Menu
blogid : 13858 postid : 702869

संसदीय इतिहास में एक काला अध्‍याय

मेरे विचार
मेरे विचार
  • 153 Posts
  • 226 Comments

किसी देश की राजनीति ही उस देश का भविष्य तय करती है। जिसकी दिशा-धारा तय होती है, संसद, विधानसभा और विधान परिषदों में। इसीलिए इन्हें राजनीति का मंदिर माना जाता है। देश के कर्णधारों का भविष्य भी इन्हीं मंदिरों में तय होता है। लेकिन इन मंदिरों में यदि कोई गंदगी फैलाई जाने लगे तो इन मंदिरों का संरक्षण और इनमें पूजा करने वाली जनता की नाराजगी जायज है। हमारे देश के ये मंदिर पहले से ही नोट कांड, गाली-गलौज, मारपीट और सोने वाले नेताओं के नाम पर बदनाम थे।
लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना का मुद्दा इतना गरमाया कि 13 फरवरी, 2014 को भारत के संसदीय इतिहास में एक काला अध्‍याय लिख गया। तेलंगाना का मामला केंद्र सरकार के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। सदन के अंदर और बाहर दोनों की जगह यूपीए सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार किसी भी हाल में इस बिल को पास कराना चाहती है। सरकार ने विरोध, मारपीट, मिर्च पाउडर के छिड़काव जैसी घटनाओं के बीच अलग तेलंगाना बनाने का बिल पेश करने की औपचारिकता पूरी की। इसका विरोध करने वाले सांसद मारपीट पर उतारू हो गए। तोड़फोड़ की। कांग्रेस से निकाले गए विजयवाड़ा से सांसद एल. राजगोपाल ने मिर्च का पाउडर छिड़क दिया। आंध्र के सांसद एम. वेणुगोपाल पर चाकू निकालने का आरोप है। हालांकि, उनका कहना है कि उन्‍होंने माइक तोड़ी थी और उसे ही हाथ में लिया था, जिसे चाकू बताया जा रहा है। लोकसभा के इतिहास में 13 फरवरी, 2014 काले दिन के रूप में दर्ज हो गया। अलग तेलंगाना राज्य का बिल जैसे ही संसद के निचले सदन में पेश हुआ सीमांध्र से जुड़े कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के सांसदों ने जमकर उत्पात काटा। एक सांसद ने काली मिर्च का स्प्रे किया, तो एक पर संसद के भीतर चाकू निकालने का आरोप लगा।
तेलंगाना मुद्दे को लेकर संसद में मचे घमासान की हर कोई आलोचना कर रहा है। कोई इसे लोकतंत्र पर काला द‌िन बता रहा है तो कोई इसे लोकतंत्र पर धब्बा बता रहा है। इस घटना के बाद सोशल मीड‌िया में भी प्रत‌िक्रियाएं काफी तेजी से आ रही हैं।भारतीय लोकतंत्र की गंगोत्री संसद में जो भी कुछ हुआ, इससे निश्चय ही संविधान की मूल आत्मा कटोचती होगी।संसद में कुछ माननीयों ने अपनी मांग शालीनता से रखने की वजह लात घूंसे चलाए, जहरीला स्प्रे छिड़का, चाकू निकाले और धक्कामुक्की भी की। यहां तक इन सांसदों ने सारी मर्यादा को ताक पर रखकर मारपीट भी की।
यह सब कुछ तब हुआ, जब लोकसभा में तेलंगाना बिल पेश होना था। सदन में ये सब अचानक ऐसे हुआ कि सबकी आंखें फटी रह गई।यूं तो संसद के दोनों सदनों में बीते कुछ दिनों से बवाल जारी है, लेकिन 13 फरवरी, 2014 को जो हुआ उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी।
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की इजाजत के बाद जब गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने ‌तेलंगाना बिल पेश करने की कोशिश की, तो ‌सदन में हंगामा हो गया।तेलंगाना विरोधी कई सांसदों की योजना सदन का माहौल गर्माने की थी। इसके लिए उन्होंने पूरी तैयारी भी कर ली थी, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने अपनी रणनीति बदल ली। टीडीपी के सांसद डॉ. एनशिवाराव ने घर पर सांप मंगा रखे थे। वहीं सांसद रेड्डी की योजना खुद के हाथ की नसें काटे जाने व कपड़े उतारने की भी थी।
