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महिला अधिकार असंवैधानिक!!

International Affairs
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iran electionईरान की एक संवैधानिक संस्था ने राष्ट्रपति पद के लिए महिलाओं की उम्मीदवारी पर रोक लगा दी है. गौरतलब है कि आगामी 14 जून को यहां राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है और इसके लिए तैयारी जोरों से चल रही है. इस चुनाव के लिए 686 प्रत्याशियों ने नामांकन किया है जिनमें 30 महिला प्रत्याशी भी शामिल हैं. नामांकन के बाद से ही महिलाओं की इस पद के लिए पात्रता के लिए यहां उहापोह की स्थिति थी. इस संस्था के अनुसार ईरान के संविधान में महिलाओं को केवल संसदीय चुनाव में भाग लेने और कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. अत: राष्ट्रपति पद के लिए महिलाओं की उम्मीदवारी गैर-कानूनी मानी जाएगी.

ग़ौरतलब है कि ईरान में इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था है जिसकी आधारशिला मार्च 1979 में इस्लामी क्रांति सफल होने के पश्चात के प्रथम वसंत ऋतु में जनमत संग्रह द्वारा रखी गई तथा धार्मिक मूल्यों को समाज व शासन का आधार बनाया गया. इस्लामी गणतंत्र ईरान के दो सिद्धांत हैं प्रथम उसका लोकतांत्रिक होना और दूसरे उसका इस्लामी होना. ईरान के संविधान में स्पष्ट किया गया है कि ईरान की सरकार लोकतांत्रिक इस्लामी गणतंत्र सरकार है जिसके हित में ईरानी राष्ट्र ने अपनी आस्था के आधार पर क़ुरआन की सत्य व न्याय पर आधारित सरकार के लिए जनमत संग्रह में मतदान किया। इसके अतिरिक्त ईरान की शासन व्यवस्था इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था है जिसका इस्लामी होना भी संविधान के अनुसार अटल है और यह सिद्धांत परिवर्तन तथा पुनर्विचार योग्य नहीं है। अत: अभी संवैधानिक संस्था द्वारा जारी बयान कि ‘ईरान के लोकतंत्र में महिलाओं को राष्ट्रपति बनने की इजाजत नहीं है और इस तरह इनकी उम्मीदवारी भी गैरकानूनी है’ इसके इस्लामिक भाव से प्रेरित और महिलाओं की प्रति इस्लामी राष्ट्रों की सोच का जायजा देती है. जैसा कि ईरान की इस्लामिक गणतंत्र में व्यवस्था है कि यहां राष्ट्रपति सर्वोच्च होता है, इसके लिए महिलाओं की उम्मीदवारी खारिज करना वैश्विक स्तर पर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कड़ी चुनौती है.

हालांकि ईरान की यह सोच बाकी मुस्लिम राष्ट्रों से थोड़ी अलग जाती है. पाकिस्तान, बंग्लादेश, तुर्की, इंडोनेशिया आदि जैसे कई मुस्लिम बहुल देश हैं जहां महिलाओं की सत्ता में भागीदारी सर्वोच्च स्तर पर हो रही है. महिलाएं घरेलू क्षेत्रों से निकलकर राजनीति में भी सक्रिय भागीदारी कर रही हैं. ज्यादातर मुस्लिम बहुल देशों में महिलाएं सक्रिय रूप से राजनीति में अपनी भूमिका अदा करते हुए सर्वोच्च पदों पर भी पहुंच रही हैं. सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया ने राष्ट्रपति पद पर महिला उम्मीदवार मेगावती सुकर्णोपुत्री (Megawati Sukarnoputri) को नियुक्त किया. दूसरे मुस्लिम बहुल राष्ट्र पाकिस्तान में भी महिला राजनीतिज्ञ बेनजीर भुट्टो (Benazir Bhutto) की लोकप्रियता और राजनीति में सक्रियता से सभी वाकिफ हैं. अपने जीवनकाल में वे दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री पद परनियुक्त हुईं. तीसरी बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश बांग्लादेश ने भी महिला राजनीतिज्ञ खालिदा जिया (Khaleda Zia) और शेख हसीना (Sheikh Hasina) को प्रधानमंत्री बनाया. इसके अलावे तुर्की ने भी तंसु सिलर (Tansu Ciller) नामक एक महिला को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किया. कोसोवो एसेंबली (Assembly of Kosovo) ने 2011 में एतिफेते जहजगा (Atifete Jahjaga), नामक एक महिला को राष्ट्रपति मनोनीत किया. विश्व का पांचवें बड़े मुस्लिम बहुल देश मिस्र (Egypt) की संसद में एक तिहाई महिलाएं सक्रिय रूप से राजनीति कर रही हैं. इन देशों में महिलाओं पर सत्ता में भागीदारी को लेकर किसी प्रकार की रोक नहीं है और मुस्लिम महिलाएं भी अपने इस अधिकार का उपयोग बखूबी कर रही हैं. पर ईरान, इराक, अरब (Arab) जैसे कम मुस्लिम जनसंख्या वाले कुछ देश (Muslim Countries) ही महिलाओं की शासकीय भूमिका को अभी तक अपना नहीं सके हैं. हालांकि ईरान में महिलाएं संसदीय चुनाव लड़ सकती हैं और कानून बनाने में भी हिस्सेदारी निभा सकती हैं फिर भी देश के सर्वोच्च पद पर आने से दूरी की मनाही इन्हें एक दायरे में रहने की ताकीद मालूम होती है.

हालांकि प्रत्याशियों की सूची अभी जारी नहीं की गई है. 11 मई तक नामांकन का समय दिए जाने के बाद 30 महिलाओं समेत 686 प्रत्याशियों ने नामांकन सूची भरी थी जिनमें अंतिम सूची के लिए कुछ चुनिंदा नाम होने की ही उम्मीद की जा रही है. महिलाओं की उम्मीदवारी रद्द करने के बाद महिलाओं का नामित न होना तो साफ हो गया है. इसके साथ ही सुधारवादी प्रत्याशी मीर होसैन मुसावी और मेहदी करौबी को नजरबंद करते हुए वर्तमान राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद को भी तीसरी बार नामांकन के लिए रोक लगा दी गई है. हालांकि ईरान में महिला विकास के लिए लिए यह रोक एक बुरी खबर है पर एक सुधारवादी शासन के आने से यह बदल भी सकता है. 2009 के चुनावों में 275 प्रत्याशियों में केवल 4 नाम चुने गए थे. अब देखना है कि इस चुनाव के लिए कितने और किसके-किसके नाम आते हैं और महिलाओं के विकास के प्रति उनका नजरिया क्या होता है.

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