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दुनिया के इतिहास में ना जाने कितने ही तानाशाह हुए, कितने ही लोगों ने सत्ता को अपनी मर्जी से चलाने की कोशिश की और कितने ही तानाशाह जनता के हितों को दरकिनार कर पॉवर के नशे में चूर हुए. लेकिन कहते हैं कोई कितना ही धनवान या शक्तिशाली क्यों ना हो मौत सभी को अपनी चपेट में ले लेती है और जब बात एक ऐसे इंसान की हो जिसने दुनिया को अपने इशारों पर नचाने की कसम खा ली हो उसका अंत तो बेहद खौफनाक होता ही है. विश्व ने कई तानाशाहों के अत्याचारों को बर्दाश्त किया है और आज हम एक ऐसे ही तानाशाह के जीवन और उसके अंत के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसने अपने देश को अपनी जागीर समझकर मनचाहे तरीके से शासन किया.
लीबिया के पूर्व तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी एक ऐसे ही शख्स का नाम है जिसने लीबिया के नागरिकों पर क्रूरतापूर्ण हुकूमत की. दुनिया के सामने गद्दाफी की छवि एक बुरे तानाशाह की है लेकिन बहुत से लोग ऐसा भी मानते हैं कि गद्दाफी के शासन में लीबिया के पास जो सुविधाएं थीं, उनके पास जो आजादी थी वह अब नहीं है, यही वजह है कि गद्दाफी का जीवन और उसका शासन अभी तक विवादास्पद विषय है.
वर्ष 1969 में गद्दाफी ने लीबिया की कमान संभाली थी लेकिन फरवरी, 2011 में भड़की विरोध की आग की वजह से गद्दाफी को अपना पद छोड़ना पड़ा था और गद्दाफी के अपदस्थ होने के बाद नेशनल ट्रांजिशनल काउंसिल ने लीबिया की सत्ता संभाली. विरोध, अमेरिका का दबाव और गद्दाफी की बिगड़ी हुई छवि की वजह से आखिर वो दिन आया जब एक लंबे समय तक लीबिया पर तानाशाही करने वाले मुअम्मर गद्दाफी का अंत हुआ. लेकिन ये अंत इतना मार्मिक और अमानवीय होगा इस बात का अंदाजा शायद ही किसी को था.
अगस्त 2011 में जब एनटीसी ने लीबिया की कमान संभाल ली तब गद्दाफी अपनी जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ लीबिया की राजधानी में छिपने आ गया था. यह भी अफवाह थी कि वह देश के दक्षिणी भाग में छिपा हुआ है जबकि असल में वह अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों के साथ सिरते आ गया था. 20 अक्टूबर, 2011 के दिन गद्दाफी अपने समर्थकों के काफिले के साथ वहां से भागने के कोशिश में था कि 75 वाहनों का वो काफिला शाही एयरफोर्स के सैनिक सर्वेक्षण करने वाले विमान की पकड़ में आ गया.
लास वेगास में स्थित बेस कैंप से प्रिडेटर ड्रोन को संचालित कर गद्दाफी के काफिले पर हमला किया गया जिसमें 11 वाहन दुर्घटनाग्रस्त हुए और गद्दाफी ने छिपने के लिए एक जलनिकास पाइपलाइन में शरण ली. इस समय लीबिया का यह तानाशाह अपनी जान बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा था. एनटीसी के जवानों ने पाइपलाइन पर हमला किया जिसमें गद्दाफी के पैर पर भी दो गोलियां लगी और अंतत: गद्दाफी भी अमेरिका की पकड़ में आ गया. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि एनटीसी के जवानों के सामने गद्दाफी अपनी जान की भीख मांग रहा था, गोली मत मारो, गोली मत मारो, कहकर वह अपनी जान बख्शने की गुहार लगा रहा था, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ. एनटीसी के एक अधिकारी का कहना है कि गद्दाफी को मारने का ऑर्डर उन्हें नहीं मिला था इसलिए वह उसे मारने वाले नहीं थे. लेकिन जब गद्दाफी को पकड़ लिया गया और उसे गिरफ्तार कर ले जा रहे थे तब उसे बहुत पीटा गया, उसका पूरा शरीर लहू-लुहान हो गया और शरीर से अत्याधिक रक्तस्त्राव होने की वजह से गद्दाफी की मौत हो गई.
महमूद जिबरिल का कहना है कि जब गद्दाफी को गिरफ्तार कर गाड़ी में उसे ले जा रहे थे तब गद्दाफी समर्थकों और एनटीसी जवानों के बीच गोलीबारी हुई जिसमें से एक गोली गद्दाफी के सिर पर आ कर लग गई और उसकी मौत हो गई.
गद्दाफी की बेहद नृशंस और अमनावीय तरीके से हुई हत्या के ना जाने कितने ही वीडियो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं जिसमें उसके शरीर से खून बहता हुआ और वह तड़पता हुआ दिखाई दे रहा है लेकिन उसे मारने वालों की रूह उसकी हालत देखकर भी नहीं कांपी. लीबिया की अंतरिम सरकार ने यह निश्चय किया कि उसके शव को कुछ दिनों के लिए पब्लिक डिस्प्ले के लिए रखा जाएगा ताकि सभी को उसकी मौत का यकीन हो जाए. 24 अक्टूबर, 2011 तक गद्दाफी के शव को मिसराता में एक फ्रीजर के अंदर रखा गया और इसके बाद मिसराता के ही रेगिस्तान में उसे दफ्न कर दिया गया.
गद्दाफी का जीवन और उसका शासनकाल तो विवादों में था ही लेकिन उसकी मौत की वजह पर भी तब प्रश्नचिह्न लग गया जब सितंबर 2012 में ये रिपोर्ट आई कि गद्दाफी की मौत एक फ्रेंच जासूस के हाथों तब हुई, जब वह एनटीसी के जवानों की पकड़ में आ गया था. वहीं एक दूसरी रिपोर्ट में ये था कि 66 समर्थकों के साथ गद्दाफी को भी फांसी पर लटका दिया गया था.
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