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अब और नहीं जलेंगी कन्याएं: दहेज के लिए कानून

स्त्री दर्पण
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दहेज शब्द से आज हर वो इंसान परिचित है जो इस समाज का हिस्सा है खास कर जिस घर में लड़की है. आज जिस घर में लड़की पैदा हो जाती है उसके मां-बाप तो उसके जन्म के साथ ही दहेज के बारे में सोचने लगते हैं. यूं तो दहेज माता-पिता द्वारा दिया जाने वाला उपहार होता है लेकिन समाज ने आज इसे बहुत गलत ढंग से लेना शुरू कर दिया है.


दहेज क्या है ?

जो सम्पत्ति, विवाह के समय कन्या के परिवार की तरफ़ से उसे उपहार में दी जाती है उसे दहेज का नाम दिया जाता है किंतु समय के साथ इसके इस रूप में परिवर्तन होता गया और वर को प्रदान किया जाने वाला धन या उपहार दहेज कहा जाने लगा. दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं. यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास रहा है. भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है. संभवत: इस प्रथा को उन समाजों में महत्व प्राप्त हुआ जहां छोटी उम्र में विवाह हो जाते थे .


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प्राचीनकाल में दहेज को काफी अच्छा माना जाता था. उस समय के लोगों का मानना था कि हर चीज के पीछे एक उद्देश्य होता है और दहेज लेने के पीछे भी एक अच्छा खासा उद्देश्य था. उनका मानना था कि दहेज का उद्देश्य नवविवाहित पुरुष को गृहस्थी जमाने में मदद करना होता था, जो अन्य आर्थिक संसाधनों के अभाव में शायद वह स्वयं नहीं कर सकता था. कुछ समाजों में दहेज का एक अन्य उद्देश्य भी होता था कि पति की अकस्मात मृत्यु होने पर पत्नी को जीवन निर्वाह में इससे सहायता होगी. दहेज देने के पीछे एक अवधारणा यह भी थी कि पति विवाह के साथ आई ज़िम्मेदारी का निर्वाह ठीक तरह से कर सके.


वर्तमान युग में भी दहेज नवविवाहितों के जीवन-निर्वाह में मदद के उद्देश्य से ही दिया जाता है. लेकिन आज के समाज के लिए ये एक अभिशाप बन गया है. इसका दुष्परिणाम बहुत भंयकर हो रहा है और आज यह नारियों के लिए एक काल बन चुका है.


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अब पायल को ही ले लीजिए. कुछ दिनों के बाद उसकी शादी थी. हर लड़की की तरह उसने भी शादी को ले कर बहुत सारे सपने देखे थे. फिर कुछ दिनों के बाद उसकी शादी भी हुई पर उसने जो सोचा था वो बिल्कुल भी नहीं हुआ. शादी के कुछ दिन के बाद से ही उसके ससुराल वालों ने उस पर एक फ्लैट के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे उसके ससुरालवालों ने उसका सुख चैन सब कुछ छीन लिया.


लेकिन पायल ने हिम्मत नहीं हारी. उसने समय रहते अपनी आवाज उठाई और अपने हक के लिए भी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. लेकिन उसे तब बहुत बड़ा झटका पहुंचा जब उसे अपनी इस लड़ाई में अपने पति का साथ नहीं मिला. लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. उसने भारत के दहेज कानून के अंतर्गत अपने ससुराल वालों पर केस किया. इस केस में उसकी जीत हुई जिसके परिणामस्वरूप उसे अपने ससुराल से अलग रहने और हर महीने मुआवजा भी मिला. लेकिन फिर शायद पायल की जिंदगी पूरी तरह बदल गई और उसके पति को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपने परिवार को छोड़ कर अपने पत्नी का साथ देना सही समझा. आज पायल एक खुशहाल जिंदगी जी रही है.



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दहेज और भारत


ये तो थी पायल की कहानी लेकिन भारत में बहुत सारी महिलाएं हैं जो पायल की तरह हिम्मत वाली नहीं हैं या फिर जिन्हें अपने हक का ज्ञान नहीं है. भारत जैसे देश में आज जब हम महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का हक दिलाने की बात करते हैं तो वहां सभी को अपने हक के लिए आवाज उठाने का अधिकार है साथ ही इस अधिकार को इस्तेमाल करने से पहले हमें इसके बारे में जानना भी चाहिए.


दहेज के केस


माना कि एक अनुमान के अनुसार सिर्फ साल 2008 में ही दहेज से जुड़े कुल 3876 केस आए थे जिनमें से अधिकतर मामले वधु की मृत्यु के पश्चात थे. इस साल कुल 2500 लड़कियों की जान दहेज की वजह से गई थी. लेकिन अगर पायल की तरह ही अन्य महिलाओं को भी दहेज निषेध कानून की समझ होती तो इस बढ़ते हुए आंकड़े को रोका जा सकता था. आइए जानें भारत में ऐसे कौन-कौन से कानून हैं जो दहेज से जुड़े हैं:


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दहेज के लिए कानून


दहेज निषेध के लिए निम्नलिखित धाराओं को लागू किया जाता है.


1) धारा 406 – अगर कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करता है तो उसको और उसके परिवार वालों को इस धारा के अंतर्गत 3 साल की सजा हो सकती है या फिर जुर्माना देना पड़ सकता है या फिर दोनों ही सजा हो सकती है .

2) धारा 304 B – इस धारा के अन्दर उस तरह का केस आता है जिसमें किसी महिला की मौत अगर दहेज के कारण होती है या फिर उसको जलाने की कोशिश की जाती है तो उसके पति और घर वालों को उम्र कैद की सजा होती है. इस धारा के अन्दर कोई जुर्माना नहीं आता है इसमें सीधे सजा होती है.

3) धारा 498 A- इस धारा के अन्दर उस तरह का केस आता है जिसमें  अगर कोई महिला दहेज की प्रताड़ना से तंग आकर जान देने की कोशिश करती है और अगर इसकी शिकायत वो पुलिस से कर देती है तो उसके पति और ससुरालवालों को उम्र भर की सजा हो सकती है.

इसके अलावा भारत में दहेज निरोधक कानून भी है जिसके अनुसार दहेज देना और लेना दोनों ही गैरकानूनी घोषित किया गया है लेकिन व्यावहारिक रूप से इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया. आज भी बिना किसी हिचक के वर-पक्ष दहेज की मांग करता है और ना मिल पाने पर नववधू को उनके कोप का शिकार होना पड़ता है.


1985 में दहेज निषेध नियमों को तैयार किया गया था. इन नियमों के अनुसार शादी के समय दिए गए उपहारों की एक हस्ताक्षरित सूची बनाकर रखा जाना चाहिए. इस सूची में प्रत्येक उपहार, उसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते का एक संक्षिप्त विवरण मौजूद होना चाहिए.


इसके अलावा एक अहम कानून है घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 ( The Protection of Women from Domestic Violence Rules 2005). इस अधिनियम के अनुसार अगर घर में पुरुष के साथ रह रही महिला को पीटा जाता है, धमकी दी जाती है अथवा प्रताड़ित किया जाता है तो वह घरेलू हिंसा की शिकार है. ऐसी प्रताड़ित महिला घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत और सहायता प्राप्‍त कर सकती है.

अगर समाज की हर महिला को इन कानूनों और प्रावधानों की समझ हो तो हो सकता है आने वाला भारत महिलाओं के लिए एक बेहतर स्थान बनकर उभरे जहां किसी भी नवविवाहिता को जलाया या मारा नहीं जाएगा.




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