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मैथमेटिक्स का ओलिंपियाड और मेरे अनुभव

Core Of The Heart
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बात तब की है जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ा करता था | तब मैं बहुत ही चमकीला विद्यार्थी हुआ करता था (अरे भाई साहब,कहीं पर सुना है की बुद्धिमान विद्यार्थी को अंग्रेजी में चमकीला विद्यार्थी कहते हैं ) | ऐसा इसलिए क्योंकि मैं एकदम नवाबी अंदाज़ में पढ़ा करता था | अगर कोई सवाल हल न हो तो फिर उस किताब से दुश्मनी हो जाती थी | मगर ये बात हमारे बीच में ही रहती थी और किसी बहार वाले को हमारे बीच में बोलना मना था | खैर मेरी तरफ से ये दुश्मनी ज्यादा टिकती नहीं थी और परीक्षा के समय सारे मतभेद भूलकर मैं किताबों से माफ़ी मांगने पहुँच जाया करता था | तब याद आता था कि ये किताबें तो अपनी ही हैं और इनसे क्या लड़ाई – झगड़ा ? हिंदी, सामाजिक विज्ञानं, संस्कृत आदि की किताबें दयालु थीं क्यूंकि वे जल्दी ही मान जाया करती थीं पर गणित कि पुस्तक तो बिलकुल ही निर्दयी थी | उसे जैसे मेरे लटके चेहरे को देखकर न जाने कौन सा सुकून मिलता था | वो ऐसी लगती थी मानो मुझे कह रही हो “अंडा चला चूजा बनने और ऑमलेट बनकर आया” | उसको मानना और वो भी परीक्षा के समय बिलकुल ही असंभव था |

पर मैं तो मैं ही था | उससे बचने के लिए मैंने और मेरे जैसे कुछ नवाबों ने मिलकर एक सहकारी संघ (को – ऑपरेटिव ) बनाया हुआ था | इस संघ में मेरे हिस्से संस्कृत और सामाजिक विज्ञानं थे | और मैं इनसे खुश था | परीक्षा हुई और हमे तिरानबे प्रतिशत अंक मिले , गणित में सहकारी संघ की बदौलत हमें पंचानबे प्रतिशत अंक मिले |

सभी खुश थे | उन अंकों की या कहें सहकारी संघ कि कृपा से मुझे मैथमेटिक्स ओलिंपियाड में शामिल होने का मौका मिला | मैं बहुत ही खुश था पर अन्दर से एक डर था कि अब क्या होगा ? पर थोड़ी देर में मेरी चिंता दूर हो गई क्योंकि सहकारी संघ ने मुझे आश्वासन दे दिया था |मैंने फॉर्म भरा और निश्चिन्त हो गया | दिन आराम से कट रहे थे| किन्ही शुभचिंतक ने बताया कि ओलिंपियाड में सातवीं के अलावा आठवीं कक्षा के सवाल भी पूछे जायेंगे | हमने उन्हें धन्यवाद् दिया और सहकारी संघ कि मीटिंग बुलाई | हम सब गर्मजोशी से मिले और स समस्या पर गंभीरता से चर्चा की | नतीजा निकला की सभी को थोड़ी – बहुत मेहनत करनी होगी और सबसे ज्यादा मुझे क्योंकि मैं गणित विभाग का नहीं था |फिर भी सहकारी संघ से आश्वासन पाकर मेरी चिंता दूर हुई और मैं किताबों की दूकान पर जा धमका |वो दुकान मेरे पिताजी के मित्र की थी अतः मुझे आठवीं की किताब दो दिनों केलिए घर लानेमे कोई दिक्कत नहीं हुई | बड़े प्यार से मैं उसे घर लेकर आया | उसे खोलते ही मेरे हाथ के तोते, कौवे, कबूतर, बत्तख और न जाने क्या-क्या उड़ गए | खैर किसी तरह उसे पढने की कोशिश करता रहा | परीक्षा रविवार को होनी थी और शनिवार को हमें जरुरी सामान (जो हमें परीक्षा केंद्र लेकर जाने थे ) की सूची दी गई जैसे पानी की बोतल, टिफिन ,पेंसिल इत्यादि | सबसे जरुरी बात ये थी कि हमे एडमिट कार्ड किसी भी हाल में लेकर जाना था और हमें कहा गया था कि बिना इसके परीक्षा में बैठने नहीं दिया जायेगा | परीक्षा केंद्र बहुत दूर था | वो तो भला हो हमारी प्रधानाध्यापिका महोदया का जिन्होंने हमारे लिए स्कूल की बस को उपलब्ध करा दिया था नहीं तो हमारी बैंड बज जाती | मुझे सबके एडमिट कार्ड चेक करने की ड्यूटी मिली थी ताकि कोई बिना एडमिट कार्ड के परीक्षा केंद्र पर न पहुँच जाये | आख़िरकार ये सब सवाल – जवाब ख़त्म हुए और सबको एडमिट कार्ड दे दिए गए | मैंने उसे अपनी किताब में रखा (ऐसी किताब में जिसे मैं बहुत कम ही पढ़ा करता था ) | घर आकर खा- पीकर मैं खेलने चला गया | फिर लौटकर किताब उठाकर कुछ फ़ोर्मुले रटे और खाना खाकर सो गया |

