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विश्व की पहली साहित्यकार को क्यों झेलना पड़ा निर्वासन का दर्द, जानिए एनहेडुआना की प्रेरक हकीकत

स्त्री दर्पण
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अन की मुख्य पुजारिन, आकाश की देवी, एनहेडुआना के मंत्रों ने भगवान को एक नए रूप में परिभाषित सार्गोन सम्राट की प्रजा के सामने उपस्थित किया. उसने सम्राट द्वारा तलाशी धार्मिक भावनाओं में जनता को समान रूप से बांधे रखने का प्रयास भी किया. तत्कालीन सुमेर के महान सार्गोन सम्राट की पुत्री एनहेडुआना को विश्व की प्रथम साहित्यकार माना जाता है. उसके जीवन काल को 2250 और 2285 ईसा पूर्व के बीच का माना जाता है. लेकिन यह बात अभी तक किसी को ज्ञात नहीं है कि एनहेडुआना, सार्गोन सम्राट की जैविक पुत्री थी या उसे गोद लिया गया था.


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दस्तावेजों पर गौर करें तो यह बात सच है कि विश्व की पहली महिला साहित्यकार एक महिला थी, जिसने अपने मंत्रों और कविताओं के जरिए इतिहास में एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है. सार्गोन सम्राट अपनी पुत्री एनहेडुआना को बहुत मानता था, उसे उसकी काबीलियत पर पूरा विश्वास था, इसलिए उसे जिगरत मंदिर के पुजारियों ने सर्वश्रेष्ठ स्थान देकर अक्काड और सुमेरियन देवों को प्रसन्न रखने का काम प्रदान किया ताकि सम्राट सुखपूर्ण जीवन यापन कर सके और साथ ही प्रजा के जीवन में भी शांति बनी रहे. इतिहासकारों को एनहेडुआना की रचनाएं मॉडर्न युग में मिलीं लेकिन उनके पास इसके प्रमाण भी हैं कि एनहेडुआना ने तब लिखना शुरू किया था जब दुनिया में कोई दूसरा लेखक होने की बात सोच भी नहीं सकता था. शुरुआती दौर में ईसाई चर्चों के लिए लिखी गई कविताओं में भी एनहेडुआना की कृतियों की झलक साफ नजर आती है.


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एनहेडुआना के नाम का अर्थ होता है: अन (सुमेर सभ्यता में आकाश के देवता को अन कहते थे) की मुख्य पुजारिन. एनहेडुआना के नाम का एक और अर्थ भी खोजा गया जिसके अनुसार उसे नन्नार (सुमीर सभ्यता के देवता) की पत्नी का दर्जा दिया गया. मशहूर साहित्यकार क्रिवाजेक के अनुसार एनहेडुआना का शुरुआती नाम सामी भाषा में था और बेबीलोन के शहर ‘उर’ से जुड़ने के बाद उसका नाम एनहेडुआना रखा गया होगा.




सार्गोन सम्राट की पुत्री होने के बावजूद जिगरत की मुख्य पुजारिन बनने के लिए एनहेडुआना को काफी संघर्ष करना पड़ा. उसके हर कदम का लुगल-आने नाम के व्यक्ति ने काफी विरोध किया था जिसके चलते एनहेडुआना को निर्वासन के दौर से भी गुजरना पड़ा. लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी और खुद को साबित कर उसने मुख्य पुजारिन के पद को प्राप्त किया.


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अपने प्रयासों से एनहेडुआना ने सम्राट सार्गोन की प्रजा को अराजकता की बेड़ियों से मुक्त किया. किसी भी प्रकार की अराजकता को धार्मिक रूप से पाप घोषित कर उसने प्रजा के मन में एक अजीब सा डर बैठा दिया और इस डर की वजह से राज्य में फैले अराजक माहौल में कमी आई. महान देवी ‘इनन्ना’ जिसे ‘इश्तर’ भी कहा जाता है, को संबोधित करते हुए एनहेडुआना ने कविताओं के माध्यम से अपनी पीड़ा और निर्वासन के दर्द को व्यक्त किया. उसके दर्द को देवी इनन्ना से समझा और उसे वो खोया हुआ ओहदा वापस हासिल करवाया. ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो एनहेडुआना जिगरत के मुख्य पुजारिन के पद को प्राप्त करने वाली पहली महिला बन गई. जब तक वह इस पद पर रही उसने धार्मिक बंधनों में रहते हुए प्रजा के हित के लिए काम किए. उसकी कर्तव्यपरायणता और परोपकारी रवैया सदियों तक दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहे.

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