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चारदीवारी के घर बनने का इंतजार दस साल तक किया

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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women in indiaयह कहानी 40 वर्षीय एक महिला की निजी जिंदगी की कहानी है जिसने 21 वर्ष उम्र में अपने माता-पिता की पसंद के युवक से विवाह कर लिया. हर लड़की की तरह उसके मन में भी कई सवाल थे कि ना जाने कैसा परिवार होगा? क्या वो अपने होने वाले हमसफर के साथ कदम से कदम मिलाकर जीवन का सफर तय कर पाएगी. इस 21 वर्षीय महिला को अपने तमाम सवालों के जवाब तब मिले जब शादी के बाद उसने पहले दिन अपने पति के घर में कदम रखा और पति उदासी भरा चेहरा लिए अपने माता-पिता के साथ वार्तालाप कर रहा था. इस वार्तालाप में पति अपने माता-पिता से पूछ रहा था कि ‘अब वो अपना जीवन ऐसी महिला के साथ कैसे काटेगा जो केवल नाम मात्र के लिए सोना लाई है’. इस बात का उत्तर माता-पिता ने कुछ इस तरह दिया कि ‘बेटा थोड़ा रुक जा. यदि तेरे सपने पूरे नहीं हुए तो इस सामान को इसके घर वापस भेज देंगे’.


नई नवेली दुल्हन इस बात को सुनने के बाद समझ गई कि वो अपने ससुराल में केवल एक सामान की तरह है जिसे उसके ससुराल वाले इस्तेमाल करेंगे और काम निकल जाने पर घर से बाहर का रास्ता दिखा देंगे. इसके बावजूद भी यह नव विवाहिता घर की दहलीज से वापस लौटने के बदले चारदीवारी को घर बनाने के सपने संजोने लगी. धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया और 21 वर्ष में नव विवाहिता बनी स्त्री आठ साल बाद भी अपने पति के प्यार के लिए तरस रही थी. एक दिन जब गाली-गलौज सुनने की सारी सीमाएं पार हो गई तो उस दिन उसने ससुराल के घर की दहलीज को लांघने का फैसला कर लिया. तब तक वो अपनी जिंदगी के दस साल ससुराल की गाली-गलौज सुनने में गवां चुकी थी.


आज जब वो ही महिला 40 वर्ष की है ऐसे में उसका कहना है कि उसने अपने जीवन के दस साल ससुराल वालों की गाली-गलौज सुनकर गुजारे और आज समाज वालों की नफरत भरी बातें सुनकर गुजार रही है क्योंकि पति को छोड़कर आई औरत को कोई नहीं अपनाता है और समाज ऐसी औरतों में गलतियों का महासागर तलाश करता है. यदि स्त्री, मर्द का त्याग कर दे मतलब उसे छोड़ दे या तलाक दे दे तब भी समाज मर्द में नहीं स्त्रियों में कमियां खोजता है क्योंकि मर्द समाज के अनुसार स्त्री को पति का त्याग करने का अधिकार नहीं है बल्कि पति द्वारा बनाई गई लक्ष्मण रेखा के भीतर चलने का नियम है.

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