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सहारा और सेबी के बीच शह और मात का खेल

मेरे विचार
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सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय इन दिनों मुश्किल में हैं। उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है। गोरखपुर से शुरू हुआ सहारा प्रमुख का सफर लखनऊ होते हुए अब विदेशों तक पहुंच चुका है लेकिन इन सबके बावजूद विवाद उनका का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।सहारा ने जिस पैरा बैंकिंग के जरिए कारोबार की दुनिया में सफलता की बुलंदियों को छुआ, आज वह हवाई किला साबित हो रही है। सेबी ने जिस तरह सहारा के झूठे दावों की पोल खोली है उस से सहारा समूह की कार्यशैली पर सवालिया निशान तो लग ही गया है।
निवेशकों के 24000 करोड़ रुपये का हिसाब देने के मामले में जबसे कोर्ट का डंडा सहारा पर चला है तभी से सुब्रत रॉय के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज सुप्रीमकोर्ट को कानूनी दांव पेचों के सहारे गुमराह कर रही है।समन के बावजूद कोर्ट में पेश न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है । अदालत ने उन्हें गिरफ्तार कर चार मार्च को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश सहारा के खिलाफ दाखिल सेबी की अवमानना याचिका पर जारी किया।
पिछले काफी समय से सहारा समूह निवेशकों का बीस हजार करोड़ रुपया लौटने के नाम पर सुप्रीम कोर्ट और सेबी को बरगला ही रहा है। जब भी सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को निवेशकों का पैसा लौटाने का आदेश दिया उसके बाद सहारा समूह देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों आदि में बड़े -बड़े विज्ञापन देकर अपने पाक साफ़ होने की दलीलें देता रहा है और खुल्लमखुल्ला सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठेंगा दिखाता रहा है।
सहारा और सेबी के बीच चल रहे शह और मात के खेल में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका निर्णायक की है। सेबी शह और मात के इस खेल में सहारा को पछाड़ने में लगा है तो सहारा अपने साधनों का इस्तेमाल कर सेबी को झूठा और खुद को सच्चा साबित करने में लगा है।सेबी जब सहारा पर कोई कार्यवाही करता है तो अगले दिन अखबारों में एक पैराग्राफ की खबर छपती है जिस से तिलमिला कर सहारा उस के अगले दिन अखबारों को पूरे पेज का विज्ञापन दे कर सेबी को झूठा साबित करने का प्रयास करता है।17 मार्च, 2013, दिन रविवार को प्रकाशित विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ इस कड़ी का अंग है। इस विज्ञापन में सहारा ने सेबी को अप्रत्यक्ष रूप से धमकाने का काम किया है जो एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना सा दिखता है।सहारा का तर्क है कि हमारे एजेंट उन को जानते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर उन लोगों तक पहुंच जाते हैं। ‘बस, बहुत हो गया’ विज्ञापन में सहारा ने सेबी को चुनौती देते हुए कहा है कि वह हमारे एक भी निवेशक को फर्जी पा ले या उसे फर्जी साबित करे।सेबी के आरोपों के जवाब में सहारा दावा करता रहा है कि उस ने निवेशकों के पैसे वापस कर दिए हैं। सहारा के इस तर्क का जवाब देने के लिए असली निवेशकों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है।

बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों के 20,000 करोड़ रुपये वापस करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन न करने का आरोप लगाते हुए सुब्रत राय और सहारा की दो कंपनियों के निदेशकों के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की है। 20 फरवरी को शीर्ष अदालत ने सहारा प्रमुख व तीन अन्य निदेशकों को 26 फरवरी को निजी तौर पर कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था।
सेबी ने सहारा समूह की दो कंपनियों सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा इंडिया रियल स्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के खिलाफ दो अलग-अलग आदेश पारित किया था। आदेश में सेबी ने कहा था कि दोनों कंपनियों ने निवेशकों से क्रमशः 6,380 करोड़ रुपये और 19,400 करोड़ रुपये उठाने के लिए अनेक अनियमितताएं बरती हैं।
सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के तहत सहारा को सेबी के जरिए ही निवेशकों को पैसा वापस करना है। इस व्यवस्था के तहत सहारा ने अबतक करीब 5,206 करोड़ रुपये ही सेबी के पास जमा कराए हैं। सहारा ने कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा है कि उसने निवेशकों को बाकी बकाया कैश में चुका दिया है। लेकिन सेबी ने कंपनी के इस दावे को खारिज कर दिया है। सेबी ने कोर्ट को बताया कि सहारा समूह ने इस रकम के बारे में अपनी फर्मों के बैंक स्टेटमेन्ट नहीं दिए हैं। इसपर सहारा ने कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा कि उसने निवेशकों को सारी रकम कैश में चुकाई है इसलिए कहीं कोई बैंक स्टेटमेंट नहीं है।
सेबी के मुताबिक़ सहारा ने कई लोगों को धोखा दिया है और उनके पैसे नहीं लौटाए हैं।इसके ख़िलाफ़ सहारा ने अख़बारों में विज्ञापन दिए। सेबी के साथ लंबी लड़ाई लड़ी। सहारा में बड़ी तादाद में लोगों ने निवेश किया है।सहारा समूह ने सेबी के दफ़्तर के सामने कागज़ातों से भरे ट्रकों की लाइन लगा दी।लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह की दलीलों को नहीं माना और सुब्रत रॉय बेहद मुश्किल में हैं।
सुब्रत रॉय ने यह दावा किया कि उनकी माता जी बीमार हैं और वह अदालत में नहीं आ पाएंगे और इसलिए वह अदालत में नहीं आ पाए। लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को उनकी दलील पसंद नहीं आई।
सेबी के मुताबिक़ सहारा समूह को चौबीस हजार करोड़ रुपए लौटाने हैं। इसमें सहारा ने 5,110 करोड़ रुपए दे दिए हैं। सहारा के मुताबिक़ उन्होंने ज़्यादा पैसा जमा करा दिया है।
लेकिन सेबी के मुताबिक़ पहली किस्त 14 हज़ार करोड़ रुपए की है और दूसरी किस्त 10 हज़ार करोड़ रुपए की है। उसके ऊपर 15 फ़ीसदी ब्याज देना होगा।
इससे सहारा के रियल एस्टेट की संपत्तियों पर असर पड़ेगा। मुंबई और पुणे हाइवे के पास सहारा की संपत्ति एंबी वैली, यूके और यूएस के होटल एवं दिल्ली और नोएडा की रियल एस्टेट संपत्तियां और सहारा के मौजूदा कारोबार पर असर पड़ेगा।
अदालत ने इससे पहले सुनवाई के दौरान कहा था कि सेबी सहारा समूह की उन संपत्तियों को बेच सकती है जिनके बिक्री विलेख निवेशकों का 20 हजार करोड़ रुपया वसूलने के लिए उसे सौंपे जा चुके हैं। सेबी ने अदालत से कहा था कि कंपनी खुद ही इन संपत्तियों को बेच कर धन जमा करा सकती है। इस पर अदालत ने कहा था कि सेबी इन संपत्तियों की नीलामी करके धन प्राप्त कर सकती है। शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त 2012 को अपने फैसले में सेबी को सहारा की संपत्ति कुर्क करके धन वसूलने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने 21 नवंबर 2013 को राय पर देश छोडऩे से रोक लगायी थी और सहारा समूह को कोई संपत्ति नहीं बेचने का आदेश दिया था।