इससे पूर्व भी संसद और देश कई तमाम विधानसभा में भी जन प्रतिनिधियों ने सरेआम एक दूसरे पर लात -जूते चलाये थे। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में ऐसा एक नहीं कई बार हुआ है।
23 मार्च, 2013 को राज्यसभा में बजट सत्र के दौरान श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर हो रहे हंगामे के दौरान नाराज एक सांसद ने अध्यक्ष के आसन के माइक उखाड़ दिए थे ।
5 सितंबर, 2012 को सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पेश करने के दौरान राज्यसभा में हाथापाई, बसपा सांसद अवतार सिंह करीमपुरी और सपा सांसद नरेश अग्रवाल के बीच धक्का-मुक्की हुई। हंगामे की वजह से विधेयक पर चर्चा तक नहीं हो पाई।
8 मार्च, 2010 को राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक के विरोध में सपा, राजद और लोजपा के कुछ सदस्यों ने विधेयक की प्रतियां सभापति के आसन की ओर उछाल दीं, मेज पर चढ़ गए, धक्कामुक्की में सभापति की मेज के दो माइक भी उखाड़ दिए गए।
19 मार्च, 2007 को राज्यसभा में भाजपा के एसएस अहलूवालिया ने भाषण दे रहे तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के सामने आकर अवरोध पैदा करने की कोशिश की जिसके बाद सांसदों के बीच धक्का-मुक्की हुई।जुलाई, 2010 को बिहार विधानसभा में पक्ष और विपक्षी सदस्यों ने एक-दूसरे पर कुर्सी फेंके, गमले भी तोड़े गए।फरवरी, 2009 को आंध्र प्रदेश में विपक्षी दल के हंगामा के दौरान विधायक एक-दूसरे के ऊपर गिरे, जिसमें कुछ जख्मी भी हो गए।फरवरी, 2008 को यूपी विधानसभा में सपा सदस्यों ने राज्यपाल की मौजूदगी में काले गुब्बारे उड़ाए।नवंबर, 2006 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में पक्ष-विपक्ष के सदस्यों के बीच हाथापाई, नौ विधायक समेत 13 लोग घायल।दिसंबर, 2005 को बिहार विधानसभा में विपक्षी दल के सदस्यों ने सदन में तोडफ़ोड़ की, सभा सचिव की ओर कुर्सियां फेंकी।नवंबर, 2004 उड़ीसा में पक्ष-विपक्ष के बीच हाथापाई और चप्पल तक फेंका गया, मुख्यमंत्री नवीन पटनायक घायल हुए।मार्च, 2001 गुजरात में हंगामा के दौरान विपक्षी विधायकों ने अध्यक्ष के कमरे की खिड़की तोड़ डाले और नेम प्लेट भी फेक दिए।अक्तूबर, 1997 उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार के विश्वास मत के दौरान एक दूसरे पर माइक, जूते चलाए, कई विधायक घायल हुए।
लोकसभा में तेलंगाना के मुद्दे पर जो भी कुछ बवाल हुआ, उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाये, कम है परन्तु इसके लिये जिम्मेदार कौन है?तेलंगाना और आंध्र के उपद्रवी सांसद?अथवा चन्द वोटों के लिये आंध्र प्रदेश के टुकड़े करने पर आमादा कांग्रेस?अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकने के लिये क्यों इस देश के टुकड़े किये जा रहे हैं?क्यों एक भाई को अपने ही भाई के खिलाफ लड़ाया जा रहा है? इस से किस का भला होगा?देश का?या जनता का?क्यों चुनें हम उनको दोबारा – जो हमें एक दूसरे से लड़ाते हैं?
विवेक मनचन्दा,लखनऊ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply