Menu
blogid : 14887 postid : 616868

जब महात्मा गांधी के अहिंसावादी होने पर लग गया था प्रश्नचिह्न

International Affairs
International Affairs
  • 94 Posts
  • 5 Comments

दे दी हमें आजादी बिना खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल……..



साबरमती के संत के नाम से जाने जाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज पुण्यतिथि है. वर्ष 1869 में पोरबंदर (गुजरात) में जन्मे महात्मा गांधी का वास्तविक नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी था लेकिन चंपारन सत्याग्रह आंदोलन के पश्चात जब सर्वप्रथम कविवर रबिन्द्रनाथ टैगोर ने मोहनदास कर्मचंद गांधी को ‘महात्मा’ की उपाधि से नवाजा तभी से गांधी के साथ ‘महात्मा’ एक उपनाम की भांति जुड़ गया.



भारत में जन्में ममनून बने पाकिस्तान के 12वें राष्ट्रपति



महात्मा गांधी ने कभी नहीं सोचा था कि उनके अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत उन्हें उस मुकाम पर पहुंचाएंगे जहां लोग उनके आदर्शों को अपने भीतर समाहित करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पण कर देंगे.


वर्ष 1888 में वकालत की पढ़ाई करने के लिए मोहनदास कर्मचंद गांधी इंग्लैंड गए लेकिन जब वह बैरिस्टर बनने के बाद भारत लौटे तो उन्हें यहां कहीं भी नौकरी नहीं मिली. यही वजह रही जो उन्हें भारत छोड़ दक्षिण अफ्रीका में नौकरी करने का निश्चय किया. उनका दक्षिण अफ्रीका जाने ने भारत की तस्वीर पूरी तरह पलटकर रख दी और भारतीयों को पता चला गुलामी की वो जकड़न कितनी कष्टकारी होती है. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू करने के बाद जब महात्मा गांधी भारत आए तब यहां भी उन्होंने अपने आदर्शों को जन-जन के बीच पहुंचाकर आज हमें आजाद कहलवाने का अधिकार दिलवाया.



महात्मा गांधी का पूरा जीवन एक उदाहरण साबित हुआ, उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी हिंसा का साथ नहीं दिया, कभी हथियार नहीं उठाए और ना ही कभी किसी को गलत मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.  लेकिन क्या आप जानते हैं जिस तरह सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव का दौर आता है वैसे ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन में भी एक समय ऐसा आया था जब उनपर अहिंसावाद के सिद्धांत पर आघात पहुंचा था.



पत्नी के नाम से चर्चित हुए ये नेता


वर्ष 1914 में दक्षिण अफ्रीका से वापस आने के बाद गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह शामिल हो गए थे. अप्रैल 1918, प्रथम विश्व युद्ध के आखिरी चरण में भारत के वायसराय ने महात्मा गांधी को दिल्ली में हुई वार कॉंफ्रेंस में शामिल होने के लिए बुलाया.  भारत के स्वतंत्रता संग्राम में साथ देने के एवज में महात्मा गांधी से यह कहा गया कि वे भारतीयों को सेना की टुकड़ी में शामिल करने के लिए तैयार करें, ताकि विश्व युद्ध में शामिल अन्य महाशक्तियों का सामना किया जा सके. महात्मा गांधी ने वायसराय की यह बात मान ली, और लड़ाकों को शामिल करने के लिए तैयार हो गए.



गांधी जी जिस तरह भारतीयों को विश्व युद्ध में भाग लेने के लिए तैयार कर रहे थे उससे उनके अहिंसावाद के सिद्धांत पर प्रश्नचिह्न लग गया था



घर में घुसकर लिया ओसामा से 9/11 का बदला

क्यों बेनज़ीर का मुस्कुराना मंजूर नहीं था


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply