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क्या वाकई रिश्ते मजबूत करना चाहते हैं चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग

International Affairs
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Premier Li Keqiang) तीन दिवसीय भारत की यात्रा पर हैं. चीन के नए प्रीमियर की यह पहली विदेश यात्रा है. वे यह जता भी चुके हैं कि चीन के प्रीमियर की हैसियत से अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुनना भारत-चीन के राजनीतिक रिश्ते मजबूत करने की उनकी प्रथम कोशिश के तहत भारत को इसकी प्राथमिकता का एहसास कराना है. इससे पहले इसी माह भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद भी चीन की यात्रा कर चुके हैं.



ली केकियांग की भारत यात्रा बहुत मायनों में महत्वपूर्ण है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जगजाहिर है. अभी पिछले ही माह चीनी सैनिकों की टुकड़ी द्वारा ओल्दी बेग में भारतीय सीमा में 20 किलोमीटर अंदर आकर तंबू गाड़कर रहने के मामले ने दोनों देशों के बीच के इस विवाद को एक बार फिर तूल दे दिया था. कमांडर स्तर पर चार बैठकें होने के बाद भी कोई हल न निकल पाने पर दोनों देशों के विदेश मंत्रालय ने मामले को आपसी सहमति से सुलझाया. इस पर भी भारतीय रणनीति शक के घेरे में है कि चीन के दबाव में आकर इसने अपने ही क्षेत्र से बंकरों को नष्ट करवाया और अपने ही क्षेत्र से भारतीय सैनिकों के पीछे हटने के लिए राजी हो गया.



चीन का दौलत बेग ओल्दी क्षेत्र में 20 दिनों के लिए अचानक पैदा किया गया यह विवाद भी चीन की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा माना गया. यहां भारत द्वारा सड़कों के निर्माण से चीन को शिकायत है क्योंकि यह वह क्षेत्र है जहां से काराकोरम दर्रा के उस पार चीन द्वारा संचालित गतिविधियों को साफ देखा जा सकता है. चीन उस क्षेत्र में नगरीय विकास को रोकना चाहता था, साथ ही भारतीय सैनिकों को हटवाना भी ताकि उस पार चीन की गतिविधियां भारत की नजरों से दूर रहें.



अचानक से चीनी सेना की टुकड़ी का इस तरह विवादित सीमा में घुसना और वहां से न हटने की जिद पर अड़ने की कोई स्पष्ट वजह नजर नहीं आई जबकि शुरू से ही दोनों देश बातचीत द्वारा विवाद का हल निकाल लिए जाने की बात कहते रहे. इस घटना से पहले ही चीन के नए प्रीमियर ली केकियांग भारत से संबंधों को सुधारने की दिशा में अपना सकारात्मक रुख दिखाते हुए अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत की यात्रा करने की घोषणा कर चुके थे. 1963 के बाद अब तक चीन की तरफ से ऐसी कुछ घुसपैठ की शिकायत भी नहीं हुई थी. अत: यह ट्रूप्स का मुद्दा आश्चर्यचकित करने वाला था. इस घटना के संबंध में यह भी कयास लगाए जाते रहे कि चीन भारतीय रणनीति को परखना चाहता था कि ऐसी किसी घटना पर यह किस हद तक प्रतिक्रिया कर सकता है. उस वक्त तक भारतीय विदेश मंत्री की चीन यात्रा भी खटाई में पडती नजर आ रही थी और केकियांग की भारत यात्रा पर भी सवाल उठने लगे थे. बहरहाल गलतफहमी के हालात बताते-बताते 20 दिनों तक लंबा खिंचा यह मुद्दा आखिरकार सुलझा पर विवादों के साये में. हालांकि दोनों पक्षों की राजनीतिक यात्राएं सलामत रहीं.


