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मछलियों का व्यापार पुराना है. नदियों, समुद्रों से पकड़ कर लायी गयी मछलियाँ बाजार में बेची जाती है. नदियों और समुद्रों से बाजार तक पहुँचने से पहले मछुआरे मछलियाँ पकड़ते हैं. यूँ तो मछली पकड़ने का एक पुराना तरीका बंसी है जिसमें लोहे की नोंक वाली लकड़ी पर आटा जैसा पदार्थ लगा उन्हें फाँसा जाता है. कम समय में ज्यादा से ज्यादा मछली पकड़ने के लिये समुद्रों और नदियों में जाल फेंका जाता है.
श्रीलंका में मछली पकड़ने का यह तरीका करीब 70 साल पुराना है जिसे स्टिल्ट फिशिंग कहते हैं. इसमें मछुआरे समुद्र में लकड़ियों का एक ऐसा ढ़ाँचा बनाते हैं जो ईसाईयों के पवित्र मानी जाने वाली क्रॉस की आकृति जैसी होती है.
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देखने वालों को सुंदर लगने वाले इस ढ़ाँचे पर मछुआरे घंटों बैठकर मछलियाँ फाँसते थे. उनकी फाँसी मछलियाँ अमूमन 5 सेंटीमीटर की होती थी. इसे बेचकर वो अपना जीवनयापन करते थे.
माना जाता है कि इस तरीके की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के समय तब शुरू हुई जब भोजन की कमी और समुद्र किनारे लोगों के घूमने के कारण वहाँ आदमियों की संख्या बढ़ने लगी. उस स्थिति में कुछ व्यक्तियों ने जीवनयापन के लिये यह तरीका ढ़ूँढ़ निकाला.
हालांकि, मछली पकड़ने का यह तरीका अब श्रीलंकाई मछुआरे के ज्यादा काम का नहीं है. सुनामी की तबाही ने इनके इस तरीके को काफी नुकसान पहुँचाया है. अब बहुत कम मात्रा में ही मछुआरे मछली पकड़ने के लिये इस तरीके का प्रयोग करते हैं.Next….
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