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राजस्थान हमारे देश का एक ऐसा राज्य है जो शुरुआती समय से ही अपनी रूढियों और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध रहा है. आज भी आप राजस्थान के गांवों में किसी भी औरत को बिना पर्दे के नहीं देख सकतें. ऐसा भी कहा जाता है कि यहां की संस्कृति और परंपरा ग्रामीण महिलाओं एवं युवतियों की बदौलत ही ज़िंदा हैं.
लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि परंपराओं के भार तले महिलाओं के सपने कहीं दब गए हैं तो आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यहां कि महिलाओं में सपने देखने की भी हिम्मत है और वह उन्हें पूरा करना भी जानती हैं. यह सोचना गलत है कि परंपरा और संस्कृति के सामने इनके सपनों का कोई मोल नहीं रह गया है क्योंकि आज यहां की औरतें पर्दे में रहकर भी अपने सपनों को पूरा कर रही हैं.
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राजस्थान के नवलगढ़ तहसील के एक गांव सिंहासन का ही उदाहरण लीजिए, मीनाक्षी कंवर नामक युवती घूंघट में तो है लेकिन लैपटॉप पर उसकी अंगुलियां बेहिचक चल रही हैं. हेडफोन पर एक किसान से बात करते हुए वह पूरा ब्यौरा लैपटॉप पर दर्ज़ कर रही है. इस डाटा का इस्तेमाल किसानों को कृषि संबंधी जानकारी देने के लिए किया जाएगा. अब भला यह देखकर किसे अच्छा नहीं लगेगा.
हमारी आधुनिक पीढ़ी की महिलाएं परंपरा का अर्थ बंदिश समझती है. उनका मानना है कि व्यक्तिगत विकास और अपने सपनों को पूरा करने के लिए आजादी का होना बहुत जरूरी है. लेकिन वह नहीं जानते कि उनकी सोच इस मामले में पूरी तरह गलत हैं क्योंकि परंपराओं के दायरे में रहते हुए भी अपने सपनों को पूरा किया जा सकता है, जरूरत है तो बस मेहनत और लगन की.
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हम पर्दे या बंदिशों को गलत समझते हैं परंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा सोचकर हम खुद अपने व्यक्तित्व के विकास को बाधित कर लेते हैं. राजस्थान के गांवों की यह कहानी मात्र एक उदाहरण है जो उन महिलाओं को प्रेरित करने के लिए काफी है जो अपने राह में आने वाली जरा सी भी बाधा को की वजह से सपने देखना छोड़ देती हैं. व्यक्तिगत तौर पर आगे बढ़ने की जरूरत तो है ही लेकिन समाज को भी चाहिए कि वह महिलाओं को आगे बढ़ने का एक मौका दे. उन्हें उनके सपने पूरे करने के लिए प्रोत्साहित करे.
हमें आज यह समझने की जरूरत है कि अगर एक औरत अपने घर को अच्छे से चला सकती है तो वह अन्य जिम्मेदारियां भी अच्छी तरह से निभा सकती हैं. किसी भी देश का विकास उसके गांव से शुरू होता है. अगर गांवों से परिवर्तन शुरू किया जाएगा तो उसका असर शहरों पर भी बखूबी पड़ेगा.
हर व्यक्ति से तात्पर्य पुरुष और नारी दोनों से है. जब समाज पुरुष और महिलाओं से मिलकर बना है तो इसका विकास बिना महिलाओं के योगदान के पूरा कैसे हो सकता है. इसीलिए समाज को चाहिए कि वो नारी को भी पूरा पूरा मौका दे.
इस प्रकार वर्तमान सामाजिक संदर्भ में नारी की दशा और दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है. लेकिन समूचे प्रकरण में देश, काल और परम्पराओं का सम्मान बनाए रखना आवश्यक है. तभी नारी की गरिमा सुरक्षित रह सकती है.
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आज की नारी का संकल्प है-
मैं, बेहिसाब निर्बाध बाहें फैलाऊंगी.
मैं, भीड़ होकर नहीं, मनुष्य होकर
जीना चाहती हूं, खुली हवा में.
एक-एक सांस लेकर जीना चाहती हूं!!!
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