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गेहूँ बेचकर अमेरिका बन गया सुपर पॉवर, लेकिन कालिख है कि छूटती नहीं

International Affairs
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कई भारतीयों के मन-मस्तिष्क में अमेरिका की छवि साफ-सुथरे और उन्नत देश की है. एक ऐसे देश के रूप में जो कुछ भी कर सकता है; महाशक्तिशाली है. कंक्रीट की सड़कों पर दनादन रौंदती गाड़ियाँ, ताड़ के वृक्षों से दो-तीन गुना अधिक ऊँचाई वाली इमारतें, जिन्हें देखकर अनायास ही दूर-देशों में रहने वाले लोगों का मन मचल सकता है. अमेरिका की इस चकाचौंध के पीछे वहाँ की कालिमा कहीं छुप-सी जाती है. उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का अंतर काफी असमान है, ठीक वैसा ही जैसा अंतर उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली के बीच है. लेकिन अपनी कालिखों को छुपाते-छुपाते अमेरिका ने विश्व में अपनी छवि एक विकसित, जगमगाते देश के रूप में बनायी है.


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कालिख़ पुती अमेरिका

वर्ष 1861 में वर्जिनिया से मिसौरी के बीच हथियारों से लैस करीब 10,00000 लोग आमने-सामने थे. सात दास राज्यों की स्वायत्ता ने एक वर्ष पूर्व निर्वाचित लिंकन के सामने भारी समस्या खड़ी कर दी थी. ये वो समस्या थी जिसका समाधान अमेरिकी क्रांति से भी नहीं निकल पाया था. पाश्चात्य संसार में सम्भवत: यह शायद सबसे बड़ी गृह-युद्ध थी. इसमें करीब 6,25,000 जानें गयीं.


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महामंदी का भँवर

बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों में अमेरिका के निवासी अंशों(शेयर) में अत्यधिक निवेश करने लगे थे. वहाँ लगभग हर निवासी के पास अंश थे. तीसरी दशक आते-आते स्थिति यह हो गयी कि शेयर बाजार में अंशों को खरीदने वाला कोई नहीं बचा. इस कारण से अंशों की कीमत औंधे मुँह गिर पड़ी और अमेरिका महामंदी के उस भँवर में फँसा जिससे बाहर निकालने में रूज़वेल्ट के पसीने छूट गये.


american wheat


अमेरिकी सूझबूझ

जब विश्व में पहली बार भीषण युद्ध जारी था तब अमेरिका जर्मनी के विरूद्ध उस युद्ध में कूद पड़ा. हालांकि, दूसरे विश्व युद्ध में उन्होंने अपनी पुरानी गलती नहीं दोहरायी. अमेरिका ने इस युद्ध में शामिल हुए बिना अघोषित रूप से मित्र राष्ट्रों का साथ दिया. अमेरिकी इतिहास में यह वो अचूक समय साबित हुआ जब अमेरिका ने अपने यहाँ उगे खाद्यान्नों को ऊँचे दामों पर मित्र राष्ट्रों को बेचा. युद्ध में लगे मित्र राष्ट्रों में फसलों के उत्पादन का स्थान हथियारों के निर्माण ने ले लिया था. अमेरिका के लिये खाद्यान्न बेचना वह ब्रह्मास्त्र बन गया जिससे उन्होंने वर्ष 1930 के समय की महामंदी को इतिहास बना दिया.


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किराये का दिमाग

बीसवीं शताब्दी के चौथें दशक से अमेरिका ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. खाद्यान्नों, मुख्य रूप से गेहूँ बेचकर कमायी गयी बेशुमार धन-दौलत को अमेरिका ने भौतिक विकास में पिछड़े देशों के उन्नत दिमागों को किराये पर लेने में खर्च किया. इन दिमागों ने लगातार अमेरिका को भौतिक व कुछ सामाजिक ऊँचाइयाँ दी. अमेरिका में बसने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार हआ.


americans shopping


काले-गोरे का भेद और स्व-केंद्रण

हालांकि, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के बीच असमानता की खाईयाँ और चौड़ी होती गयी. भौतिक रूप से सम्पन्न होने वाले लोगों में स्व-केंद्रण का भाव घर कर गया. कहा जाता है कि ओसामा बिन लादेन के हमले के बाद कई अमेरिकावासियों ने पहली बार विश्व के नक्शे पर अफगानिस्तान को ग़ौर से देखा.  इसके अलावा काले-गोरे के बीच भेद की जड़ें अब भी अमेरिका में गहरी हैं. हाल में ही वहाँ घटित दो मामलों को उदाहरणस्वरूप सामने रखा जा सकता है.


baltimore protest


पहला मामला, अमेरिका के मिसौरी राज्य के परमा की है. पहली बार उस शहर में एक अश्वेत महिला महापौर के पद पर निर्वाचित हुई जिसके विरोध में महत्तवपूर्ण पदों पर नियुक्त किये गये कुछ अधिकारियों के इस्तीफ़े की ख़बरे अमेरिकी अख़बारों की सुर्खियाँ बनी थी. दूसरा मामला बाल्टिमोर का है. वहाँ गोरे पुलिस अधिकारियों ने एक अश्वेत को इतनी निर्ममता से पीटा कि उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी. रीढ़ की हड्डी में आयी चोटों ने उसकी जान ले ली. इसके विरोध में अश्वेत बच्चों से लेकर किशोर तक सड़कों पर उतर आये. उस समय जब अमेरिका के अश्वेत राष्ट्रपति को बेकाबू होते हालातों पर काबू पाने के लिये स्वयं पहल करना चाहिये, वो इस मामले को पुलिस के भरोसे छोड़ विदेशी मेहमानों की मेज़बानी में व्यस्त हैं.Next….


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