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जितनी तेजी से घर का मतलब पक्का मकान होता गया उतनी ही तेजी से बेंतों, मिट्टियों से बने घर आधुनिकता से लगी दौड़ में पीछे होते गये. इस दौड़ में खर, खपरैल इतिहास हो गये. यह केवल स्थानीय घटना बन कर नहीं रही. समूचे विश्व पर इसका प्रभाव पड़ा. जन्म से केवल मकान देखने वालों के लिए अब फूस, खपरैल, बेंत से बनी घरें और उनमें रहने वालों का जीवन केवल आश्चर्य की बात होती है.
बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि इराक की सीमा से सटे इलाकों में दलदली भूमि पर एक समुदाय करची, बेंतों से बने घरों में निवास करते रहे. इस दलदली भूमि पर करीब 5,000 वर्षों से लोग घर बना कर रहते हैं. इन दलदली भूमि पर रहने वालों को मार्श अरब या अरबी में Ma’dan कहा जाता है. टाइग्रिस और यूफरेट्स की यह दलदली भूमि का क्षेत्रफल कभी 9,000 वर्ग मील का हुआ करता था.
इस दलदली भूमि पर बहुत सारी जनजातियाँ मिल-जुल कर रहा करती थी. उन समुदायों की पहचान वहाँ बने तैरते हुए घरों से होती थी. ये तैरती घरें बेंतों और सौन्ठियों से बनी होती थी. सौन्ठियाँ पानी या दलदली क्षेत्रों में उगी घासों(लकड़ी की तरह ठोस नहीं) होती है जो भारत के पूर्वी राज्यों जैसे बिहार में उगती है. इन घरों को बनाने में केवल तीन दिनों का समय लगता था. ख़ास बात यह कि इन घरों को बनाते समय कीलों और लकड़ियों का उपयोग नहीं किया जाता था.
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कई शताब्दियों तक यह क्षेत्र कृषकों और गुलामों की शरणस्थली हुआ करती थी. हालांकि, 1990 के दशक में सद्दाम हुसैन के शासन के समय यह उनकी शरणस्थली बनी जिन पर उनकी कार्रवाई हुई. वर्ष 1991 में इराक की सरकार ने मार्श अरबों की इस भूमि को नष्ट करने का आदेश दे दिया. इसके पीछे इराक सरकार की यह मान्यता रही कि मार्श अरब विद्रोहियों को शरण दे रही थी.
इस आदेश के बाद मार्श अरबों के खाद्य संसाधनों को नष्ट कर दिया गया और उनके गाँवों को जलाकर उस भूमि को बंजर बना दिया गया. कुछ वर्षों के बाद कुछ लोगों ने सरकार के फैसले का विरोध शुरू किया और तब जाकर उस भूमि को पहले वाले रूप में स्थापित करने के प्रयास तेज हुए.Next….
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