मेरा नज़रिया
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और अंत में एक प्रसंग याद कर लेना समीचीन होगा. गुजरात दंगों के दौरान मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा था कि ‘अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री न चाहे तो उस राज्य में दंगे नहीं हो सकते’. भले ही यह बात एक राजनीतिबाज ने कही हो लेकिन इस बात में ‘दम’ है. इसी तर्ज पर क्या हम यह नहीं कह सकते कि अगर किसी कॉलेज का प्राचार्य न चाहे तो उसके कॉलेज (परिसर व छात्रावास) में रैगिंग हो ही नहीं सकती!
तात्पर्य यह है कि कोई प्राचार्य अगर ठान ले कि वह अपने कॉलेज में रैगिंग नहीं होने देगा, तो मजाल है कि कोई सीनियर छात्र या छात्रा रैगिंग करने की जुर्रत भी करे, फिर चाहे वह कितना ही ‘बिगड़ैल सांड’ क्यों न हो! और तभी हम इस कथन को चरितार्थ कर पाएंगे कि, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई’.
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