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बिहार में सरकारी स्कूल के बच्चों में अंग्रेजी का डर आखिर क्यों ?

wakil
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बिहार सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में लाखों विद्यार्थी पढ़ते हैं ! मेहनत भी करते हैं ! मैथ ,विज्ञान, हिंदी, सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में अच्छे भी हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी से डरे हुए हैं आखिर क्यों ? कौन है इसका जिम्मेवार ? प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अंग्रेजी के प्रति उत्सुक रहते हैं आखिर कारण क्या है ? विलियम बेंटिक ,लार्ड मैकाले ने तो बहुत पहले ही अंग्रेजी शिक्षा की घोषणा की थी !अंग्रेजी की उपयोगिता को समझते हुए राजा राममोहन राय ने भी अंग्रेजी शिक्षा पर जोर दिए थे परंतु आज भी बच्चे बैंक, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे, राज्यसेवा, लोक सेवा आयोग इत्यादि परीक्षाओ में आने वाले प्रश्नों से परेशान हैं !अंग्रेजी बोल नहीं पाते हैं इसका सीधा कारण है बिहार की खोट शिक्षा नीति ।बिहार में दसवीं तक अंग्रेजी अनिवार्य नहीं हैं । शिक्षक भी अंग्रेजी नहीं पढ़ाते हैं और बच्चे भी नहीं पद़ते है ।केवल उच्च अंक प्राप्त करना शिक्षकों एवं छात्रों के मन में बैठ जाता है इसलिए अन्य विषय तो पढ़ते हैं परंतु अंग्रेजी कभी कभी देख लिया करते हैं ।
दूसरी कारण है ग्रामीण परिवेश ।बच्चे भी वही भाषा बोलते हैं जो पूर्वज बोलते आ रहे हैं ।भोजपुरी ,मगही ,मैथिली बच्चे भी सीख लेते हैं वही बोलते भी हैं ।अगर किसी ने अंग्रेजी बोलनी चाहा तो परिवेश के लोग उसे अंग्रेज कहकर चिल्लाने लगते हैं, फिर कहीं से कोई शब्द लाकर बच्चों के सामने रख देते हैं बच्चा बता नहीं पाता है और वह भी अंग्रेजी बोलना छोड़ देता है ।एक छोटा बच्चा क्यों समाज से पंगा ले ।

तीसरी कारण यह भी है सरकारी स्कूल के ज्यादातर शिक्षक अंग्रेजी से लज्जित हैं ।कुछ है भी तो समाज में निंदा के डर से चुप रहते हैं । बच्चों में अंग्रेजी के प्रति उत्सुकता जगाने का काम शिक्षकों का है, खुद शिक्षक भी उदासीन है ।प्राइवेट स्कूलों में प्रार्थना से लेकर क्लासरूम तक शिक्षक अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करते हैं ।वहां का परिवेश अंग्रेजी का परिवेश बन जाता है ।वहां अंग्रेजी बाबू मत बनो जैसे निंदक शब्दों का ताना नहीं सुनना पड़ता है ।जिसका नतीजा है कि बच्चे अंग्रेजी में अच्छे है ।

चौथी कारण है गरीबी । गरीबी भी एक कारण है जिसकी वजह से अभिभावक बच्चों को ट्यूशन आदि नहीं दिलवा पाते हैं। प्राइवेट स्कूलों के महंगे फी भुगतान नहीं कर पाते हैं ।बच्चे उन्हीं शिक्षकों से सरकारी स्कूलों में पढ़ने को मजबूर हो जाते हैं जो ठीक से एक आवेदन भी लिखना नहीं जानते हैं ।ये शिक्षक पंचायतों में पैसे के बल पर स्कूलों में तैनात कर दिए जाते हैं ।

पांचवी कारण है बेरोजगारी ।अभिभावक तो बेरोजगार हैं ही ।समाज में चिंता उत्पन्न होती है जब पढ़े-लिखे छात्रों को भी नौकरी नहीं मिल पाती हैं ,लोग सोचते हैं पढ़ाई में पैसा भी लगा और लड़का कामयाब भी ना हुआ ।धीरे-धीरे यह विचारधारा फैलते चली जाती हैं ।अंततः अशिक्षित ,गरीब एवं बेरोजगार ,बीमार अभिभावक भी बच्चों को खेतों खदानों में मजदूरी तक सिमट देते हैं। ऐसे बच्चे क्या अंग्रेजी बोलेंगे जो स्कूल के बजाय खेत खलिहान में मजदूरी करते नजर आते हैं। वर्तमान में पोशाक ,साइकिल एवं मध्याह्न भोजन योजना से संख्या तो स्कूलों में बड़ी है पर पढ़ाई की गुणवत्ता मे कोइ सुधार नहीँ है ,पहले की तरह ही है । आज भी ऐसे भी शिक्षक है जो इधर से उधर करके सर्टिफिकेट लेकर शिक्षक बने हुए हैं, ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।

परंतु वर्तमान समय विज्ञान एवं तकनीकी का समय है इसलिए अंग्रेजी का बहुत अच्छा होना बहुत जरूरी है ! अंग्रेजी का बहुत अच्छा होना मतलब की कैरियर का अच्छा होना है ! छात्रों को उच्च माध्यमिक के बाद मेडिकल ,आईआईटी ,एनडीए की परीक्षा में अंग्रेजी की बेहद जरूरत पड़ती है ! आगे चलकर राज्य लोक सेवा, संघ लोक सेवा से लेकर ऑफिस तक संचार की जरूरत पड़ती है !

अतः छात्रों को अंग्रेजी में कुशल बनाने हेतु सरकार को नई शिक्षा नीति बनाने होंगे ! नर्सरी से अंग्रेजी अल्फाबेट पढ़ाने की नीति लागू हो ! नर्सरी से दसवीं तक अंग्रेजी को भी पढ़ाया जाए !अंग्रेजी को हर वर्ग में अनिवार्य किया जाए । शिक्षकों को भी अंग्रेजी को बढ़ावा देने की जरूरत है। समाज को भी अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें उत्साहित करते रही होगी। पंचायतों में कौशल युवा केंद्र की समुचित व्यवस्था किया जाए और 30 वर्ष तक के लोगों को अंग्रेजी सिखाया जाए तब जाकर अंग्रेजी का माहौल तैयार होगा। छात्रों को अंग्रेजी के प्रति लगाव को हो इसके लिए सरकार की नई शिक्षा नीति ,शिक्षकों का सहारा ,एवम समुचित समाज के सहयोग की अत्यंत आवश्यकता है।

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