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समाज में कथित महान पुरुषों ने ‘इज्जत’ शब्द को स्त्री समाज के ईर्द-गिर्द ही रखा है. इज्जत शब्द का अर्थ समझना कठिन नहीं है पर मर्द समाज के नजरिए से स्त्री के लिए इज्जत शब्द के अर्थ को समझना कठिन जरूर है. स्त्री की इज्जत को उसकी देह के आसपास ही रखा जाता है. यदि कोई स्त्री स्वयं अपने देह की बोली लगा देती है तो मर्द जाति उस स्त्री को मुजरिम की भांति मानकर समाज से उसका बहिष्कार कर देती है और जब कोई मर्द ही उसकी इज्जत को भरे समाज में उतारता है तो वो ही मर्द जाति स्त्री के देह की कीमत पैसों में लगाकर उसको चुप रहने के लिए बोलती है जिससे कि ‘बलात्कार’ शब्द सहमति से सम्भोग किए जाने में परिवर्तित हो जाए.
इस बात का उदाहरण तब देखने को मिला जब तुगलकी फरमानों के लिए बदनाम पश्चिमी यूपी की धरती एक बार फिर कलंकित हुई. 14 वर्षीय छात्रा को हवस का शिकार बनाने वाले पांच आरोपियों पर पांच लाख रुपये आर्थिक दंड लगाकर पंचायत ने अपना फर्ज पूरा कर लिया और इतना ही नहीं पंचायत ने यह भी कहा कि यदि आरोपी चाहे तो पीड़िता के घरवालों को पैसा किश्तों के रूप में भी दे सकता है. इस फैसले से ऐसा लग रहा है जैसे पंचायत ने पैसों को किश्त के रूप में देने के लिए नहीं बल्कि पीड़िता स्त्री की इज्जत को किश्त में चुकाने को कहा हो.
पंचायत ने जो फैसला किया सो किया आखिरकार मर्द जाति से इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं जा सकती थी पर दुःख इस बात का है कि पीड़िता और उसके घरवालों ने पंचायत के फैसले को स्वीकार कर लिया. स्वयं पीड़िता ने भी पंचायत के फैसले के खिलाफ कोई विरोध प्रकट नहीं किया और अपनी देह की कीमत को पैसों के रूप में स्वीकार कर लिया. आखिर क्यों नहीं पीड़िता ने सोचा कि जो मर्द जाति किसी स्त्री के साथ बलात्कार होने पर उसे इज्जत शब्द से नवाजना बंद कर देती है तो क्या पंचायत के फैसले के खिलाफ अपनी आवाज को चुप्पी के आवरण में छुपाने पर वो ही मर्द जाति पीड़िता को इज्जत देने लगेगी. इस बात की कल्पना करनी ही व्यर्थ है क्योंकि मर्द जाति स्त्रियों के चुप रहने पर उन्हें इज्जत नहीं देती है बल्कि उन्हें समाज का वो पालतू जानवर समझ लेती है जो वो ही करता है जैसा उसका मालिक उसे सिखाता है.
भारतीय संविधान में बलात्कार के कानून के तहत धारा 375, 376, 376क, 376ख, 376ग, 37 हैं और नाबालिग लड़की को हवस का शिकार बनाने पर यौन शोषण के तहत धारा 354 भी है. पर इन सभी धाराओं का कोई अर्थ नहीं रह जाता है जब स्त्री ही यह स्वीकार कर ले कि उसके साथ बलात्कार नहीं बल्कि उसकी इच्छा अनुसार सम्भोग हुआ है.
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