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भारतीय समाज कहीं नजर नहीं आता!

मेरा नज़रिया
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बड़े अफ़सोस की बात है कि इस इक्कीसवीं सदी में भी हमारा समाज ‘कुनबों’ और ‘जातियों’ में बंटा हुआ है. मिसाल के तौर पर कहीं ‘बिहारी कल्याण मंच’ नजर आता है, तो कहीं ‘मारवाड़ी युवा मंच’. कहीं पर ‘ब्राह्मण समाज’ है, तो कहीं ‘वाल्मीकि समाज’. कोई ‘भोजपुरी समाज’ से है, तो कोई ‘मैथिली समाज’ से. कोई ‘आमरा बंगाली’ है, तो कोई ‘हामी गोरखा’. कोई ‘मराठा मानुस’ है, तो कोई ‘कश्मीरी’. मगर, एकमात्र ‘भारतीय’ कोई नहीं! यह जानते हुए भी कि हम सब मानव हैं और ‘मानव जाति’ से सम्बंधित हैं, अपने आप को टुकड़ों में बांटते जा रहे हैं और अब तो इन ‘समाजों’ की संख्या बढ़ती ही जा रही है. शायद इसीलिए हम आतंकवाद और भ्रष्टाचार का मुकाबला नहीं कर पा रहे, क्योंकि हम ‘कुनबों’ में बंटे हुए हैं.

आज़ादी के 67 साल बाद भी अगर हम एक ‘भारतीय समाज’ का निर्माण न कर पाए तो हमने क्या किया? यह टुकड़ों में बंटा समाज हमें किधर ले जाएगा? क्या हम एक और सिर्फ एक ‘भारतीय समाज’ का निर्माण नहीं कर सकते? क्या हम ‘भारतीय युवा मंच’ या ‘भारतीय कल्याण मंच’ गठित नहीं कर सकते?

आइये, हमसब मिलकर एक ‘भारतीय समाज’ और अंततोगत्वा एक ‘भारतीय राष्ट्र’ का निर्माण करें. केंद्र में ‘नई सरकार’ ( सोलहवीं लोकसभा) के गठन के अवसर पर हम यही संकल्प करें!

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