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धर्मान्तरण हिन्दू संस्कृति की देन है. धर्म परिवर्तन ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग ने नहीं किया. सिर्फ शूद्र वर्ग ने दमन के चलते किया क्योंकि उन्हें ‘अछूत’ कहकर समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया गया था. जिस सड़क से सवर्ण गुजरते थे, उस सड़क से अछूतों को गुजरने नहीं दिया जाता था. उन्हें संस्कृत सीखने की मनाही थी, क्योंकि अगर ‘अछूत’ या ‘शूद्र’ संस्कृत सीख लेते तो पण्डे-पुजारियों की पोल खुल जाती और उनका चरण-चुम्बन बंद हो जाता. ये खुद को ऊंचा समझने वाले शूद्रों से छुआछूत बरतते हैं. आज भी कमोबेश यही स्थिति है. फिर ये विवश धर्म परिवर्तन न करें तो क्या करें?
बेहतर तो यह होगा कि हम हिन्दू संस्कृति या इस्लाम संस्कृति की बातें न कर सिर्फ भारतीय संस्कृति की बातें करें, मानव संस्कृति की बातें करें. अतीत में पुरोहितवाद ने हमारे देश की जनता को बहुत लूटा है. हमें इनसे सावधान रहना होगा ताकि ये भविष्य में हमें न लूट सकें. हम सब इंसान हैं. बस यही भावना होनी चाहिए.
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