मेरा नज़रिया
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अब वक्त आ गया है कि हम इस विकृत मानसिकता को बदलें. इसका इलाज करें और इलाज यही है कि ऐसी अमानवीय कुप्रथाओं (चाहे वह आधुनिक रैगिंग हो या पुरातन प्रताड़नाएं) पर अंकुश लगाएं. ‘पाप की दवा पाप करना छोड़ देना है’, इस उसूल पर अमल करें. पहले पाप करके और फिर उसे धोना, यह कौनसा तरीका है? क्या थूक कर भी कोई उसे चाटता है? बेहतर है थूकें ही नहीं!
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