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कैसा करवा चौथ जब मालूम ही नहीं पति जिंदा है या मृत

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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सुहागन शब्द किसी वरदान से कम नहीं है एक स्त्री की जिंदगी में. क्योंकि इस शब्द के स्त्री की जिंदगी में जुड़ने से तमाम अधिकार उसके हिस्से आ जाते हैं जिनमें से एक है पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखना. पति के स्वास्थ्य, लम्बी आयु और सौभाग्य के साथ-साथ संतान सुख प्राप्त करने के लिए विवाहित महिलाओं द्वारा करवाचौथ का व्रत रखा जाता है. यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखते हुए शाम को व्रत के महात्म्य की कथा सुनती हैं और रात में चंद्रमा निकलने पर उसे अर्ध्य देकर भोजन करके व्रत का पारण करती हैं पर सभी स्त्रियों को इस व्रत को रखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है.


भारतीय समाज में एक लड़की को बचपन से ही सिखाया जाता है कि पति धरती पर भगवान का रूप है और उसकी आराधना करना एक स्त्री का कर्तव्य है. इसी सोच के साथ एक लड़की अपनी जिंदगी के उस पड़ाव पर आकर खड़ी होती है जहां वो एक पत्नी अर्थात सुहागन होती है और इसी रूप में उसे करवा चौथ का व्रत रखने का अधिकार मिलता है. जब एक स्त्री के जीवन से सुहागन शब्द अलग हो जाता है तब उससे करवा चौथ का व्रत रखने का अधिकार भी छिन जाता है. ऐसे में सालों तक सुहागन रही स्त्री के लिए बड़ा कठिन हो जाता है अपने आपको समझाना कि करवा चौथ का व्रत रखना अब उसका सौभाग्य नहीं है.

क्या सालों बाद भी अपने पति संग करेंगी वापसी


कुछ समाज की सीमाएं और कुछ हिन्दू धर्म के रीति रिवाजों का नाम देकर ऐसी स्त्री अपने मन को समझाने की कोशिशें लगातार करती है. जैसे मानो उसके मन के भीतर जंग चल रही हो कि वो कैसे अपने उस पति के लिए व्रत रखना छोड़ दे जिसे उसने अपना भगवान माना है और परमेश्वर तो अजर-अमर होते हैं. इसी धारणा के साथ एक विधवा स्त्री भी करवा चौथ का व्रत रखती है. केवल विधवा स्त्री ही नहीं वो स्त्री भी करवा चौथ का व्रत रखती है जिसका पति सालों पहले देश के लिए जंग लड़ने गया था और उसे आज तक नहीं पता कि वो जिंदा है या जंग के मैदान में ही मर गया.


भले ही ऐसी स्त्रियों को समाज ने सुहागन के तौर पर अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखने का अधिकार नहीं दिया हो पर स्वयं इन्होंने अपने आपको यह सौभाग्य दिया कि वो अपने पति को अजर-अमर मान के एक परमेश्वर के रूप में उनका पूजन करें.


माथे पर सिंदूर नहीं

समाज अब सौभाग्यशील नहीं कहता है

ना जाने क्यों तुम्हें आज भी अमर मान के

तुम्हारा पूजन किया करती हूं’


सुहागन होने का सौभाग्य खो चुकी ऐसी स्त्री जिसे ज्ञात ही नहीं है कि उसका पति जिंदा है या मृत. यदि ऐसी स्थिति में भी वो स्त्री अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रख रही है तो वो अपने भीतर चल रही उस जंग को जीत चुकी है जो उसके पति को अजर-अमर मान के एक परमेश्वर के रूप को याद करते हुए उसे करवा चौथ का व्रत रखने से मना करती है.

शालीनता का गहना छोड़ बाजार का शोपीस मत बन

यह मर्द बलात्कारी नहीं मानसिक रोगी हैं

मोहब्बत की और उसमें मिले दर्द का इजहार सरेआम किया


karva chauth story



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