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मैं लाऊंगी बदलाव और देखेगा जमाना

स्त्री दर्पण
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samkhayaहर रोज अपने पिता और भाई से मार खाकर, ताने सुनकर खुशबू ऊब चुकी थी. जब भी वह अपनी मां से इस बारे में शिकायत करती तो उसकी मां उसे चुप रहने के लिए कहती और उसे समझाती कि लड़की चाहे किसी की पत्नी हो बेटी हो या फिर बहन, हर रूप में औरत को ही सहना पड़ता है. लेकिन यह बात खुशबू को हजम नहीं होती थी. वो हमेशा यही सोचती थी कि जब भगवान ने महिला और पुरुष में र्फक नहीं किया तो फिर यह समाज स्त्री-पुरुष में भेदभाव क्यों करता है?  लेकिन उसे कभी इस सवाल का जवाब नहीं मिला.

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एक दिन उसके भाई ने उसे ताना देते हुए कहा कि मैं और तू कभी समान नहीं हो सकते हैं, क्योंकि मैं कमा के लाता हूं, जिससे ये घर चलता है और तू बस घर में बैठकर खाती है. यह बात सुनकर खुशबू को बहुत बुरा लगा उसने सोचा कि मैं भी कमा के लाऊंगी, ताकी दोबारा कभी ऐसे ताने ना सुनू.



इसी बीच खुशबू को सरकार की उन योजनाओं का पता चला जिसे सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए चलाती है. आज इन्हीं योजनाओं में से एक का फायदा उठाकर खुशबू भी अपने भाई से कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही है.


आज सरकार द्वारा लागू जिस योजना ने खुशबू के जीवन में खुशियां भर दी हैं उस योजना का नाम है महिला समाख्या योजना.

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क्या है महिला समाख्या योजना ?


महिला समाख्या योजना विशेष तौर पर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े ग्रामीण समूहों की महिलाओं के लिए चलाई जा रही एक योजना का नाम है. महिलाओं को समाज में समान दर्जा दिलवाने, शिक्षित होने तथा सशक्त बनाने में इस योजना का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है.


इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे पूर्ण रूप से महिलाओं द्वारा ही संचालित किया जाता है. जिसके परिणामस्वरूप अधिक से अधिक महिलाएं इसका हिस्सा बनने के लिए आकर्षित होती हैं या कहे कि हो रही हैं. इस योजना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की सामाजिक छवि तथा आत्मविश्वास में वृद्घि करना, उनके लिए ऐसा वातावरण तैयार करना जहां वे ज्ञान और सूचना प्राप्त कर समाज में सकारात्मक भूमिका निभा सकें. महिलाओं तथा किशोरियों की शिक्षा के अवसर प्रदान करना. इसके अलावा औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों में महिलाओं तथा लड़कियों की अधिक सहभागिता प्राप्त करना शामिल हैं.


महिला समाख्या योजना में मात्र उद्देश्यों की प्राप्ति के बजाय प्रक्रिया पर भी विशेष ध्यान दिया गया है जिसके तहत महिलाओं को स्वयं अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करने और अपनी पसंद के अनुसार ज्ञान तथा सूचना प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है.

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कब शुरू हुई यह योजना


1989 में शुरू की गई यह योजना वर्तमान समय में 10 राज्यों में प्रभावी है. इस योजना के तहत पेयजल, स्वास्थ्य और दैनिक न्यूनतम आवश्यकताओं में सुधार के साथ ही महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, बाल विवाह, दहेज आदि समस्याओं से निजात दिलाने की पहल भी की गई है. शिक्षा के क्षेत्र में सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना जैसे कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के साथ ही प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने में भी महिला समाख्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ग्राम स्तर से लेकर राज्य स्तर तक महिला समाख्या के कार्यकर्ता सक्रिय हैं, जिनसे इस योजना के संबंध में जानकारी हासिल की जा सकती है.


योजना का लाभ


ग्रामीण इलाकों में इस योजना का लाभ हमें साफ तौर पर देखने को मिल रहा है. आज शहरों की भांति गांवों की महिलाएं भी आत्मनिरर्भर बन रही हैं. जो समाज में एक बड़ा बदलाव लाने का सूचक है और अगर बदलाव की गति ऐसी ही रही तो वह दिन दूर नहीं जब महिलाओं और पुरूषों को समान नजर से देखा जाएगा, समान हक दिया जाएगा.


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गांवों में भी गूंजती रहें किलकारियां



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