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“नए अल्फाजों से ऐ नारी, तुझे फिर एक नई कहानी बनानी है
गिरते हुए संभलकर, आसमान तक सीढ़ियां लगानी है.”
औरत को हमेशा सीमाओं से बांधकर देखा जाता रहा है. आज भी स्थिति सुधरी जरूर है, पर सुधार की हजारों गुंजाइशें अभी बाकी हैं. महिला के नाम से ही अक्सर एक सुरक्षा की दरकार रखने वाली छवि बना ली जाती है. मतलब अगर लड़कों के ग्रुप में अचानक पता चले कि कोई लड़की भी आने वाली है, तो वे तुरंत कहेंगे…”यार अब तो सचेत रहना पड़ेगा”. ‘सचेत’ मतलब लड़की को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी जो आ पड़ी है. बहुत हद तक यह सही भी है. पर बहुत हद तक महिलाओं ने इस सोच को धता बताते हुए अपना नया आकाश अपने बूते बनाया है.
अमेरिका की प्रतिष्ठित बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स द्वारा 2014 में दुनिया की सबसे धनी महिलाओं की सूची महिलाओं के लिए खुशी और दुनिया के लिए चौंकाने वाली है. दुनिया भर के 1,645 बिलेनियर्स में 172 महिलाएं हैं जो पिछले 138 सालों में सबसे ज्यादा है. यह इस बात को साबित करती है कि अब महिलाएं हर क्षेत्र में सिर्फ कदम ही नहीं बढ़ा रहीं बल्कि अब उनकी अर्थिक स्थिति भी सुधर रही है. दुनिया के इस असर से भारत भी अछूता नहीं है. इसी मैगजीन ने पिछले साल दुनिया के 50 दानदाताओं की सूची में भारतीय महिला उद्यमी और फॉर्मासिटिकल कंपनी बायोकॉन की संस्थापिका किरण मजूमदार शॉ को भी शामिल किया है. कैंसर मरीजों के लिए भी काम करने वाली किरण को अपनी तीन चौथाई संपत्ति को दान देने का वादा करने के लिए इस सूची में शामिल किया गया है. यह केवल किरण मजूमदार शॉ के लिए नहीं, बल्कि हर महिला के लिए प्रेरणा और गर्व की बात है.
एक अनपढ़ महिला जो पूरे गांव की मसीहा बन गई
कॉरपोरेट वर्ल्ड एक ऐसा क्षेत्र है जहां आज भी पुरुषों की प्रधानता है. आज भी महिलाओं के लिए अपना उद्यम शुरू करना और उसे कॉरपोरेट जगत की ऊंचाइयों पर पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण काम है. ज्यादातर महिलाएं बिजनेस वर्ल्ड से दूर ही रहती हैं या अचार-मुरब्बा जैसे घरेलू उद्योगों तक सीमित हैं. ऐसे में किरण मजूमदार शॉ का एंजाइम निर्यात की कंपनी शुरू करना और वैश्विक पहचान दिलाना वाकई काबिले तारीफ और हर महिला के लिए प्रेरक है.
