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क्या कोई कानून है जो सेरोगेट मां को भी ध्यान में रखे

स्त्री दर्पण
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senogeret.2अब सवाल ये है कि नौ महीने तक पेट में रखने और जन्म देने वाली सरोगेट मदर का बच्चे के प्रति भावनात्मक प्रेम क्या कानूनी कागजों में दस्तखत कराने के बाद खत्म  किया जा सकता है? और क्या जन्म से पहले पता होता है कि बच्चा विकलांग होगा या जुड़वा?


सरोगेट मां तो सिर्फ अपने कोख में दूसरे के भ्रूण को पालती है. यह कुछ ऐसा होता है जैसे आपने सब्जी दूसरे के घर से  ली और पकाया अपने ऑवन में. अब सब्जी कैसी होगी आप कैसे जान सकते हैं. . बच्चा विकलांग है या जुड़वा है तो इसमें दोष तो जेनेटिक मां बाप का हुआ न. सेरोगेट मां का जो पैसों के लालच में आकर अपनी कोख उधार देती है.


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एक गरीब मां अपनी गरीबी में आकर नौ महीने समाज और परिवार के नजरों के तीखे तीर झेल कर एक बच्चे को जन्म देती है और अगर बच्चे में कुछ दोष होने पर लेने वाला मना कर दे तो ऐसे में उस गरीब मां पर क्या बीतेगी आखिर कैसे कोई अपनी ही औलाद को लेने से मना कर . सकता है और एक तो पहले वह उसका देखभाल कर नहीं सकते और अगर छोड़ देते हैं तो यह सरोगेट मां पर जुल्म होगा. आखिर क्या ममता की यही कीमत है. आज के युग में जहां सब बिकता है अब क्या ममता भी बिकेगी यह विषय भी  समाज का सबसे बडा सवाल है क्योंकि हमारा आने वाला कल इससे प्रभावित होने वाला है अगर समय रहते इस विषय पर कानून नहीं बना तो भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है.


बेबी फैक्ट्री या कोख का व्यापार


एक महिला की कोख को बेबी फॉर्म या बेबी फैक्ट्री या कोख का व्यापार जैसे शब्द दिए जा रहे हैं. सवाल ये है कि गरीबी की मजबूरी क्या इस हद तक आ जाती है कि एक महिला अपनी कोख बेचने के लिए मजबूर हो जाती है. यदि एक महिला किसी मजबूरी के कारण कोख को बेचने जैसा कदम उठाती है तो समाज उसे कोख का व्यापार जैसे शब्द दे देता है. सच तो ये है  कि यदि यह मान लिया जाए कि महिला ने अपनी कोख को कुछ पैसे के लिए बेचा है तो खरीदने वाला यह क्यों भूल जाता है कि उसने भी किसी महिला की कोख को खरीदा है. आखिरकार जिम्मेदार दोनों ही हैं फिर सिर्फ महिला के लिए कोख का व्यापार करने जैसे शब्द क्यों?


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यह कैसा व्यापारिक रिश्ता है जिसमें जन्म देने वाली मां अपने बच्चे को अपना बच्चा नहीं कह सकती है. ना जन्म लेने वाला बच्चा अपनी जन्म देने वाली मां को मां कह सकता है. समाज पर भी हैरानी होती है कि वह हर चीज की कीमत लगा देता है और अब तो मां की कोख की भी कीमत लगा दी गई है.


यदि सेरोगेसी शब्द से भावनात्मक बातों को निकाल दिया जाए तो यह सच है कि यदि भारतीय महिलाओं को विदेशों में कोख के व्यापार के लिए जाना जाएगा तो वो दिन भी बहुत पास ही होगा जब भारतीय महिलाओं का अपहरण किया जाएगा वो भी कोख को किराये पर लेने के लिए या फिर जबरदस्ती भारतीय महिलाओं की कोख पर अपना हक जमा कर अपना बच्चा पैदा कराने के लिए.


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