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पिछले हफ्ते रीलिज़ फिल्म मंटो में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की एक्टिंग को काफी सराहना मिल रही है. मंटो एक बहुत ही कॉमप्लैक्स कैरेक्टर हेै और नवाजुद्दीन ने मंटो के कैरेक्टर के हर पहलु को बखुबी निभाया है. शायद नवाजुद्दीन की जगह कोई और इस रोल को इतनी अच्छी तरह से नही निभा पाता. मंटो के कैरेक्टर की खास बात है उसका ऐटिट्यूड, फिल्म में जब मंटो पाकिस्तान चला जाता है और एक कम्पनी के लिए लिखने बैठता है तो कम्पनी के ओर से उसे 20 रुपये प्रति कहानी का ऑफर दिया जाता है जिसे मंटो ये कह कर ठुकरा देता है कि क्या वो सिर्फ 20 रुपयों के लिए उसकी कंपनी का चक्कर लगायेगा.
तारीफ तो नंदिता दास की भी होनी चाहिये कि उन्होंने मेन स्ट्रीम सिनेमा से हटकर मंटो जेैसी आर्ट फिल्म करने का फैसला लिया. आज के समय में तो कोई बड़ा डायरेक्टर इस तरह की जुर्रत नही करता. लेकिन नंदिता दास ने ये कर दिखाया. ये मेरे लिए तो एक आर्ट फिल्म ही हेै वो इसलिए कि 2018 में 1947 के आस पास का पूरा माहौल तैयार करना और अपनी फिल्म में किसी लेखक की कहानियों को पर्दे पर उसकी बायोग्राफी के साथ बुनना एक बहुत ही बड़ी चुनौती है. ये और भी बड़ी चुनौती हो जाती है जब लेखक मंटो जैसा बड़ा लेखक हो. क्योंकि ऐसी कोशिश में ज्यादातर कहानियां अपना संदेश देने में असफल हो जाती हैं लेकिन इस फिल्म की लेकिन फिल्म मंटो की हर तरह की कसौटी पर एक दम खरी उतरी है. इसके लिए नंदिता दास और नवाजुद्दीन की तारीफ करना चाहिए जो इन दोनों ने मिलकर 2018 में मंटो को जिंदा कर दिया.
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