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करना है लोरी से चांद तक का सफर

स्त्री दर्पण
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चांद की लोरियां लगभग सारे बच्चे अपनी मम्मियों से सुनते हैं. पर किसने सोचा था कि लोरियां सुनाते-सुनाते ये महिलाएं एक दिन चांद पर पहुंच भी जाएंगी. घरेलू महिला की श्रेणी से बड़ी मुश्किल से निकल पाई महिलाएं आज भी काम करने के लिए पुरुषों की तरह सम्मानित नहीं होती हैं. ज्यादातर लोगों की धारणा होती है कि चलो ठीक है, शौक था कर लिया. न सिर्फ भारत वरन विश्व के लगभग हर देश में अमूमन यही धारणा होती है. हालांकि गुजरते वक्त के साथ यह धारणा टूट रही है पर यह भी सच है कि यह इतनी आसानी से नहीं टूटने वाली. देश-विदेश, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाएं आज हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं. विज्ञान भी उनमें से प्रमुख है. कभी महिलाएं इस क्षेत्र में न के बराबर संख्या में थीं और नासा जैसे अंतरिक्ष विज्ञान में शोध के प्रमुख संस्थानों में भी अपनी सक्रिय भागीदारी दिखा रही हैं.


women in scienceभारत की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स आज देश ही नहीं, विदेशों में भी पहचानी जाती हैं. कल्पना चावला तो पहली भारतीय थीं जो नासा की तरफ से अंतरिक्ष अभियान के लिए चुनी गई थीं. यह दुख की बात जरूर है कि उस अभियान में कल्पना चावला की दुर्घटना में मौत हो गई, पर भारतीय महिलाओं के लिए यह हमेशा गर्व और प्रेरणा का एहसास कराता रहेगा. खुशी की बात यह है कि कल्पना चावला भारतीय महिलाओं में अपवाद नहीं बनीं, वरन उनके बाद सुनीता विलियम्स भी नासा के अंतरिक्ष अभियान के लिए चुनी गईं. यही नहीं सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में सबसे लंबे समय तक रहने वाली पहली महिला हैं. इसके अलावे अनीता सेनगुप्ता नासा में रॉकेट वैज्ञानिक हैं. नासा जैसे प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थान में भारतीय महिलाओं का यह प्रतिनिधित्व महिलाओं की बदलती तस्वीर का समर्थक और साक्ष्य है. धीरे-धीरे ही सही, लेकिन महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले न केवल अच्छा कर रही हैं, बल्कि भविष्य में समाज के लिए एक मिसाल भी कायम कर रही हैं.

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महिलाओं के रुझान और दशा में यह परिवर्तन सिर्फ भारत नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी साफ देखा जा सकता है. नासा ने इस वर्ष अपने भावी अंतरिक्ष अभियान के लिए चुने गए समूह में आधी महिलाओं का चयन किया है. दुनियाभर के 6,100 आवेदनों में केवल चार पुरुष और इतनी ही (चार) महिलाओं को अपने भावी मंगल अभियान के लिए चुनना महिलाओं की विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कुशलता का प्रमाण है.


महिलाएं अब पहले की तरह दबी-कुचली, निरीह प्राणी नहीं हैं. इसलिए पहले की तरह महिलाओं के लिए दया और सहानुभूति की भावनाएं हास्यास्पद लगती हैं. हां, यह एक बात गौर करने वाली जरूर है कि महिलाएं, महिलाओं के लिए कितनी सहयोगी हैं, क्योंकि आखिरकार एक महिला ही अपने बच्चों को प्रेरणा और शिक्षा देकर जीने की दिशा तय करती है. इसलिए महिलाओं की महिलाओं के कमजोर होने, कुछ सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित होने जैसी धारणाएं बदलनी बहुत जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि इन कुछ उदाहरणों को अपवाद के रूप में न मानकर महिलाओं की विशेषता और कार्यक्षमता के तौर पर प्रसारित किया जाय. वरना ये उदाहरण प्रेरणा बनने की बजाय कटाक्ष बनकर रह जाएंगे कि हर कोई कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स नहीं होतीं. जबकि सच्चाई इसके ठीक उलट है. हर किसी में एक विशेषता होती है. वह महिला हो या पुरुष इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. यह सही है कि हर लड़की सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला नहीं बन सकती पर यह भी तो सच है कि उन आम लड़कियों में ही कोई खास सुनीता या कल्पना या कोई और होगा. इसके लिए जरूरी है कि इस प्रेरणा को प्रेरणा के तौर पर पेश किया जाए.


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