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पढ़ाई में अव्वल मजदूर की बेटी ने 15 साल की उम्र में बनाया यह रिकॉर्ड

स्त्री दर्पण
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आमतौर पर 15 साल की उम्र में बच्चे 10वीं की परीक्षा पास करते हैं. लेकिन लखनऊ की रहने वाली सुषमा वर्मा ने इस उम्र में न सिर्फ एमएससी की परीक्षा पास किया है बल्कि एमएससी के पहले, दूसरे और चौथे सेमेस्टर में उनका क्लास में पहला स्थान रहा है. सुषमा का औसत सेमेस्टर ग्रेड पॉइंट 8 है. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी करने वाली सुषमा आने वाले समय में विज्ञान जगत की नई सितारा बन सकती हैं. कम से कम उनके अबतक के अकादमिक उपलब्धियां तो यही साबित करती है.


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सुषमा वर्मा का जन्म तीन भाई-बहन वाले गरीब परिवार में हुआ. उनके पिता मजदूरी करते हैं. 5 साल की उम्र में ही सुषमा का दाखिला 9वीं कक्षा में हो गया. उस उम्र में ही वे अपने भाई शैलेंद्र से किताबे मांगकर पढ़ा करती थीं. शैलेंद्र ने खुद भी 14 साल की उम्र में बीसीए की परीक्षा पास कर लिया था.


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2007 में सुषमा का नाम लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड में, सबसे कम उम्र में 10वीं की परीक्षा पास करने वाली विद्यार्थी के रुप में दर्ज हुआ. तब उनकी उम्र 7 साल 3 महीने 8 दिन थी. 3 साल बाद उन्हें 12वीं पास करने के बाद जापान में आईक्यू टेस्ट में शामिल होने का निमंत्रण मिला. इस टेस्ट में 35 साल तक की उम्र के लोग शामिल हुए थे. सुषमा इसमें प्रथम रहीं.


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सुषमा का सपना डॉक्टर बनने का था. 13 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर प्रदेश की कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) में बैठीं लेकिन अंडरएज होने के कारण उनके प्रवेश परीक्षा का परिणाम घोषित नहीं किया गया. सुषमा इससे निराश नहीं हुईं और लखनऊ विश्वविद्यालय से बॉटनी से बीएससी में दाखिला ले लिया.


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स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के बाद एमएससी में दाखिला दिलाने के लिए मजदूरी करने वाले उनके पिता के पास पैसे नहीं थे. लेकिन सच ही कहा गया है कि जहां चाह होती है वहां राह होती है. सुषमा को पढ़ाई में मदद करने के लिए कई हाथ आगे आए. बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के उप कुलपति डॉ. आर सी सोबती ने उनके पिता 51 वर्षीय तेज बहादुर को असिस्टेंट सुपरवाइजर (साफ-सफाई) के पद पर नियुक्त कर दिया. तेज बहादुर 8वीं तक पढ़े हैं.


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तेज बहादुर का कहना है कि, “सबसे अधिक मदद हमें (शुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक) बिंदेश्वर पाठक से मिली” पाठक ने सुषमा का लैपटॉप, मोबाइल और कैमरा उपहार में देने के आलावा आर्थिक मदद भी दी.


सुषमा अब एग्रीकल्चर माइक्रोबायोलॉजी में पीएचडी करना चाहती हैं. सुषमा कहती हैं कि, “लखनऊ के आस पास की जमीन दिन प्रतिदिन बंंजर होती जा रही है. मैं कोई ऐसा रास्ता खोजना चाहती हूं जिससे अपने शहर को हरा-भरा कर सकूं.” Next…


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