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मैं अपने अपराधियों को सजा दिलवाऊंगी

स्त्री दर्पण
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महिलाओं के साथ रेप, यौन अपराध जैसी वारदातें घटती रहती हैं. एक हद तक तो हमारा समाज ऐसे हालातों के लिए दोषी है क्योंकि वह महिलाओं को तो बंदिशों में रखने के लिए खुद को तैयार कर चुका है लेकिन जब बात पुरुषों पर लगाम कसने की आती है तो वह ढीला पड़ जाता है. लेकिन दूसरी ओर उन महिलाओं को दोष दिया जाना भी गलत नहीं है जो अपने ऊपर हुए अत्याचार को बर्दाश्त कर और ना जाने किस लोकलाज के कारण अपना मुंह बंद कर बैठी रहती हैं. उन्हें सिखाया जाता है कि अगर अपने साथ हुए यौन अपराध और बलात्कार का जिक्र उन्होंने किसी से भी किया तो समाज उन्हें इज्जत नहीं देगा. लेकिन वो यह समझ नहीं पातीं कि ऐसी इज्जत किस काम की जो इज्जत गंवा कर हासिल हो.

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यही वजह है कि अपराधी खुलेआम अपराध करते हैं और पीड़िता चुपचाप अपने घर की दहलीज के भीतर छिपे-छिपे ही दम तोड़ देती है. लेकिन जिस महिला की बात हम यहां करने जा रहे हैं वह भले ही भारत की नहीं है लेकिन कुछ वहशी भारतीयों ने ही उसकी इज्जत तार-तार की, उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया, उसे दर्द और चीख के सिवाय कुछ नहीं दिया.


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हाल ही में दतिया (मध्य-प्रदेश) में हुई गैंग रेप की घटना के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा. यूं तो ऐसी घटनाएं प्रतिदिन सुनने को मिलती हैं और कुछ तो ऐसी हैं जो खबर बनने से पहले ही दबा दी जाती हैं. लेकिन इस केस में एक खास बात यह है कि स्विट्जरलैंड की वह महिला आज डर और हिचक के कारण ना तो छिप कर बैठ गई है और ना ही अपने देश वापस जाना चाहती है. उसका कहना है कि वह अपने अपराधियों की ना सिर्फ पहचान करेगी, बल्कि जांच में हर संभव सहायता देने के अलावा उन दरिंदों को सजा भी दिलवाएगी. वह अपने अधिकारों और उसके महत्व को अच्छी तरह समझती है, उसे यह डर नहीं है कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे, उसकी पहचान सामने आ गई तो उसकी कितनी बदनामी होगी, आदि. यही वजह है कि आज वह और उसका पति दोनों भारत में ही रुककर गुनहगारों को सजा दिलवाने के लिए सुरक्षातंत्र की हर संभव सहायता और पूरा सहयोग करने के लिए तैयार हैं.


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अगर आप सोचते हैं कि वह तो विदेशी है. उसे इससे क्या फर्क पड़ता है कि इस घटना के बाद उसकी कितनी बदनामी होती है या सामाजिक तौर पर उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है तो आपको यह भी तो सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा समाज, उसकी परवाह किस काम की जो महिला को उसके साथ हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज ही ना उठाने दे. आखिर क्यों हम अपनी महिलाओं को ऐसा वातावरण नहीं दे सकते जहां वह अपने हक की मांग कर सकें, शर्म और लाज के कारण अपने अपराधियों को सजा दिलवाने में हिचकिचाएं नहीं.

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