मेरा नज़रिया
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दहेज़ विरोधी कानूनों का मखौल उड़ाते हुए देशभर में 99 % शादियों में दहेज़ का लेनदेन होता है, अर्थात मातापिता अपने बेटों को बेचते हैं. इन व्यापारियों से तो वे मातापिता बेहतर माने जाएंगे जो गरीबी की वजह से, पेट की आग बुझाने के लिए अपनी बेटियों को बेचते हैं. ये दोनों ही स्थितियां सभ्य समाज पर कलंक हैं. एक तरफ जब मातापिता लाखों रुपये में अपने बेटों को बेचते हैं (दहेज़ लेते हैं) तो कोई चूं तक नहीं बोलता, दूसरी तरफ जब कुछ मजबूर मातापिता अपनी बेटियों को चंद रुपयों के लिए बेचते हैं तो यह खबरों की सुर्खियां बन जाती हैं. इससे हमारे भारतीय समाज का दोगलापन जाहिर होता है. अतः बेटियों की बिक्री तो बंद होनी ही चाहिए, लेकिन साथ में बेटों की बिक्री भी बंद हो!
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