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अब एक सिख बदलेगा पाकिस्तान की तकदीर

International Affairs
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इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के प्रति हमेशा नकारात्मक रवैया ही अपनाया गया है. लेकिन उन्हीं अल्पसंखयकों के लिए कभी भी अपने हितों के लिए आवाज उठाना मुमकिन नहीं था इसीलिए मजबूरन उन्हें अपना धर्म त्यागकर इस्लाम कबूल करना ही पड़ता था. अलग धर्म के होने की वजह से ना तो उनके पास किसी प्रकार के अधिकार होते थे और ना ही वह सिर उठाकर पाकिस्तान में अमन की सांस ले सकते थे.


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लेकिन यह सिर्फ एक धारणा है क्योंकि कहते हैं जब निश्चय दृढ़ हो तो रास्ते की रुकावटें कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं. ऐसे ही दृढ़ निश्चय के साथ पाकिस्तान की राजनीति में उतरे पाकिस्तान के पंजाब के रहने वाले रमेश सिंह अरोड़ा और आज अपनी इच्छा शक्ति के ही बल पर वह पाकिस्तान की पंजाब एसेंबली में शामिल होने वाले पहले गैर-मुस्लिम व्यक्ति बने हैं. रमेश सिंह अरोड़ा को पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की ओर से नामांकित किया गया है.



अपनी इस कामयाबी पर फक्र करते हुए रमेश सिंह कहते हैं कि “पहली बार कोई पगड़ी पहना व्यक्ति पाकिस्तान की एसेंबली में बैठेगा और मेरे एसेंबली में बैठने से पाकिस्तान में धार्मिक सहिष्णुता को भी बढ़ावा मिलेगा.


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अल्पसंख्यकों के हालात पाकिस्तान में कभी अच्छे नहीं रहे और अब जब पाकिस्तान की राजनीति में एक अल्पसंख्यक का आगमन हो गया है तो यह उम्मीद की जा सकती है कि अब शायद अल्पसंखयकों के हालात बेहतर होंगे.



रमेश सिंह अरोड़ा का कहना है कि उनकी पार्टी ने यह निश्चय किया है कि पाकिस्तान के भीतर अल्पसंख्यक जैसा शब्द प्रयोग नहीं किया जाएगा. वैसे तो रमेश सिंह अरोड़ा भी यह स्वीकार कर रहे हैं कि पाकिस्तान में गैर-मुसलमान लोगों के लिए स्थिति कठिन है लेकिन समस्या को किस तरह सुलझाया जाता है यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होती है.



उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में सिखों के 150 से ज्यादा गुरुद्वारे हैं लेकिन जब भारत से सिख समुदाय के लोग पाकिस्तान जाते हैं तो उन्हें सभी गुरुद्वारों के दर्शन नहीं करने दिए जाते हैं.


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भारतीय सिखों की इस समस्या का समाधान करने हेतु रमेश सिंह अरोड़ा ने यह सुझाव दिया है कि वीजा सिस्टम दुरुस्त रखना चाहिए ताकि श्रद्धालु सभी गुरुद्वारों के दर्शन आसानी से कर सकें.



लेकिन यह भी एक सच है कि पाकिस्तान में आज भी कई गुरुद्वारे ऐसे हैं जहां किसी तरह का पाठ या अर्चना नहीं होती. रमेश सिंह अरोड़ा ऐसे हालातों में भी तब्दीली लाने का आश्वासन देते हैं. उनका कहना है कि वह गुरुद्वारों की हालत ठीक करवाने की पूरी कोशिश करवाएंगे. वो भरोसा दिलाते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार इन्हें चालू करने की पूरी कोशिश करेगी.



लेकिन एक बात जो थोड़ी खटकती है वो यह कि रमेश सिंह अरोड़ा कहते हैं कि पंजाब एसेंबली में शामिल अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य ही यह कोशिश करेंगे कि पाकिस्तान के गैर-मुसलमानों की समस्याओं को सुलझाया जा सके. तो क्या इसका मतलब यह है कि अभी भी पाकिस्तान का मुस्लिम आवाम या नेता गैर-मुसलमानों की समस्या सुलझाने में दिलचस्पी नहीं रखते?


एक ओर जहां स्थितियां सुलझाने की बात की जा रही है वहां क्या कुछ सुधरने लायक बचा भी है, क्योंकि आज से पहले ना जाने कितने ही घटनाएं हमारे सामने हैं जिसके मद्देनजर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हालात स्पष्ट हो जाते हैं. ऐसे में एक सिख व्यक्ति के पंजाब एसेंबली में शामिल होने से क्या फर्क पड़ता है, कोई फर्क पड़ता भी है या नहीं !!!



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