सबके इंतज़ार की घडी ख़त्म हुई और परीक्षा का दिन आ गया | मैं नहा – धोकर तैयार हो गया | नाश्ता करके सबको प्रणाम किया और अपनी नई साइकिल पर चढ़कर इतराते हुए स्कूल चल दिया | स्कूल पहुँचकर मैं सबके एडमिट कार्ड देखने लगा |तभी एक बच्चा मिला जो एडमिट कार्ड लेकर नहीं आया था |अचानक मेरे दिमाग की घंटी बजी और मुझे अपने एडमिट कार्ड की याद आई | बैग खोलकर देखा तो पता चला की मैं अपना एडमिट कार्ड तो घर पे ही भूल आया था |मुझे तो जैसे चक्कर आ गए | बिना किसी को बताये साइकिल लेकर मैं घर की ओर भगा | परउस दिन शायद मेरी वाट लगनी तय थी | अचानक आधे रस्ते में साइकिल की चेन उतरी और मेरी बहुत सी कोशिशों के बाद भी नहीं लगी | हारकर मैं उसे उठाकर दौड़ गया | भगवान की दया से मैं सही – सलामत घर पहुँच गया |घर आकर साइकिल को एक ओर पटका और जल्दी-जल्दी एडमिट कार्ड खोजने लगा | दो मिनटों के बाद ही मुझे एडमिट कार्ड मिल गया | मैं खुश हो गया पर भगवान् को ये ख़ुशी ज्यादा देर के लिए मंज़ूर न थी | साइकिल की चेन लग नहीं रही थी और लगाने की कोशिश में मैंने चेन को ही तोड़ दिया | अब तो मेरी हवाइयां उड़ने लगीं | मैंने पापा से मोबाइल ले लिया और कहा की छुट्टी होने पर फ़ोन करूँगा तो आप लेने स्कूल आ जाना | पापा ने बहुत सारी हिदयातें दी और मोबाइल को संभाल कर रखने को कहा (उस समय हमारे घर में एक ही मोबाइल था, अतः वो बहुत महत्वपूर्ण था )| अब मैं घर से बाहर निकला और किन्ही सज्जन का इंतज़ार करने लगा | पांच मिनट बाद एक चाचा दिखे जो स्कूटर पर जा रहे थे और वो मुझे ले चलने को तैयार हो गए | अंततः मैं स्कूल पहुँच गया और उन सज्जन को प्रणाम करके अन्दर चला गया |अन्दर जाकर मैंने बाकी लोगों के एडमिट कार्ड देखे और फिर हम बस में बैठकर चल दिए | बस में कुछ लोग किताबें देख रहे थे और हमारा समूह मस्ती कर रहा था | लगभग डेढ़ घंटे में हम केंद्र पर पहुँच गए | परीक्षा शुरू होने में अभी भी एक घंटा बाकी था अतः हमें पार्क में बैठा दिया गया | वहां पे भी किताबी कीड़े किताबों में ही लगे हुए थे और हमारा समूह उछल-कूद कर रहा था | हमलोग खेलते – खेलते फिसलने वाले झूले के पास पहुँच गए |सबसे पहले मेरे एक दोस्त ने शुरू किया वो फिसल ही रहा था कि उसका पैन्ट फट गया क्योंकि फिसलने वाली सतह पर खरोंच थी | अब हम डर गए तथा चुप – चाप बैठकर किताबें देखने लगे | आखिरकार समय आ गया और हमलोग पंक्तिबद्ध होकर वर्ग में पहुंचे | जाने से पहले किसी को बिना बताये मैंने