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5 सितम्बर 2016 को एक बार फिर सारा देश भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्मदिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने जा रहा है। बात यदि शिक्षा की करे या शिक्षक की दोनो का ही अपना महत्व है। शिक्षक हमारी संस्कृति के चतुर माली होते हैं। किसी राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते है। आज कोई भी बालक 2-3 वर्ष की अवस्था में विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आता है। इस बचपन की अवस्था में बालक का मन-मस्तिष्क एक कोरे कागज के समान होता है। इस कोरे कागज रूपी मन-मस्तिष्क में विद्यालयों के शिक्षकों के द्वारा शिक्षा के माध्यम से शुरूआत के 5-6 वर्षो में दिये गये संस्कार एवं गुण उनके सम्पूर्ण जीवन को सुन्दर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
यदि हम शिक्षक की तुलना एक शिल्पकार से करे तो कुछ गलत नही है।
एक अच्छा शिल्पकार किसी भी प्रकार के पत्थर को तराश कर उसे सुन्दर आकृति का रूप दे देता है। किसी भी सुन्दर मूर्ति को तराशने में शिल्पकार की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इसी प्रकार एक अच्छा कुम्हार वही होता है जो गीली मिट्टी को सही आकार प्रदान कर उसे समाज के लिए उपयोगी बर्तन अथवा एक सुन्दर मूर्ति का रूप दे देता है। यदि शिल्पकार तथा कुम्हार द्वारा तैयार की गयी मूर्ति एवं बर्तन सुन्दर नहीं है तो वह जिस स्थान पर रखे जायेंगे उस स्थान को और अधिक विकृत स्वरूप ही प्रदान करेंगे। शिल्पकार एवं कुम्हार की भाँति ही स्कूलों एवं उसके शिक्षकों का यह प्रथम दायित्व एवं कर्त्तव्य है कि वह अपने यहाँ अध्ययनरत् सभी बच्चों को इस प्रकार से संवारे और सजाये कि उनके द्वारा शिक्षित किये गये सभी बच्चे ‘विश्व का प्रकाश’ बनकर सारे विश्व को अपनी रोशनी से प्रकाशित कर सकें। इस प्रकार शिक्षक उस शिल्पकार या कुम्हार की भाँति होता है जो प्रत्येक बालक को समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप, एक सुन्दर आकृति का रूप प्रदान कर, उसे ‘समाज का प्रकाश’ अथवा उसे विकृत रूप प्रदान कर ‘समाज का अंधकार’ बना सकता है।
एक कुशल इंजीनियर वहीं होता है जो एक भव्य इमारत या भवन के निर्माण में उसकी नींव को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हुए उसे मजबूत बनाता है। और जब किसी भवन की नींव मजबूत हो तो फिर आप उसके ऊपर बनाये जाने वाले भवन को जितना चाहें उतना ऊँचा बना सकते हैं। और इस प्रकार से बनी हुई इमारत अन्य भवनों एवं इमारतों की अपेक्षा अधिक समय तक अपने अस्तित्व को बनाये रखने में सफल होती है। ठीक इसी प्रकार से हमें बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए क्योंकि आज के बच्चे ही कल अपने परिवार, समाज, देश तथा विश्व के भविष्य निर्माता बनेंगे। इसलिए हमें प्रत्येक बच्चे की नींव को मजबूत करने के लिए बचपन से ही उसे उसकी वास्तविकताओं के आधार पर भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की उद्देश्यपूर्ण एवं संतुलित शिक्षा देनी चाहिए।
हमें प्रत्येक बच्चे को सभी विषयों की सर्वोत्तम शिक्षा देकर उन्हें एक अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर, न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकारी बनाने के साथ ही उसे एक अच्छा इंसान भी बनाना है। क्योंकि सामाजिक ज्ञान के अभाव में जहाँ एक ओर बच्चा समाज को सही दिशा देने में असमर्थ रहता है तो वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में वह गलत निर्णय लेकर अपने साथ ही अपने परिवार, समाज, देश तथा विश्व को भी विनाश की ओर ले जाने का कारण भी बन जाता है। इसलिए प्रत्येक बच्चे को सर्वोत्तम भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे एक सभ्य समाज में रहने के लिए सर्वोत्तम सामाजिक शिक्षा तथा एक सुन्दर एवं सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने के लिए सर्वोत्तम आध्यात्मिक शिक्षा की भी आवश्यकता होती है।
प्रेषक. अमन सिंह. (सोशल एक्टिविस्ट)
बरेली (उत्तर प्रदेश)
डॉ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण व्याख्याओं, आनंदमयी अभिव्यक्ति और हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को प्रेरित करत थेे। सर्वपल्ली डा0 राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे । शिक्षक दिवस के अवसर पर हम सभी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को शत्-शत् नमन करते है।
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