सहारा् के सुप्रीमो सुब्रत रॉय की मानें तो सुप्रीम कोर्ट सहारा-सेबी विवाद में अपनी इज़्ज़त बचाने में जुट गया है। सुब्रत का दावा है कि देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट, सहारा के खिलाफ दिए अपने कड़े फैसले से वापस लौटने की कोशिश कर रही है। कोलकाता में 27 नवंबर को सहारा के कर्मचारियों और अधिकारियों को संबोधित करते हुए सुब्रत रॉय सुप्रीम कोर्ट का माखौल उड़ाने से नहीं चूके। उन्होंने यहां तक कह डाला कि सुप्रीम कोर्ट कौन होता है ये कहने वाला कि मैं विदेश जाऊं या नहीं। सुब्रत के इस अहंकार के पीछे पैसे का दम है या कुछ और ये आप खुद तय कीजिए।
अगर देखा जाए तो देश से लेकर विदेशों तक सहारा समूह की कई करोड़ की प्रॉपर्टी फैली हुई है। इसके अलावा सुब्रत रॉय की कर्मभूमि रही लखनऊ में भी कई प्रॉपर्टी है। लेकिन सबसे ज्यादा विवादों में रहा है सहारा स्टेट। लेकिन, समय समय पर अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल करते हुए सहारा श्री विवादों को टालते रहे हैं।
और भी।
सहारा ने लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर के विपुल खंड और देश में विख्यात मायावती के सपने के तौर पर प्रचलित और दलित वर्ग के स्वाभिमान के तौर पर स्थापित अम्बेडकर स्मारक के बगल में मौजूद 170 एकड़ जमीन को यह कह कर एलॉट करने का अनुरोध किया कि वह इस जमीन पर आवासीय, व्यावसायिक और हरित पट्टी विकसित करेगा।दरअसल, गोमतीनगर में बना सहारा स्टेट सुब्रत रॉय का ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन, अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए सहारा ने हेरफेर का सहारा लिया। लेकिन, इस सहारा शहर में राजनेता, अभिनेता और बड़े बड़े प्लेयर्स तो जा सकते हैं लेकिन लखनऊ का आम आदमी नहीं घुस सकता है।जब यह सहारा शहर बना तब भी इसकी खूब चर्चा हुई थी लेकिन जब जिम्मेदार अधिकारियों ने इसका निरिक्षण किया तो उन्हें सुब्रत के गोरखधंधे का अहसास हुआ। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। नगर निगम ने सहारा को कारण बताओ नोटिस तो जारी किया लेकिन निगम की लापरवाही तब तक सुब्रत रॉय सहारा के लिए संजीवनी का काम कर चुकी थी। नोटिस मिलने के बाद सहारा ने भी देर ना करते हुए नोटिस के खिलाफ कोर्ट चले गए।सहारा यहीं नहीं रुका उसने हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में आर्बिटेशन दाखिल कर दिया। यह मामला आज भी कोर्ट में विचाराधीन है। इस कारवाई में एक दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन सहारा पहले की तरह आज भी वहां कब्जा किए हुए हैं।
सहारा के कंधे पर जब तक मुलायम का सहारा रहा तब तक कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन जैसे ही 2007 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो मायावती की निगाहें सुब्रत रॉय पर टेढ़ी हो गई। नगर निगम ने कारवाई करते हुए सहारा स्टेट के बड़े बड़े दरवाजों पर नोटिस चस्पा कर दिया और उसकी बड़ी बड़ी दीवारें गिराई भी गई लेकिन सहारा को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
बहरहाल, यह तो रही सुब्रत रॉय सहारा के विवादों की एक झलक। लेकिन, आर्थिक जानकारों का मानना है कि अगर सहारा को निवेशकों को पैसा वापस करना पड़ा तो उसकी हालत और खराब हो जाएगी। क्योंकि टीम इंडिया से स्पॉन्सरशिप जाने के बाद जहां सहारा की साख पर बट्टा लगा है वहीं आईपीएल की पुणे वॉरियर्स की फ्रेंचाइजी भी निरस्त हो चुकी है। ऐसे में सुब्रत रॉय के खिलाफ गैर जमानती वारंट आग में घी का काम कर रहा है।
विवेक मनचन्दा ,लखनऊ

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