मोबाइल को अपने बैग में डालकर बस में ही छोड़ दिया था क्योकि बैग को केंद्र के परिसर में ले जाना मना था | परीक्षा शुरू होने से पहले हम अपने – अपने स्थान पर बैठ गए | पर ये क्या मैं सबसे पीछे बैठा था उअर मेरे सहयोगी दूसरी पंक्ति में बैठ गए थे | मेरा तो दिल ही बैठ गया | अब परीक्षा शुरू हो गयी | प्रश्न-पत्र देखते ही मेरे तो होश ही उड़ गए |मैं इधर -उधर देख रहा था और सहयोगियों को आवाज़ देने की कोशिश कर रहा था पर कोई सुन ही नहीं रहा था | हारकर मैंने प्रश्न पत्र पर ध्यान लगाया | उफ़्फ़,इतने भारी प्रश्न ? मैं ये सोच रहा था कि भगवान मुझे और इन प्रश्नों को अंतरीक्ष में भेज दे तो ही ये प्रश्न हलके हो सकते हैं |आखिर मैंने ध्यान लगाकर कुछ प्रश्न हल किये और जब पांच मिनट बचे तो मैं उत्तर पुस्तिका पर उत्तरों को चिह्नित करने लगा | पूरे परीक्षा में मेरा ध्यान या तो मोबाइल पर था या तो प्रश्नों की कठिनता पर | परीक्षा खत्म हुई और सब पंक्ति में वर्ग से बाहर निकलने लगे |मैं जल्दी से जल्दी मोबाइल के पास पहुंचना चाहता था | जब मैं बाहर निकल रहा था तो किसी ने मुझे पुकारा | मुड़कर देखा तो पता चला कि वो मेरी एक सहपाठी पूजा थी जो कि पांचवीं कक्षा में स्कूल छोड़ कर चली गयी थी | मैंने उसे कहा कि परीक्षा अच्छी गयी है और मैं बस कि ओर भागा | बस में जब मोबाइल को सही सलामत देख तो ही मुझे चैन आया | जब सब बस में आ गए तो बस चल पड़ी और हमें अपने स्कूल में छोड़ दिया | वहाँ बहुतों के अभिभावक खड़े थे और जिनके नहीं खड़े थे वो सर से मोबाइल लेकर उन्हें फ़ोन कर रहे थे | शाम हो चली थी | मेरे पापा नहीं आये थे | मैंने फ़ोन करने कि कोशिश की तो पता चला कि मोबाइल के खाते में पैसे हैं ही नहीं | मैंने सर पीट लिया | सभी के अभिभावक आ चुके थे पर मेरे और मेरे एक दोस्त के अभिभावक नहीं आये थे | सर ने जब मुझसे मेरा मोबाइल नंबर पूछा तो मैंने कहा कि मेरे घर पे मोबाइल नहीं है | सर को नहीं पता था कि मेरे पास मोबाइल है , नहीं तो मेरी पिटाई तय थी | आखिर मेरे दोस्त के पापा को फ़ोन लग गया और वो दस मिनट में पहुँच गए | तब जाकर मैं घर पहुंचा | उस साल के बाद मैंने स्कूल छोड़ दिया और इस कारण मुझे परीक्षा का परिणाम भी पता नहीं चला | इस परीक्षा ने मेरा पूरा का पूरा सिस्टम हिला डाला और परिणाम भी पता नहीं चला | इसके बाद मैंने मैथमेटिक्स ओलिंपियाड में कभी भाग भी नहीं लिया |

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