उस वक्त जब खुर्शीद चीन यात्रा पर थे तो उन्होंने भी कड़े शब्दों में कहा था कि ऐसी किसी भी घटना को भविष्य में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अब जबकि केकियांग़ भारत में हैं तो हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनसे यही कह रहे हैं. पर बड़ी ही बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए चीनी प्रधानमंत्री चीन के लिए भारत की अहमियत जताने की कोशिश में जुटे हैं. चीनी प्रीमियर ने साफ कहा है वे भारत से राजनीतिक संबंधों को नए सिरे से सकारात्मक दिशा में मोड़ने के लिए प्रयास करने को इच्छुक हैं क्योंकि उनका मानना है कि दोनों देश मिलकर एशिया की बड़ी शक्ति बन सकते हैं. दोनों देशों का एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र का और विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या का नेतृत्व करने की दुहाई देते हुए वे इसे मिलकर एशिया की बड़ी शक्ति बनने की बात करते हैं. बात सही है. विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश चीन और विश्व की दूसरी बड़ी आबादी वाला देश भारत, दोनों ही पड़ोसी हैं और भौगोलिक दृष्टि से भी दोनों देश एशिया के बड़े देशों में हैं. अगर ये मिल जाएं तो वास्तव में एशिया ही नहीं बल्कि विश्व की बड़ी शक्ति बन सकते हैं.



चीन और भारत दोनों ही विकासशील देश हैं, तेजी से विकास कर रहे हैं. अत: दोनों मिलकर अपनी समस्याओं का ज्यादा बेहतर तरीके से हल निकालते हुए विश्व की बड़ी ताकत बन सकते हैं. चीन के नए प्रीमियर भारत-चीन की मित्रता को ऐतिहासिक बताते हुए इसके सुधरने की उम्मीद जताते हैं. इसमें वे चीनी यात्री ह्वेन त्सांग की भारत यात्रा में भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने को भी शामिल करते हुए चीन का भारतीय संस्कृति में आस्था और विश्वास को जताकर भारतीयों का विश्वास जीतना चाहते हैं. वे विश्व पटल पर, विशेषकर भारत की दृष्टि में चीन को एक शांति पसंद देश के रूप में स्थापित करने की इच्छा जताते हैं. वे कहते हैं कि चीन वास्तव में एक शांति पसंद देश है और ऐसा कोई भी काम नहीं करता जो वह चाहता है कि कोई और देश उसके साथ न करे.



चीनी प्रीमियर की यह बात और ओल्दी बेग की घटना दोनों विरोधाभास रखते हैं. अगर सच में ऐसा है तो नए प्रीमियर की दोस्ती की तमाम बातों के चंद दिनों बाद ही ये किस्सा कैसे हो गया. अगर भारतीय सैनिक उनकी सीमा में जाएं तो उन्हें जरूर अच्छा नहीं लगेगा, वैसे ही उन्होंने यह क्यों नहीं समझा कि भारत को भी यह अच्छा नहीं लगेगा. तो यह बात इसी उदाहरण से निराधार साबित हो जाती है.



BRICS Summit) की बात भी उठाई है कि भारत और चीन के रिश्ते सुधरने से इस सम्मेलन के द्वारा वे आर्थिक समस्याओं का हल भी निकाल सकते हैं. हालांकि पानी का विवाद भी इन दोनों के बीच एक बड़ा विवाद है पर सीमा की समस्या पर अगर कोई हल निकलता है तो निश्चय ही इसे भी सुलझा लिया जाएगा. अब तक के हालात जो भी रहे हैं दोनों देश यही चाहते हैं कि इनके बीच वापस मैत्री संबंध स्थापित हो ताकि अपनी आर्थिक, सामरिक जरूरतों को मिलकर पूरा करते हुए ये अमेरिकी निर्भरता को कम कर सकें. अगर ऐसा हुआ तो निश्चय ही एशिया के इतिहास में यह ऐतिहासिक होगा. भारत के लिए तो पाक के साथ भी रिश्ते सुधरने के थोड़े आसार नजर आए हैं. अगर बातचीत का सिलसिला चलता रहा तो कोई न कोई हल निकल ही आएगा. फिर सुरक्षा की रणनीतियों पर खर्च कम कर अन्य विकास कार्यों में तेजी लाई जा सकती है. पर आज तो यह सपना परियों की कहानियों की तरह ही है. भविष्य ही बताएगा कि इसके धरातल पर आने में नए चीनी प्रधानमंत्री की भारत-यात्रा और भारत से मैत्री संबंध बढ़ाने का उनका जज्बा कितना सहायक होता है.




Tags: Indo-China Relationship,ChinesePremier Li Keqiang, Chinese PM’s Visit, Sino-Indian Border Dispute, Daulat Beg Oldi,ब्रिक्ससम्मेलन (BRICS Summit), Chinese Troops in India.


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