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अजी, नाम-वाम में क्या रखा है.

V2...Value and Vision
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शुरुआत Jess.c.scott की एक सुन्दर सी पंक्ति से करती हूँ…..

“when someone loves you ,the way they say your name is different.you know that your name is safe in

their mouths.”

इस ब्लॉग को लिखने की प्रेरणा मुझे अपने एक साक्षात्कार में पूछे गए एक मनोरंजक प्रश्न से मिली.प्रश्न था,“आपका नाम यमुना है ,क्या आप इस नाम की पौराणिक महत्ता जानती हैं..क्या नाम के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव से आप इत्तिफाक रखती हैं.”

dale carnegie का कथन मानस पटल पर उभर आया

“names are the sweetest & most important sound in any language.”
.

उस प्रश्न का ज़वाब तो मैं संक्षिप्त ही दे पाई थी पर आज 15 वर्षों के बाद मन इस विषय पर ब्लॉग लिखने को कर बैठा .

बच्चे के जन्म लेने के साथ ही उसके नामकरण की लम्बी सूची आने लगती है .प्रत्येक रिश्तेदार अपने अनुभव के आधार पर ,बच्चे के शक्ल सूरत को देख नामों की प्रस्तावित सूची थमा ही देता है.हमारे एक रिश्तेदार हैं उनके यहां बच्चे के नामकरण पर रिश्तेदारों की प्रस्तावित सूची से कुछ चुने हुए नामों के दीप जलाते हैं जो दीप सबसे देर तक जलता है बच्चे को वही नाम दे दिया जाता है .कहीं कहीं राशि के नाम और पुकारने के नाम अलग अलग रखने की मान्यता है.

candle.दोस्तों,अपना नाम सबको बहुत प्रिय होता है क्योंकि यही नाम हमें पहचान देता है .किसी से भी प्रथम मुलाकात के क्षण हम नाम ही पूछते हैं और स्वयं को भी नाम फिर काम से परिचित कराते हैं.नाम कानों को प्रिय लगने वाला अक्षरों का समूह ही सिर्फ नहीं होता बल्कि इसमें अर्थ होता है जो हमें परिभाषित भी करता है.कहा भी जाता है…words have meaning;names have powerआप में से कुछ लोग नाम के महत्व को मानते होंगे.कर्ण ने महाभारत के युद्ध में जिस आदमी को सारथी चुना वही उसकी हार का कारण बना …उसका नाम था ‘शल्य’जिसका अर्थ होता है,संदेह,शंका,संशय.कर्ण का अर्थ होता है कान .सब शंकाएं कान से ही प्रवेश करती हैं.अपने नाम से प्रभावित शल्य शंका और संदेह से ग्रसित हो कर्ण से कहता,”आप की जीत मुश्किल सी लगती है” और युद्ध का परिणाम सामने था.कभी-कभी नाम का प्रभाव नहीं भी पड़ता है पर अधिकांशतः नाम व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है.
नाम के महत्व पर कुछ प्रसिद्ध कथन लिख रही हूँ….

जापानी कहावत है…”tigers die & leave their skins;people die & leave their names.”

W.H.Auden…”Proper names are poetry in the raw..like all poetry they are untranslatable.”

David S. Slawan..”names are an important key to what a society values.Anthropologists recognize naming as ‘one of the chief methods for imposing order on perception.”

कुछ लोगों का मानना है कि व्यक्ति के नाम का व्यक्तित्व पर असर पड़ता है .हमारे पूर्वज नाम इसलिए सोच समझ कर रखते थे आज नाम के प्रभाव को मानने वाले लोग बहुत कम ही हैं .आजकल बच्चों के नाम कुछ ऐसे भी रखे जाते हैं जिसका कोई ठोस अर्थ नहीं होता .नाम का असर व्यक्तित्व पर पड़ता है या नहीं यह शोध का विषय हो सकता है पर कुछ नाम से पूर्वधारणाएँ इस प्रकार जुड़ जाती हैं कि वे नाम हम सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते. मंथरा ,शूपर्णखा ,रावण जैसे नाम शायद ही कोई बच्चे को देना चाहे .विभीषण कितना भी अच्छा हो पर ‘घर का भेदी लंका ढाये ‘ जैसे मुहावरे का आधार भी है..गब्बर का नाम भय से सम्बंधित हो गया था .’गब्बर इज़ बैक ‘मूवी आने के बाद इस नाम के प्रभाव में थोड़ा परिष्करण ज़रूर हुआ .स्वयं के नाम के अर्थ को को मैं अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत करने में बहुत सजगता से संज्ञान लेती रहती हूँ..कभी कभी सोचती हूँ क्या बड़े नाम वाले बड़ा काम भी करते हैं …..लाल बहादुर शाश्त्री,चंद्रशेखर आज़ाद ,पंडित जवाहर लाल नेहरू,बंकिमचन्द्र चटर्जी ,ऐसे कई सभी बड़े नाम ही थे. खैर वह दौर लम्बे नामों को रखने का ही था .आज की तरह संक्षिप्त नाम (पीकू,सोनू,राजू,मॉंटी,आदि ) तब विरले ही रखे जाते थे.
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर उसके नाम के असर के पक्ष और विपक्ष में जितना कहा और लिखा जाए यह अंतहीन साबित होगा .
एक छोटी सी कहानी उद्धृत कर रही हूँ……
किसी दंपत्ति ने अपने पुत्र का नाम ‘पापक’रख दिया बचपन में तो बालक को अपने नाम का अर्थ नहीं पता था .बड़ा हुआ तो यह नाम उसे बुरा लगता था .वह भगवान बुद्ध के पास गया और उनसे प्रार्थना की कि उसका नाम बदल दें.बुद्ध बोले “नाम तो पुकारने के लिए होता है प्रमुख तो हमारे कर्म होते हैं जिन पर हमारा यश अपयश टिका होता है.”पर पापक उनकी बात से जब सहमत नहीं हुआ तो बुद्ध ने कहा “तुम स्वयं कोई अच्छा नाम खोज कर लाओ मैं वही तुम्हारा नाम रख दूंगा .”
पापक अच्छे नाम की खोज में निकला.राह में एक शवयात्रा को देखकर उसने साथ चल रहे लोगों से पूछा ,”मरने वाले का नाम क्या था ?”उत्तर मिला ‘अमरपाल’.पापक सोचने लगा नाम अमरपाल और मर गया !!!! आगे चलकर एक भिखारी मिला .उसका नाम पूछा .भिखारी ने अपना नाम ‘धनपति ‘बताया .पापक को अजीब लगा .नाम धनपति और भीख मांग रहा है.कुछ दूर और जाने पर देखा एक राह भटका हुआ व्यक्ति लोगों से राह पूछ रहा है. पापक ने उसका भी नाम पूछा .राहगीर ने कहा ‘पंथक’ ….ओह !!! पंथक नाम …पर पथ भूल गया.
उसे समझ में आ गया कि नाम में कुछ नहीं रखा है व्यक्ति के कर्म ठीक होने चाहिए .उसके माता पिता ने जो ना रखा है ठीक है .बस काम अच्छे करने चाहिए.

