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आखिर कैसे बचे औरत इस “समझौते” से

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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women in officeपिछले साल प्रकाश में आए गीतिका शर्मा केस ने यह साबित कर दिया कि आज कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की घटनाएं कितनी अधिक बढ़ चुकी हैं? इस घटना के बाद भी हमारी सरकारों व समाज का  रवैया ऐसी अपराधों के प्रति बड़ा लापरवाह बना हुआ है. अगर सरकार में समाज के अंदर दीमक की तरह घुसते इस व्यवहार को खत्म करने के प्रति जज्बा होता तो आज गोपाल कांडा जैसे लोगों के लिए गीतिका की नौकरी के अनुबंध में यह शर्त शामिल करना मुमकिन ही नहीं होता कि गीतिका रोज शाम को उनसे मिले और उनकी जरूरतों को पूरा करे .


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यह तो हमने आपको सिर्फ यौन-उत्पीड़न का एक उदाहरण दिया है ऐसी घटनाएं तो रोज हमारे समाज में घटती रहती हैं पर हम जान नहीं पाते हैं. आज आधुनिकता के इस दौड़ में हर कोई आगे बढ़ना चाहता है और इसी का फायदा हमारा पुरुषवादी समाज उठाता है. अब आप ये सोच रहे होंगे की आधुनिकता की दौड़ और पुरुषवादी समाज का क्या संबध है?


दरअसल आज महिलाएं भी अपने हक के लिए आगे आना चाहती हैं और पुरुषों की बराबरी करना चाहती हैं. कई प्रतिभावान महिलाएं इस कार्य में सफल भी हो जाती हैं लेकिन कुछ को सफलता की इस राह में आगे आने के लिए कई समझौते करने पड़ते हैं. अब आप फिल्म इंडस्ट्री का ही उदाहरण ले लीजिए. यहां तो यह तक कहा जाता है कि एक स्टार हीरोइन बनने के लिए लड़की को कई लोगों के बिस्तरों से होकर गुजरना पड़ता है तभी उसे सफलता का स्वाद मिल पाता है. वरना गुमनामी के अंधेरे में खोने वाले यहां बहुत हैं.


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गलती किसकी, कौन है सही


यहां पूरी तरह पुरुष समाज को ही दोषी मानना गलत है. कहा जाता है कि एक की गलती कई बार सभी को झेलनी पड़ती है. कार्य स्थलों पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में बढ़ोत्तरी की मुख्य वजह कई जानकार महिलाओं को ही मानते हैं. उनके अनुसार कुछेक महिलाएं अकसर कम प्रतिभा और अधिक दिखावे के साथ आगे बढ़ती हैं. वह पुरुषों को अपने ऊपर अधिकार जताने का पूरा मौका देती हैं. वह खुद गलत रास्तों से सफलता की तरफ बढ़ने में विश्वास रखती हैं. ऐसे में यह महिलाएं तो आगे बढ़ जाती हैं लेकिन जिन पुरुषों को इनकी लत लगी होती है उन्हें हर लड़की ही एक अवसर के रूप में नजर आती है. इसका सबसे बड़ा हर्जाना उन प्रतिभावान लड़कियों को देना पड़ता है जो बड़े सपनों के साथ सफलता पाना तो चाहती हैं लेकिन उनके संस्कार उन्हें समझौता करने से मना करते हैं.


एक तरह से हम कह सकते हैं कि महिलाएं ही महिलाओं के सशक्तिकरण की मुख्य अवरोधक हैं. हालांकि यह अवधारणा बहुत कम मानी जाती है और इसका समर्थन समाज के हित में सही नहीं है.


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प्रयास


गीतिका शर्मा जैसे केस समाज और सरकार को इस तरफ सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि आखिर हम किस तरह कार्यस्थलों पर यौन-उत्पीड़न को रोकें? आज ऐसी घटनाएं समाज में एक बीमारी की तरह अपना पैर फैला चुकी हैं. इसीलिए इस बीमारी को जड़ हटाने के लिए सरकार ने एक कानून बनाया है इस कानून का नाम है महिलायौन उत्पीड़न कानून.


क्या है महिलायौन उत्पीड़न कानून


यह कानून खासतौर से महिलाओं के लिए बनाया गया है. 2012 में लोकसभा द्वारा पारित इस कानून के अंतर्गत यह साफ-साफ बताया गया है कि महिलाओं को शारीरिक तरीके से शोषित करना, अश्लील सामग्री दिखाना अथवा अश्लील बातें करना, अभद्र टिप्पणी करना, गलत काम करने के लिए दबाब डालना गैरकानूनी है. अगर कोई भी व्यक्ति किसी महिला के साथ इन सब में से कुछ भी करता है तो वो इस कानून की नजर में दोषी होगा और इसके लिए सजा का भी प्रावधान है.


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समिति का गठन


इस कानून के अंतर्गत यह भी कहा गया है कि अगर कोई पीड़ित महिला अपने ऊपर यौन-शोषण का केस दर्ज करवाती है तो इसके लिए एक जांच कमेटी बनेगी. जांच कमेटी जिस समय-सीमा में अपना कार्य करेगी उस समय तक महिला को ऑफिस द्वारा वेतन सहित अवकाश प्रदान करवाया जाएगा. जांच कमेटी के फैसले से असंतुष्ट होने पर कोई भी पक्ष न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दे सकता है. इस पूरे प्रकरण को बेहतर ढंग से समझने के लिए हाल ही में रिलीज हुई फिल्म “इंकार” भी बेहतरीन है.


महिलायौन उत्पीड़न कानून का उद्देश्य


इस कानून का उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न से संरक्षण और उस तंत्र को खड़ा करना है, जिसके जरिए महिलाएं उत्पीड़न की शिकायतें दर्ज करा सकें और हर्जाना पा सकें .


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जुर्माना


अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और बार बार ऐसा करने पर जुर्माने की राशि को बढ़ा दिया जाएगा. यदि यह उल्लंघन फिर भी दोहराया जाता है तो संबंधित प्रतिष्ठान का लाइसेंस तक रद्द किया जा सकता है.



कुछ प्रावधान भी हैं इस कानून में



इस कानून के अंतर्गत यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिला की पहचान को पूर्ण रूप से गुप्त रखे जाने का प्रावधान भी है. इसमें यह प्रावधान भी है महिला की जानकारी न तो मीडिया को ही प्रदान की जाएगी और न ही सूचना के अधिकार के अंतर्गत यह जानकारी मांगी जा सकेगी.


इस कानून का लाभ हर स्तर पर कार्य कर रही देश भर की करोड़ो महिलाओं को मिलेगा. कई संस्थानों और प्रतिष्ठानों द्वारा तो आतंरिक समितियों का गठन करके इस कानून का पालन शुरू भी किया जा चुका है. उम्मीद करते हैं आने वाले सालों में गीतिका शर्मा जैसे केस समाज के सामने अधिक ना आएं.


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वह अट्ठारह की है और मैंने इसके पैसे दिए हैं



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