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एक तरफ तो भारत सरकार धर्मनिरपेक्षता व इसके महत्व की रट लगाती रहती है, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के कुछ विश्वविद्यालयों का नामकरण सांप्रदायिक आधार पर किया जाता है. इस संदर्भ में यहां अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) व बनारस (काशी) हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के नाम निसंदेह लिए जा सकते हैं. देश के लगभग 500 विश्वविद्यालयों में इन्हीं 2 के नामकरण धार्मिक/सांप्रदायिक आधार पर किए गए हैं. सरकार अगर वाकई में धर्मनिरपेक्ष है तो इन 2 विश्वविद्यालयों के नाम में परिवर्तन क्यों नहीं करती?
उपर्युक्त 2 विश्वविद्यालयों के नाम में ‘मुस्लिम’ व ‘हिन्दू’ शब्द हमें सांप्रदायिकता की याद दिलाता है. इससे साधारण जनता में यह संदेह घर कर जाता है कि शायद एएमयू में सिर्फ मुस्लिम विद्यार्थी ही प्रवेश पाते होंगे तथा तदनुसार बीएचयू में सिर्फ हिन्दू विद्यार्थियों का ही नामांकन होता होगा. जबकि हकीकत इसके विपरीत है. सभी सम्प्रदायों के विद्यार्थी इन दोनों विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाते हैं तथा पूर्णतया सौहार्द्र के वातावरण में पढाई करते हैं. फिर उपर्युक्त 2 विश्वविद्यालयों के नाम के आगे ‘मुस्लिम’ व ‘हिन्दू’ शब्द जोड़ने के पीछे क्या तर्क है?
महापुरुषों के नाम पर शैक्षिक संस्थानों का नामकरण एक तर्कसंगत बात होती, लेकिन नामकरण में ‘मुस्लिम’ या ‘हिन्दू’ शब्द का इस्तेमाल तर्क से परे है. किसी भी सार्वजनिक संस्थान के नाम के आगे सांप्रदायिक व जातिगत शब्दों को जोड़ना विभिन्न समुदायों के बीच संदेह व घृणा पैदा करता है. हमें ‘हिन्दू’ व ‘मुस्लिम’ शब्दों से साम्प्रदायिकता की ‘बू’ आती है. अतः क्यों न इन ‘बदबूदार’ शब्दों को हटा दिया जाए?
अब समय आ गया है कि ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ इन 2 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के नाम-परिवर्तन मामले में तत्काल कार्रवाई करे ताकि इनके नामकरण हमारे संविधान के मौलिक उद्देश्य– ‘धर्मनिरपेक्षता’ के अनुरूप हों! इन 2 विश्वविद्यालयों का पुनर्नामकरण क्रमशः ‘अलीगढ विश्वविद्यालय’ (एयू) व ‘बनारस विश्वविद्यालय’ (बीयू) के तौर पर किया जाना चाहिए. इन 2 अग्रणी विश्वविद्यालयों के नामों से क्रमशः ‘मुस्लिम’ व ‘हिन्दू’ शब्दों को निकाल दिया जाए ताकि देश के इन 2 बहुसंख्यक समुदायों के बीच से घृणा व संघर्ष की स्थिति ख़त्म हो तथा दोनों के बीच सौहार्द्र बना रहे!
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