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बारिश की बूँदों के लिये भारतीय समाज में किसान भगवान को याद करते हैं, मन्नतें माँगते हैं. फसल अच्छी होने पर त्योहारें भी मनाये जाते हैं. इसके विपरीत एक जगह ऐसी भी है जहाँ वर्षा के देवता को प्रसन्न करने के लिये महिलायें घूँसों से लड़ती है. वो आपस में लड़ती हैं मगर जीतने के लिए नहीं. उनकी इच्छा तो बस विरोधियों की लहू बहाने की होती है. इस लड़ाई का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लहू एकत्र करना होता है.
मैक्सिको के नाहुआ गाँव की औरतें मई के महीने में एक त्योहार को मनाने के लिये किसी तय किये जगह पर मिलती हैं. उस जगह पर वो विशेष रूप से बनाये व्यंजन लेकर जाती हैं. इन व्यंजनों में पके-भुने मुर्गे, चावल, उबले अंडे आदि होते हैं. उन व्यंजनों को लड़ाई करने के स्थान के समीप रखा जाता है. उस स्थान के चारों ओर फूलों से सजावट की जाती है. वहाँ जमा होकर ग्रामीण घेरा बना लेते हैं. ग्रामीणों के जमा होने के बाद बारिश के स्थानीय देवता तालोक की स्तुति की जाती है जिसके बाद मुक्केबाज़ी स्पर्धा के शुरू होने की घोषणा की जाती है.
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महिलाओं की मुक्केबाज़ी स्पर्धा में उम्र में बड़ी महिलायें अपने से छोटी महिलाओं को लड़ने और खून बहाने को प्रेरित करती हैं. रिंग में प्रतिस्पर्धी महिला मुक्केबाज़ पर पहला मुक्का पड़ते ही भीड़ खुश हो उठती है और खून की बूँदें गिरने पर उनकी खुशी और बढ़ जाती है.
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किसी महिला मुक्केबाज़ के थक जाने पर दूसरी महिला रिंग में उतरती है. इस तरह यह लड़ाई शाम तक चलते रहती है. शाम ढ़लते ही मुक्केबाज़ी का यह त्योहार रोक दिया जाता है और सभी प्रतिस्पर्धी एक दूसरे के गले लगते हैं.
इस मुक्केबाज़ी में बहे लहू को जमा किया जाता है. इन जमा किये गये लहू से भूमि को सींचा जाता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे बारिश के स्थानीय देवता तालोक खुश होते हैं जिससे फसल अच्छी होती है.Next…..
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