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धन और धर्म इन दो शब्दों की शुरुआत चाहे एक अक्षर से जरूर हुई हो किन्तु इन दोनों शब्दो के अर्थ मे जमीन आसमान का अंतर है। धन जिसके बिना आज के इस समय मे जीना नामुमकिन है, और वही दूसरी ओर लोग धन को कमाने मे धर्मं को भूलते नजर आ रहे है। लोग धन को प्राप्त करने के लिए इस कदर व्याकुल हो गए है कि उसके लिए उन्होंने धर्म को एक तरफ कर दिया है। धर्म का स्थान धन के मुकाबले लाख गुना ज्यादा है। धर्म उस इज्ज़त की तरह है जिसे कमाने मे तो कई बर्ष लग जाते है किन्तु उसे नष्ट करने के लिए एक मिनट ही बहुत होता है। धन और धर्म का अपनी अपनी जगह अपना अपना पृथक अस्तित्व है। धन के माध्यम से आज कल की आवश्यकताओ की पूर्ति करना तो संभव है किन्तु धन के माध्यम से धर्म की प्राप्ति करना असंभव है। जिस प्रकार से धन को अर्जित करने का साधन व्यापर या अन्य कोई आय का स्त्रोत होता है ठीक उसी प्रकार धर्म को अर्जित करने का साधन अच्छे आचरण , अच्छे विचार , अच्छे भाव , अच्छी सभ्यता है। धन वह है जो दो लोगो को एक दुसरे से अलग करने का साधन है किन्तु ठीक इसके विपरीत धर्म दो लोगो को क्या बल्कि संपूर्ण समाज को आपस मे जोड़ने का काम करता है। आज कल के इस कलयुगी समय मे एक इन्सान धन कमाते कमाते धर्म को कमाना भूल गया है। धन की तुलना मे उस व्यक्ति के लिए धर्म को कोई भी महत्व नहीं है। जबकि इन्सान इस बात से अनजान है की यदि धन को अर्जित किया गया तो वह आज है कल नहीं , किन्तु इसके विपरीत यदि धर्म को अर्जित किया गया तो वह निरंतर बढता ही रहेगा। साधारण भाषा मे कहे तो धन ने अपने सामने धर्म का कोई भी अस्तित्व शेष रहने नहीं दिया है। किन्तु अभी भी इस दुनिया मे कुछ व्यक्ति ऐसे भी है जिनके लिए धर्म के सामने धन का कोई भी मूल्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति भी इस दुनिया मे है जिनके लिए धन एक मात्र क्रय विक्रय का साधन है। ऐसे व्यक्ति धन से भी ज्यादा धर्म को महत्व देते है। उनके लिए उनके लिए उनके संपूर्ण जीवन का सार ही धर्म होता है। धर्म एक व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास , आदर भाव , सम्मान , स्नेह आदि के भाव उत्पन्न करता है बल्कि इसके ठीक विपरीत धन एक व्यक्ति मे द्वेष , घ्रणा , अतिरिक्त आत्मविश्वास , घमंड आदि की भावना उत्पन्न करते है। धर्म के प्रति समय समय पर जागरूकता अभियानों के चलाये जाने के बाद भी लोग धर्म के प्रति जागरूक होने से वंचित रह जाते है। या यू कहे की वह इससे वंचित होने की मंशा स्वयं ही रखते है। हम सभी को इस बात को समझना चाहिए की धन से अधिक महत्वपूर्ण है धर्म। एक व्यक्ति के जीवन के अंतिम समय मे उसके लिए सबसे ज्यादा धर्म ही सहायता प्रदान करता है ना कि धन। इसलिए हम सबको अपना जीवन धन नहीं बल्कि धर्म कमाओ के आधार पर व्यतीत करना चाहिए ।
लेखक :-
अमन सिंह (सोशल एक्टिविस्ट)
185/जी ,कानून गोयान ,थाना
प्रेमनगर ,बरेली,(उ.प्र.), 243003
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ईमेल- writeramansingh@gmail.com
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