मन व शरीर में एक आलौकिक अनुभूति उत्पन्न होती है |

अब यही सब क्रियाएं पाखण्ड हो जाती है जब कर्ता का उद्देश्य धनोन्मुख हो जाता है | डॉक्टर कमीशन के लालच में अनावश्यक दवाएँ व टेस्ट लिख देता हैं, अनावश्यक ऑपरेशन कर या करवा देता है | पंडा या पंडित काल सर्प दोष और कोई भय दिखा कर पूजन हवन आदि कराता है, अनावश्यक व्यय और दान आदि करवाता है, विश्वास और श्रद्धा का लाभ लेकर राजनीतिज्ञों और सरकारी अफसरों से फ़र्जी दस्तावेजों पर दस्तखत करवाता है और दूसरों के ज़मीन जायदाद पर कब्ज़ा करता है | इनको पाखंडी इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अपने मूल कर्म और समाज के आड़ में धोखाधड़ी करके सदाचारी, धर्मनिष्ठ, ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ पंडों, पंडितों, साधू-संतों आदि को भी कलंकित करते हैं | इन लोगों के वजह से सभी अविश्वास के घेरे में आ जाते हैं | यह सही है कि इन लोगों की संख्या बहुत कम है लेकिन ये लोग ही सबसे आगे मिलते हैं |

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