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भारत की एक बहुत बड़ी आबादी गांवों में रहती है. आज भी भारत के अधिकतर गांव सुविधाहीन और अभावग्रस्त हैं. इन गांवों में अकसर हमें अस्पतालों की कमी नजर आती है लेकिन सरकार द्वारा समय-समय पर उठाए गए कदमों की वजह से आज गांवों में भी खुशहाली है. यूं तो सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बहुत सारी योजनाएं शुरू की हैं लेकिन अगर हम महिलाओं की बात करें तो सरकार ने गांव की महिलाओं के लिए भी बहुत सारी योजनाएं चलाई हैं और इनमें से सबसे महत्वपूर्ण योजना है जननी सुरक्षा योजना. इस योजना को शुरू करने का सरकार का सबसे बड़ा मकसद शिशु मृत्यु दर को कम करना है. गांवों में अकसर घर में प्रसव होने के कारण सबसे ज्यादा शिशुओं की मौत होती है और कभी-कभी तो महिलाओं की भी मौत हो जाती है. इसलिए सरकार यह चाहती है कि वो इस योजना के द्वारा इन दोनों के मृत्यु दर में कमी ला सके .
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पहले की दशा
बात छत्तीसगढ़ गांव की है. जहां के अधिकतर घरों में पुरुष बाहर कमाने चले जाते थे और गांव में रह जाती थीं उनकी गर्भवती पत्नियां. कई बार अकेलेपन और गरीबी की वजह से यहां बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं मिसकैरेज हो जाता था या कई बार तो ऐसा होता था कि बच्चा जन्म के बाद भी गरीबी या बीमारी के कारण मौत के मुंह में चला जाता था और उसकी मां कुछ भी नहीं कर पाती थी. ऐसे समय में इन्हें एक ऐसी सहायता चाहिए होती है जो इन्हें आर्थिक और भावनात्मक स्तर पर मदद कर सके. सरकार भावनात्माक स्तर पर तो इनकी मदद नहीं कर सकती लेकिन सरकार ने आर्थिक स्तर पर इनकी मदद करने का अच्छा उपाय किया है.
अब की दशा
सरकार द्वारा शुरू किए गए जननी सुरक्षा योजना की वजह से आज ग्रामीण क्षेत्रों में भी अस्पतालों में प्रसव कराने वाली महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. ग्रामीण जननी सुरक्षा योजना का ही नतीजा है कि पिछले पांच वर्षों में भारत में सभी ग्रामीण क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव की संख्या लगभग ढाई गुना हो गई है. अगर हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में छत्तीसगढ़ में जननी सुरक्षा योजना लागू की गई थी. तब राज्य में संस्थागत प्रसव की संख्या केवल 23.55 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011-12 में बढ़कर 59.60 प्रतिशत हो गई. बीते वित्तीय वर्ष में अप्रैल 11 से लेकर मार्च 2012 तक छत्तीसगढ़ में कुल पांच लाख 65 हजार प्रसव हुए, जिनमें से तीन लाख 37 हजार 28 गर्भवती माताओं ने अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव कराया, जो निर्धारित लक्ष्य का 59.60 प्रतिशत है. अस्पताल में प्रसव कराने वाली महिलाओं को 22 करोड़ 24 लाख 54 हजार रूपए से अधिक की राशि प्रोत्साहन स्वरूप दी गई. इसके साथ गर्भवती माताओं को संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करने पर स्वास्थ्य मितानिनों को एक करोड़ दस लाख 58 हजार रूपए का भुगतान किया गया है.
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आखिर क्या है जननी सुरक्षा योजना
जननी सुरक्षा योजना के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात आयाओं और आशा बहनों द्वारा अस्पताल में प्रसव कराने के लिए गर्भवती महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाता है और उन्हें प्रसव के लिए अस्पताल ले जाया जाता है. गर्भवती माताएं स्वयं भी प्रसव के लिए सीधे अस्पताल जा सकती हैं. इसके अलावा गर्भवती माताएं अस्पताल जाने के लिए टोल फ्री नम्बर 108 डायल कर ‘108 संजीवनी एक्सप्रेस‘ का एम्बुलेंस भी बुला सकती हैं. यह नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवा है. इसके साथ ही किराए के वाहन का उपयोग किए जाने की स्थिति में अस्पताल पहुंचने पर उन्हें चार सौ रुपए परिवहन खर्च दिया जाता है. अस्पताल में प्रसव कराने पर ग्रामीण महिला को एक हजार 400 रुपए तथा शहरी महिला को एक हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. इसी प्रकार यदि ग्रामीण महिला मितानिनों की देखरेख में अपने घर में प्रसव कराती है, तो उसे पांच सौ रुपए की राशि दी जाती है.
जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत 2001 में हुई थी. इसका उद्देश्य मातृत्व और शिशु मृत्यु दर को कम करना है. इसकी एक खूबी यह भी है कि यह योजना पूर्ण रूप से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत आती है. साथ ही यह योजना गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों में 19 वर्ष से अधिक आयु की सभी गर्भवती महिलाओं को दो बच्चों के जन्म तक ही ये सुविधा देती है.
इस योजना के अंतर्गत पंजीकृत प्रत्येक महिलाओं के पास एमसीएच कार्ड के साथ-साथ जननी सुरक्षा योजना कार्ड भी होना जरूरी है तभी वो आसानी से इस योजना का लाभ उठा पाएंगी .
माना कि आज अधिकतर महिलाओं को इस योजना की जानकारी नहीं है पर स्वास्थ्य संगठनों की वजह से आज इस योजना का फायदा बहुत सारी ग्रामीण महिलाएं उठा रही हैं और सरकार की ये कोशिश है कि इस योजना का फायदा वो ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण और शहरी महिलाओं को दिला सके जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती हैं.
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