यह संकलित कहानी ”आँख के अंधे नाम नयनसुख ” जैसे लोकोक्ति का ठोस आधार भी बनती है .

romeo and juliet में shakespere का एक कथन है …..

“what’s in a name ?that which we call a rose
by any other name would smell as sweet .”

.ठीक भी है नाम विद्याधर होने से विद्या भी आये ज़रूरी नहीं पर इस नाम के प्रति थोड़ा सजग होने से विद्या प्राप्त कर लेने का संकल्प विकसित कर लिया जाए तो नाम और काम का यह मक़सद ‘यथा नाम तथा गुण’ जैसी लोकोक्ति का ठोस आधार बन सकता है. अभिनेत्री विद्या बालन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें अपना नाम अच्छा नहीं लगता था क्योंकि सारे दोस्त उन्हें ओल्ड fashioned नाम कहते थे.पर मेरे पेरेंट्स हमेशा कहते थे कि जब मैं बड़ी हो जाउंगी तो खुद समझ जाउंगी कि यह नाम उन्होंने क्यों रखा .आगे चलकर मुझे पता चला कि दरअसल मेरा नाम देवी का नाम है और उन्हें हम कितना पवित्र मानते हैं.कहने का अर्थ यह कि ‘अजी नाम- वाम में क्या रखा है ‘ यह कहने से बेहतर यह होता है कि नाम सुन्दर और सार्थक रखे जाएं तथा व्यक्तित्व को एक ठोस पहचान भी दें .ठीक उसी तरह जैसे शगुन के खूबसूरत लिफ़ाफ़े में अच्छी सी धनराशि रखी जाती है .लिफाफा सुन्दर हो और धनराशि कम तो अनुचित होगा ….धनराशि अधिक हो और लिफ़ाफ़े पर ही ध्यान ना दिया जाये तो यह तो सिर्फ धनराशि मिलने वाले को पता होगा पर आस पास के लोग तो लिफ़ाफ़े से ही प्रभावित होंगे .नाम और व्यक्तित्व ऐसे ही हैं जैसे खूबसूरत सी पैकेजिंग में गुणवत्ता पूर्ण सामान.पैकेजिंग देखकर ही सामान खरीदने का मन हो जाता है और सामान की गुणवत्ता का अंदाज़ा भी होता है.
यह कहना कि नाम का असर व्यक्तित्व पर नहीं पड़ता ठीक हो सकता है पर फिर भी सड़क,भवन ,योजनाओं के नाम रखने पर विवाद हो ही जाते हैं क्योंकि नाम पहचान होती है .मेरा मानना है कि नाम ऐसे रखे जाएं जो पुकारने में सहज ,सुबोध और सार्थक हों .साथ ही उस देश समाज के परिवेश से मिलते जुलते हों ताकि नाम पुकारने पर विकृत न हों .मैंने एक बार अपने पालतू कुत्ते का नाम एरोन रखा .माता जी जब घर आईं तो उन्होंने उसे अहिरावण कहना शुरू किया.कुछ बच्चों के नाम स्कूल में कुछ और और घर पर पुकारने के कुछ और होते हैं ऐसे में कभी -कभी बच्चे को सही पहचान नहीं मिल पाती .मेरी बिटिया के स्कूल में लिखे नाम से घर के ही कई रिश्तेदार अनभिज्ञ थे जब उसने बारहवीं में अच्छा परिणाम दिया तो बहुत कम लोगों को पता चला कि यह बिटिया का नाम है.अतः व्यक्ति का नाम एक से अधिक ना ही हों तो ज्यादा बेहतर है.

नाम और काम आपस में कुछ इस तरह घुले मिले होने चाहिए जैसे दूध में केसर मिल जाए .जो दूध को दूध के प्राकृतिक रंग में भले ही ना रहने देता हो पर उसके रंग को एक खास अंदाज़ देता है स्वाद में वृद्धि कर देता है और साथ में दूध की प्राकृतिक पौष्टिकता को भी बरकरार रखता है.

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