1978 में बायोकॉन की शुरुआत करते हुए किरण मजूमदार शॉ ने अपनी साइंस की पढ़ाई को आधार बनाकर कारोबार शुरू करने का सोचा और अपनी तरह का एक अलग कारोबार एंजाइम निर्यात का शुरू किया. शुरुआत में हालात ऐसे थे कि कोई भी बैंक उद्योग की शुरुआत के लिए किरण को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं था. एक तो महिला, उस पर बिजनेस का ऐसा प्लान, बैंकों को इनके बिजनेस आइडिया पर भरोसा नहीं था. अंतत: 10 हजार की शुरुआती पूंजी से किरण ने अपने किराए के घर के बाहर के गैराज से बायोकॉन की शुरुआत की. पूंजी की कमी, एंजाइमों के इस कारोबार के लिए भारत में जरूरी रिसोर्सेस की कमी, यहां तक कि बिजली और शुद्ध पानी की व्यवस्था करना भी यहां चुनौतीपूर्ण था और बायोकॉन के बिजनेस के लिए ये दोनों ही चीजें बहुत जरूरी थीं. पर इन सभी कठिनाइयों से सफलतापूर्वक लड़ते हुए किरण मजूमदार ने साबित कर दिया किया कि एक महिला सिर्फ घर ही नहीं, बाहर के हालातों को भी मैनेज कर सकती है. इन सारी चुनौतियों से लड़ते हुए, एक साल के अंदर बायोकॉन अमेरिका और यूरोप के देशों में एंजाइम का निर्यात करने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई. बायोकॉन 2004 में पूंजी बाजार में शुरुआत करने के पहले ही दिन 1 बिलियन डॉलर का निशान पार करने वाली दूसरी बड़ी कंपनी बन गई. आज इसकी संपत्ति 875 मिलियन अमेरिकन डॉलर है और भारत के अरबपतियों में किरण मजूमदार शॉ का स्थान 63वां है. वे टाइम्स पत्रिका के दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में आ चुकी हैं. फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें दुनिया के 50 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में भी शामिल किया.
अपने उद्यम के अलावे किरण समाजसेवा के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना चुकी हैं. कैंसर रोगियों के बेहतर इलाज के लिए बेंगलोर में किरण ने कैंसर अस्पताल की स्थापना की. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने व्यापार मंडल और विदेश व्यापार महानिदेशालय की सदस्य के रूप में उन्हें नामित किया. वे भारत सरकार के नेशनल इनोवेशन काउंसिल की एक सदस्य और बंगलौर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रशासक मंडल की सदस्या हैं. विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद (एसईआरसी (SERC)), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य के लिए बायो वेंचर्स की बोर्ड सदस्य और कर्नाटक में आयरिश दूतावास की मानद वाणिज्य दूत भी हैं.
1989 में शिक्षा तथा उद्योग को एक साथ लाने में उनकी प्रभावी भूमिका के लिए भारत सरकार ने इन्हें प्रतिष्ठित पद्मश्री सम्मान तथा 2005 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया. इसके अलावे निक्की एशिया पुरस्कार, क्षेत्रीय विकास के लिए एक्सप्रेस फार्मास्यूटिकल लीडरशिप समिट अवार्ड, सक्रिय उद्यमी के लिए 2004 में इकोनॉमिक टाइम्स का ’साल की महिला व्यवसायी’ का पुरस्कार, एशिया के आर्थिक विकास के लिए क्लिक्क्वाट वयूवे इनिसिएटिव पुरस्कार, जीव विज्ञान और स्वास्थ्य देखभाल के लिए 2002 में अर्न्स्ट एंड यंग का साल का उद्यमी पुरस्कार, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा ‘टेक्नोलॉजी पायोनियर’ की मान्यता तथा इंडियन चैंबर्स का जीवन भर की उपलब्धियों का पुरस्कार मिला. कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार, भारतीय व्यापार नेतृत्व पुरस्कार समिति द्वारा साल की सर्वोत्कृष्ट महिला व्यावसायी पुरस्कार, अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन द्वारा ‘कारपोरेट लीडरशिप अवार्ड'(2005) आदि कई पुरस्कार उन्हें मिल चुके हैं.
किरण मजूमदार शॉ एक महिला उद्यमी के रूप में जहां महिलाओं को उद्यम जैसे क्षेत्र को भी आजीविका के रूप में अपनाने की प्रेरणा देती हैं, इसके साथ ही यह एक उदाहरण है कि अपनी शिक्षा को भी उद्यम का सहारा बनाया जा सकता है, जैसे इन्होंने अपनी जूलॉजी की पढ़ाई को अपना कार्यक्षेत्र बनाकर सफलता की एक नई ही कहानी लिखी.
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